Dec 28, 2019

जूते, पेंट और सीढ़ियाँ



जूते, पेंट और सीढ़ियाँ



चूँकि सभी अखबारों में एक जैसे ही घटिया और फालतू समाचार आते हैं इसलिए हम केवल एक अखबार मँगाते हैं |कहने को अखबार १४ पेज का होता है लेकिन पढ़ने की सामग्री पाँच मिनट से अधिक की नहीं होती | किसी भी बात के लिए कोई कमिटमेंट नज़र नहीं आता |वही भजनों की गंगा, वही सर्दी-गरमी के समाचार और उन्हीं लोगों की उपलब्धियों के समाचार जिनका उसी दिन के अखबार में विज्ञापन भी लगा है |मतलब कि इधर पेमेंट और उधर न्यूज |अब पेड न्यूज क्या होती है यह समझाने की ज़रूरत नहीं है |

ऐसे में कई अखबार खरीदने की क्या ज़रूरत ? अनलिमिटेड इंटरनेट का कनेक्शन है सो दो-चार अखबार नेट पर ज़रूर पढ़ लेते हैं | कारण कि हमारा लेखन समाचारों और विशिष्ट लोगों के वक्तव्यों पर आधारित होता है |नेट पर पढ़ते-पढ़ते आज एक ऐसा वीडियो खुल गया जिसमें मोदी जी कानपुर को 'अटल घाट' की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ज़रा सी ठोकर लग गई | हमारे राजस्थान में उसे 'आखड़ना' कहते हैं जिसमें आदमी गिरता तो नहीं लेकिन गिरूँ-गिरूँ-सा हो जाता है |बस, ऐसा ही कुछ हुआ |


मोदी जी इतने बड़े आदमी हैं तो उन्हें फ़टाफ़ट संभाल लिया गया  |हम तो चार दिन पहले ही हमारे मोहल्ले की सड़क की विशिष्ट बनावट की वजह से 'आखड़' गए |वैसे राजस्थान के किसी मुख्यमंत्री ने लालू और शिवराज सिंह की तरह इन सड़कों के हेमाजी के गालों या न्यूयार्क की सड़कों जैसा होने का दावा भी नहीं किया था |फिर भी  हमारे 'आखड़ने' के लिए ये पर्याप्त सक्षम हैं |गिरते-गिरते बचे |बस, थोड़ा-सा दूध बिखर गया |हम कोई वी वी आई पी तो हैं नहीं ,सो किसी ने नहीं उठाया |खुद ही इधर-उधर देखते हुए उठे और आपनी डोलची में जितना दूध बिखरने से बच गया, लेकर घर लौटे |वैसे सुरक्षा प्रबंधों के अतिरिक्त भी मोदी जी अपनी उम्र के हिसाब से बहुत स्वस्थ, सक्षम, सबल, सतर्क और साहसी हैं | खैर, जैसे आखड़े थे वैसे गिरे नहीं |इस 'आखड़ने' का कारण मोदी जी अक्षमता या की कमजोरी नहीं बल्कि सीढ़ियों की दोषपूर्ण बनावट थी | 

जीवन है | जीवन को यात्रा कहा गया है | यात्रा में सब तरह के रास्ते मिलते हैं |सीधे-सरल, कठिन, ऊबड़-खाबड़, कंटकाकीर्ण, सुमनमय |कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, सदैव किसी की भी यात्रा सर्व सुखमय नहीं होती |सारी समृद्धि, सुविधा, सौभाग्य धरे रह जाते हैं जब ऐसा-वैसा वक़्त आता है |हालाँकि शुभचिंतकों और भक्तों को यह अच्छा नहीं लगता लेकिन क्या किया जाए ? राम, सीता और लक्ष्मण जब वन जा रहे हैं तो ग्राम वधुएँ उन्हें देखकर आपस में बतियाती हैं- 

जो जगदीस इन्हहि वन दीन्हा 
कस न सुमनमय मारग कीन्हा 

फिर भी न तो राम का वनवास केंसिल हुआ और न ही मारग सुमनमय हुआ | फिर मोदी जी तो संकटों के पाले हुए हैं |एक से एक कष्ट झेलकर अपनी अदम्य साहसिकता से इस ऊँचाई पर पहुँचे हैं |ऐसी छोटी-मोटी बातें होती रहती हैं |लेकिन इन अखबार वालों के पास न तो कोई दृष्टि है और न ही सृजनात्मकता |जिससे फायदा दीखता है उसके चरण चाटने लग जाते हैं और उस काम के व्यक्ति या संस्थान के लिए अन्य किसी को भी गालियाँ निकालने तक में भी नहीं  सकुचाते |

एक बड़े सर्कुलेशन वाले लेकिन विज़नलेस अखबार ने कानपुर के 'अटल घाट' पर मोदी जी के 'आखड़ने' के वीडियो में इस दृश्य को लगातार चार बार दिखाया |हमें बड़ा अजीब लगा |

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, ये अखबार वाले भी बड़े विचित्र होते हैं |न इनका कोई मिशन है और न ही कोई विज़न |क्या यह कोई समाचार है ?और वीडियो के लायक तो बिलकुल ही नहीं |तिस पर वीडियो में | एक बार के ज़रा से आखड़ने को चार बार दिखाने की क्या ज़रूरत थी ? 

Image result for सीढियों पर फिसले मोदी जी

बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है ? मोदी जी कोई फोटो और वीडियो से अपनी इमेज बनाने वाले थोड़े ही हैं | उन्होंने जीवन के सभी छोटे-बड़े उतार चढ़ाव देखें हैं |वास्तव में गिर जाएँ तो भी क्या ? गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग में |जिसे अमरीका ने वीजा देने से मना कर दिया था उसके कार्यक्रम 'हाउ डी मोदी' में सम्मलित होकर उसी अमरीका का राष्ट्रपति अपने को धन्य समझता है |यह मोदी है, एक क्या, हजार बार गिर कर भी अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेगा | 

हमने कहा- इसमें हम मोदी जी की कोई कमी नहीं मानते | सीढ़ियों का एक नियम होता है  कि उनकी ऊँचाई छह इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए और सभी सीढियों की ऊँचाई समान होनी चाहिए |इससे एक सीढ़ी पर चढ़ने के बाद व्यक्ति उसी अनुमान से बिना देखे भी स्वाभाविक रूप से चढ़ता चला जाता है |मोदी जी के मामले में हुआ यह कि अंतिम सीढ़ी की ऊँचाई अनुपात से कम थी |जबकि पैर पूर्व निर्धारित अनुमान से चले |

यदि कोई उस उतावले और ज्यादा स्मार्ट बच्चे की तरह होता जो जूतों की हिफाज़त के लिए एक साथ दो सीढियां चढ़कर पेंट फड़वा बैठा, तो बात और है | लेकिन मोदी जी पर यह बात भी लागू नहीं होती |

बोला- चाहे कोई स्मार्ट हो या नहीं, सीढ़ियाँ ऊँची-नीची, समान या असमान कैसी भी ऊँचाई की हों लेकिन सीढियाँ होंगी ज़रूर |सीढियों से कोई बच नहीं सकता |ऊपर चढ़ने और नीचे उतरने दोनों के लिए ही सीढियाँ ज़रूरी हैं |

हमने फिर असमंजस ज़ाहिर करते हुए कहा- फिर भी यह सब हुआ कैसे ?

बोला- आने वाली पीढियाँ कहीं 'अटल घाट' पर फिसल न जाएँ इसलिए मोदी जी अटल घाट की सीढियाँ चेक करने गए थे |अब पता लग गया कि सीढियाँ ठीक नहीं हैं | ठीक कर दी जाएँगीं |इतनी सी बात के लिए तू और तेरे टटपूँजिया बतंगड़ बना रहे हैं |

बात न बात का नाम; कर दी रामायण खड़ी |अब चाय तो बनवा |डबल और कड़क | बड़ी ठण्ड है |








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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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