जूते, पेंट और सीढ़ियाँ
चूँकि सभी अखबारों में एक जैसे ही घटिया और फालतू समाचार आते हैं इसलिए हम केवल एक अखबार मँगाते हैं |कहने को अखबार १४ पेज का होता है लेकिन पढ़ने की सामग्री पाँच मिनट से अधिक की नहीं होती | किसी भी बात के लिए कोई कमिटमेंट नज़र नहीं आता |वही भजनों की गंगा, वही सर्दी-गरमी के समाचार और उन्हीं लोगों की उपलब्धियों के समाचार जिनका उसी दिन के अखबार में विज्ञापन भी लगा है |मतलब कि इधर पेमेंट और उधर न्यूज |अब पेड न्यूज क्या होती है यह समझाने की ज़रूरत नहीं है |
ऐसे में कई अखबार खरीदने की क्या ज़रूरत ? अनलिमिटेड इंटरनेट का कनेक्शन है सो दो-चार अखबार नेट पर ज़रूर पढ़ लेते हैं | कारण कि हमारा लेखन समाचारों और विशिष्ट लोगों के वक्तव्यों पर आधारित होता है |नेट पर पढ़ते-पढ़ते आज एक ऐसा वीडियो खुल गया जिसमें मोदी जी कानपुर को 'अटल घाट' की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ज़रा सी ठोकर लग गई | हमारे राजस्थान में उसे 'आखड़ना' कहते हैं जिसमें आदमी गिरता तो नहीं लेकिन गिरूँ-गिरूँ-सा हो जाता है |बस, ऐसा ही कुछ हुआ |
मोदी जी इतने बड़े आदमी हैं तो उन्हें फ़टाफ़ट संभाल लिया गया |हम तो चार दिन पहले ही हमारे मोहल्ले की सड़क की विशिष्ट बनावट की वजह से 'आखड़' गए |वैसे राजस्थान के किसी मुख्यमंत्री ने लालू और शिवराज सिंह की तरह इन सड़कों के हेमाजी के गालों या न्यूयार्क की सड़कों जैसा होने का दावा भी नहीं किया था |फिर भी हमारे 'आखड़ने' के लिए ये पर्याप्त सक्षम हैं |गिरते-गिरते बचे |बस, थोड़ा-सा दूध बिखर गया |हम कोई वी वी आई पी तो हैं नहीं ,सो किसी ने नहीं उठाया |खुद ही इधर-उधर देखते हुए उठे और आपनी डोलची में जितना दूध बिखरने से बच गया, लेकर घर लौटे |वैसे सुरक्षा प्रबंधों के अतिरिक्त भी मोदी जी अपनी उम्र के हिसाब से बहुत स्वस्थ, सक्षम, सबल, सतर्क और साहसी हैं | खैर, जैसे आखड़े थे वैसे गिरे नहीं |इस 'आखड़ने' का कारण मोदी जी अक्षमता या की कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ियों की दोषपूर्ण बनावट थी |
जीवन है | जीवन को यात्रा कहा गया है | यात्रा में सब तरह के रास्ते मिलते हैं |सीधे-सरल, कठिन, ऊबड़-खाबड़, कंटकाकीर्ण, सुमनमय |कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, सदैव किसी की भी यात्रा सर्व सुखमय नहीं होती |सारी समृद्धि, सुविधा, सौभाग्य धरे रह जाते हैं जब ऐसा-वैसा वक़्त आता है |हालाँकि शुभचिंतकों और भक्तों को यह अच्छा नहीं लगता लेकिन क्या किया जाए ? राम, सीता और लक्ष्मण जब वन जा रहे हैं तो ग्राम वधुएँ उन्हें देखकर आपस में बतियाती हैं-
जो जगदीस इन्हहि वन दीन्हा
कस न सुमनमय मारग कीन्हा
फिर भी न तो राम का वनवास केंसिल हुआ और न ही मारग सुमनमय हुआ | फिर मोदी जी तो संकटों के पाले हुए हैं |एक से एक कष्ट झेलकर अपनी अदम्य साहसिकता से इस ऊँचाई पर पहुँचे हैं |ऐसी छोटी-मोटी बातें होती रहती हैं |लेकिन इन अखबार वालों के पास न तो कोई दृष्टि है और न ही सृजनात्मकता |जिससे फायदा दीखता है उसके चरण चाटने लग जाते हैं और उस काम के व्यक्ति या संस्थान के लिए अन्य किसी को भी गालियाँ निकालने तक में भी नहीं सकुचाते |
एक बड़े सर्कुलेशन वाले लेकिन विज़नलेस अखबार ने कानपुर के 'अटल घाट' पर मोदी जी के 'आखड़ने' के वीडियो में इस दृश्य को लगातार चार बार दिखाया |हमें बड़ा अजीब लगा |
जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, ये अखबार वाले भी बड़े विचित्र होते हैं |न इनका कोई मिशन है और न ही कोई विज़न |क्या यह कोई समाचार है ?और वीडियो के लायक तो बिलकुल ही नहीं |तिस पर वीडियो में | एक बार के ज़रा से आखड़ने को चार बार दिखाने की क्या ज़रूरत थी ?
बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है ? मोदी जी कोई फोटो और वीडियो से अपनी इमेज बनाने वाले थोड़े ही हैं | उन्होंने जीवन के सभी छोटे-बड़े उतार चढ़ाव देखें हैं |वास्तव में गिर जाएँ तो भी क्या ? गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग में |जिसे अमरीका ने वीजा देने से मना कर दिया था उसके कार्यक्रम 'हाउ डी मोदी' में सम्मलित होकर उसी अमरीका का राष्ट्रपति अपने को धन्य समझता है |यह मोदी है, एक क्या, हजार बार गिर कर भी अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेगा |
हमने कहा- इसमें हम मोदी जी की कोई कमी नहीं मानते | सीढ़ियों का एक नियम होता है कि उनकी ऊँचाई छह इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए और सभी सीढियों की ऊँचाई समान होनी चाहिए |इससे एक सीढ़ी पर चढ़ने के बाद व्यक्ति उसी अनुमान से बिना देखे भी स्वाभाविक रूप से चढ़ता चला जाता है |मोदी जी के मामले में हुआ यह कि अंतिम सीढ़ी की ऊँचाई अनुपात से कम थी |जबकि पैर पूर्व निर्धारित अनुमान से चले |
यदि कोई उस उतावले और ज्यादा स्मार्ट बच्चे की तरह होता जो जूतों की हिफाज़त के लिए एक साथ दो सीढियां चढ़कर पेंट फड़वा बैठा, तो बात और है | लेकिन मोदी जी पर यह बात भी लागू नहीं होती |
बोला- चाहे कोई स्मार्ट हो या नहीं, सीढ़ियाँ ऊँची-नीची, समान या असमान कैसी भी ऊँचाई की हों लेकिन सीढियाँ होंगी ज़रूर |सीढियों से कोई बच नहीं सकता |ऊपर चढ़ने और नीचे उतरने दोनों के लिए ही सीढियाँ ज़रूरी हैं |
हमने फिर असमंजस ज़ाहिर करते हुए कहा- फिर भी यह सब हुआ कैसे ?
बोला- आने वाली पीढियाँ कहीं 'अटल घाट' पर फिसल न जाएँ इसलिए मोदी जी अटल घाट की सीढियाँ चेक करने गए थे |अब पता लग गया कि सीढियाँ ठीक नहीं हैं | ठीक कर दी जाएँगीं |इतनी सी बात के लिए तू और तेरे टटपूँजिया बतंगड़ बना रहे हैं |
बात न बात का नाम; कर दी रामायण खड़ी |अब चाय तो बनवा |डबल और कड़क | बड़ी ठण्ड है |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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