हे राम !
'हे राम !' गाँधी के अंतिम शब्द |फिलहाल तो लोग ऐतराज़ नहीं कर रहे हैं | हो सकता है कि कुछ समय बाद जब हम पूरी तरह 'राष्ट्रभक्त' बन जाएँगे तो लोग सिद्ध करने लगेंगे कि वास्तव में गाँधी ने मरते समय 'हे राम' नहीं बल्कि 'अरे मार डाला' या 'अरे, मरा रे !' कहा था |ऐसे में भी यह इसी देश की महानता है जो तुलसी के मुंह से बोलता है-
उलटा नाम जपत जग जाना |
बालमीकि भये ब्रह्म समाना ||
उसी के बल पर कुछआशा बची हुई है |
फिलहाल गाँधी की डेढ़ सौवीं जन्म और पुण्य तिथि दोनों को समेटते हुए सारे देश में आयोजन चल रहे हैं | सुनने वाले तो खैर, पहले प्रसाद के लालच में और अब कोरोना के कारण बेकारी के मारे सौ-पचास रुपए में मिल ही जाते हैं लेकिन गाँधी संबंधित विषयों और बोलने वालों की भी कमी पड़ने लगी है जैसे श्राद्ध में जीमने वाले ब्राह्मणों और गौ-ग्रास के लिए गायों की उपलब्धता कम हो जाती है |सांड ज़रूर बचते-बचाते भी टकरा ही जाते हैं |ऐसे में हिंदी-दिवस पर हमें और तोताराम को एक-दो जगह वक्ता के रूप में निमंत्रण मिल ही जाते हैं क्योंकि हम केवल चाय और एक गमछे में ही मान जाते हैं |
बताते चलें कि हमारा सीकर स्वघोषित 'शिक्षा नगरी' नगरी बना हुआ है जहाँ सभी नौकरी तो करना चाहते हैं 'सरकारी मास्टरी' की लेकिन पहले साइड बिजनेस और रिटायर्मेंट के बाद में पूर्णकालिक 'इंटरनॅशनल स्कूल', पब्लिक स्कूल, कोंवेंट स्कूल आदि चलाते हैं जिसमें परिवार के सभी रसोइये, ट्रक-ऑटो ड्राइवर और गुंडे सदस्य उनके होस्टल, ट्रांसपोर्ट और शारीरिक शिक्षा विभाग में खप जाते हैं |वैसे उन्हें न तो इन तीनों में कोई अंतर पता है और उनके हिसाब से पॉल, व्यवस्था की पोल और राजनीति की संक्षिप्त नाम 'पोल' (साइंस) में कोई फर्क़ नहीं है |उनके लिए सर्वत्र 'पोल ही पोल' है |
तो हम और तोताराम ऐसे ही किसी देशभक्त के स्कूल में गाँधी से संबंधित कार्यक्रम में आमंत्रित थे |कुछ अपनी रटी-रटाई बातें बोलने के बाद हम बच्चों से वैसे ही बातें करने लगे |
तोताराम ने पूछा- बच्चो, गाँधी जी अपने किन दो कामों के लिए प्रसिद्ध हैं ?
बच्चों ने बताया- सत्याग्रह और भारत छोड़ो के लिए |
हमने भी एक प्रश्न किया- लेकिन 'सत्याग्रह' और 'भारत छोड़ो' क्या इतना बुरा और दंडनीय काम है कि उनकी हत्या कर दी गई ?
एक कुछ वरिष्ठ से दिखने वाले बच्चे ने बहुत गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया- वैसे तो ये दोनों काम इतने गलत नहीं हैं लेकिन उन्होंने बिना कॉपी राईट के 'स्वच्छाग्रह' और 'गन्दगी भारत छोड़ो' आन्दोलनों की नक़ल की, चुराया |
हम दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे |किसे,क्या और कहाँ तक समझाएँ ?यह तो वैसे ही हो गया कि कोई हमसे पूछे बिना ही हमारा नाम 'राहु-केतु' रख दे |
फिर भी हिम्मत करके पूछा- लेकिन जिस काम के लिए अंग्रेज सरकार तक ने प्राणदंड नहीं दिया उसके लिए अंग्रेजों के जाने के बाद किसी भारतीय ने क्यों प्राण दंड दिया ?
बच्चा बोला- गाँधी ने लोगों को चौराहों पर विदेशी कपड़े आदि जलाने के लिए प्रेरित करने का अपराध भी तो किया था |अखंड भारत का विभाजन करवाया था जिससे राम, बुद्ध, पाणिनी, नानक, लालकृष्ण अडवानी और मनमोहन सिंह की जन्म भूमि नेपाल अफगानिस्तान और पाकिस्तान में चली गई, इसलिए उसे दंड देने के लिए 'राम' (नाथू) ने अवतार लिया था |
हमने फिर हिम्मत करके पूछा- लेकिन बच्चो, ३० जनवरी २०१९ को अलीगढ़ में गाँधी के पुतले को गोली मारने का अभिनय करने का क्या मलतब है ?
बोला- यह वैसे ही है जैसे हम दशहरे पर रावण का पुतला जलाते हैं |
अब तो हम दोनों की ही हालत खराब हो गई |हम एक खतरनाक भविष्य से भयभीत फटाफट वहाँ से खिसक लिए |
लेकिन क्या बुराई के सामने से खिसक लेने से वह मिट जाएगी ?
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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