Apr 12, 2019

मैं चौकीदार नहीं हूँ



मैं चौकीदार नहीं हूँ 

हम कहीं कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करते |रात में क्या, दिन में भी नहीं |हम तो इसी में खुश हैं कि दुनिया हमें ही शांति से जीने दे |किसी और को दुखी कर सकने की क्षमता तो हम में है ही कहाँ ? इसलिए यदि देश या विश्व-रक्षा जैसा कोई महान काम न आ पड़े, हम अधिक से अधिक साढ़े नौ बजे के उर्दू समाचार सुनकर सो जाते हैं |नींद कब आए यह 'अच्छे दिनों' की तरह खुद नींद पर ही निर्भर है |

नींद आने ही वाली थी कि घर के सिंहद्वार पर दस्तक हुई; देखा, तो तोताराम |हमने कहा- बन्धु, हम आपको एक बार पहले भी कह चुके हैं कि एक द्वार पर दिन में एक बार से अधिक भिक्षाटन पर नहीं जाना चाहिए |

तोताराम ने कहा- मैं समय-असमय किसी के घर में आ घुसने वाला, हाथ जोड़कर वोट माँगने वाला बेशर्म नेता नहीं हूँ  |मैं कुछ माँगने नहीं आया हूँ | मैं तो तुझे यह बताने आया हूँ कि मैं चौकीदार नहीं हूँ |आज रात साढ़े नौ बजे के बाद यदि चोरी की कोई वारदात हुई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी |

हमने कहा- ठीक है |वैसे आज से पहले तो तेरे चौकीदारत्त्व में यह देश चैन की नींद सोता ही रहा है |लेकिन यह समाचार तो तू ट्विटर  से भी दे सकता था |बिना बात हमारी नींद ख़राब करने क्या ज़रूरत थी ? आजकल तो इस देश में सब कुछ ट्विटर और मेसेज के बल पर ही चल रहा है |सारी देशभक्ति, शुभकामनाएँ, शोकसंदेश सभी कुछ ट्विटर से ही निबटाए जा रहे हैं |बड़े लोग तो अपना ट्विटर भी खुद नहीं करते |यह काम उनके लिए उनके नौकर ही करते हैं | एक सर्वे के अनुसार देश में कोई ४५ करोड़ लोग स्मार्ट फोन का उपयोग करते हैं |हो सकता है मंदिर में जाने और पूजा करने की बजाय लोग भगवान को भजनों का ट्वीट कर देते हों |कर्जा लेकर ही सही सभी भारतीयों को स्मार्ट फोन खरीद लेना चाहिए |पता नहीं, कब सरकार ट्वीट द्वारा 'अच्छे दिन' भेज दे और हमें पता ही न चले |

बोला-  जैसे देशसेवी और समाजसेवी होते हैं वैसे ही 'टेक्नोसेवी'  भी होते हैं जैसे मोदी जी |लेकिन मनमोहन जी और प्रणव दा की तरह तेरे जैसे कुछ पिछड़े लोग भी होते हैं जिन्हें एस.एम.एस. तक करना आता, ट्वीट और किंडल तो बहुत दूर की बात है |ऐसों के लिए ही खुद आकर बताना पड़ता है |

हमने कहा- लेकिन चौकीदार बनने में क्या बुराई है ? मोदी जी ने तो कहा है- देश-दुनिया और समाज के लिए कुछ भी अच्छा काम करने वाला 'चौकीदार' ही होता है |

बोला- तो फिर आज उन्हें यह ढिंढोरा पीटने की क्या ज़रूरत आन पड़ी ? वे प्रधान सेवक थे, अब भी हैं | क्या सेवक का काम स्वामी की चौकीदारी करना नहीं होता ?

हमने कहा-क्या किया जाए ? आजकल राजनीति का स्तर बहुत गिर गया है | लोग पता नहीं चौकीदार के नाम के साथ और क्या-क्या जोड़कर मज़ाक उड़ाने लगे हैं |इसलिए उन्हें ही नहीं, सभी ईमानदार लोगों को कहना पड़ रहा है- मैं भी चौकीदार हूँ |

बोला- यह  बात है तो फिर सबको यह कहना चाहिए कि मैं चोर नहीं हूँ या मैं ईमानदार चौकीदार हूँ |  

हमने कहा- तो कोई बात नहीं तू अपने को 'एक ईमानदार चौकीदार'  घोषित कर दे |

बोला- इतने से ही बात थोड़े बनती है |मैं झूठी जिम्मेदारी नहीं ले सकता |मान ले, कल जोश में आकर किसी चोर को पकड़ लिया और वह निकल आया थानेदार या किसी जनसेवक का साला तो मेरी तो मुश्किल हो जाएगी |

हमने कहा- तोताराम, यह इतना सीरियसली लेने की बात नहीं है |ये कोर्ट में कोई हलफिया बयान थोड़े हो रहे हैं |कोर्ट की बहस की बात थोड़े ही है |यह तो चुनावों के लिए 'लपक-लाइन'  है | 

तोताराम चौंका, बोला- यह 'लपक-लाइन' क्या होती है ?  

हमने कहा- इसे अंग्रेजी में 'पंच-लाइन' कहते हैं | जैसे इंदिरा जी ने चुनाव लपकने के लिए 'गरीबी हटाओ' की पंच-लाइन दी थी या पिछली बार मोदी जी ने 'अच्छे दिन' की पंच-लाइन दी थी |हमने तो आजकल फैशन के हिसाब से इसे थोड़ा अनुप्रासात्मक बना दिया है |कहो तो 'पकड़-पंक्ति' बना दें ? 

 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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