खुशखबरी.....
पहले खबर और अखबार बड़ी चीजें हुआ करती थीं |कोई भी महत्त्वपूर्ण खबर जल्दी से जल्दी और धमाके से पहुंचाने की कोशिश की जाती थी |१९ दिसंबर १९७८ को जब इंदिरा गाँधी गिरफ्तार हुईं, हम जयपुर के सांगानेरी गेट के पोस्ट ऑफिस के पास अपने अग्रज तुल्य साहित्यकार शरद देवड़ा के साथ उनके अखबार 'अणिमा' के कार्यालय में बैठे हुए थे |उस समय कम्प्यूटर और मेल जैसा कुछ नहीं था |समाचार टेलीप्रिंटर पर आते थे |हर समय दफ्तर में जोर-जोर से टाइप करने की खटर-पटर चलती रहती थी |जैसे ही कागज पर टाइप हुआ 'इंदिरा गाँधी गिरफ्तार' तो दुबले-पतले देवड़ा जी अतिरिक्त सक्रिय हो गए और बोले- फटाफट एक कागज पर बड़े-बड़े अक्षरों के छापो- 'इंदिरा गाँधी गिरफ्तार' और बाँट दो जो भी मिले उसी को |
यह होता था खबरों का रोमांच तथा पाठक और संपादक रिश्ता |
आज तोताराम कुछ उसी रोमांच से चिल्लाता हुआ घर में घुसा- खुशखबरी, खुशखबरी, खुशखबरी |
हमने पूछा- क्या भारत ने कोरोना का टीका बना लिया ?
बोला- उसकी क्या ज़रूरत है ? अपना रिकवरी रेट किसी टीके के बिना ही गौमूत्र, हनुमान चालीसा और 'भाभीजी पापड़' से ही ७०% के करीब जा पहुँचा है |और फिर कोरोना पर महानायक द्वारा दिखाए गए ठेंगे, आठवले के 'गो कोरोना' मन्त्र और मोदी जी के 'गन्दगी भारत छोड़ो' आह्वान से कोरोना के पाँव उखड़ने ही वाले हैं |
हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो पहले कह चुके हैं कि हमें कोरोना के साथ रहना सीख लेना चाहिए |
बोला- राजनीति में दोनों तरह की बातें करते रहना चाहिए |पता नहीं, कब पलड़ा किधर झुक जाए |हो सकता है संक्रमित होने वालों की संख्या दस-पंद्रह दिन में एक लाख प्रतिदिन हो जाए तब ? इसलिए रिकवरी रेट को हाई लाइट करते रहना चाहिए \
हमने कहा- हम तो कोरोना का अच्छा प्रबंधन तब मानेंगे जब संक्रमित होने वालों की संख्या कम होकर मात्र सैंकड़ों में आ जाएगी |सो कम हो नहीं रही है |मरना जीना तो कोरोना के बिना भी चलता ही रहता है |कोरोना से नहीं तो दुर्घटना, मोब लिंचिंग, कुपोषण से मरेंगे |
बोला- बीच की बातें महत्त्वपूर्ण नहीं होतीं |अन्तिम रिजल्ट देखना चाहिए |बच्चा यदि नब्बे प्रतिशत अंक ले आये तो फिर यह मत पूछो की नक़ल करके आए या पढ़कर |तू तो मोदी जी द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दिन से उनके कार्यकाल के अंत तक का हिसाब लगा लेना |जनसंख्या में दस-पन्द्रह करोड़ की वृद्धि ही मिलेगी |आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं ?
वैसे मरने या ठीक होने से बड़ा होता है विश्वास |जैसे ट्रंप ने कहा है कि हम कोरोना के मामले में भारत से अच्छा कर रहे हैं |कोंफिडेंस हो तो ट्रंप जैसा |वैसे इस मामले में हम भी उनसे कम नहीं हैं |कोरोना से निरपेक्ष रहकर घर-घर, गाँव-गाँव जाकर मंदिर के लिए चंदा संग्रहण के लिए लाखों सेवक निकलने वाले हैं |
उस समय देश में कोरोना संक्रमण की क्या स्थिति होगी यह जानना हमारा नहीं 'सियावर रामचंद्र' का है |तू तो बस, यह सोच कि उनमें रामचरण-सेवक और चप्पल चोरों में अंतर कैसे करेगा क्योंकि सभी मास्क में होंगे |
हमने कहा- वह तो मास्क का रंग देखकर पहचान लेंगे |
बोला- भक्त मास्क नहीं लगाते |कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता |वे महाबली ट्रंप की तरह मस्त झूमते हुए आएँगे |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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