Sep 7, 2020

लोकतंत्र की स्काउट हट



लोकतंत्र की स्काउट हट 


चोरी और मानव सभ्यता का आदिकालीन संबंध है | किसी समाज के विचार, भाषा, कहावतें, शब्द, उपमाएँ आपस में चुराई जाती रही हैं |तुलसी जैसे कुछ भले लोग 'नाना पुराण...' कह कर स्वीकार कर लेते हैं तो कुछ बड़ी बेशर्मी से अकड़ जाते हैं |अपने जन्म से पहले चर्चित हो चुके वीरेन्द्र मिश्र का एक गीत चुराने वाले से जब हमने कहा तो बोले- हो सकता है उन्होंने मेरा गीत चुराया हो |अभी एक दिन बात चल रही थी तो हमने कहा कि सरकर ने स्वच्छता अभियान के बहाने गाँधी का चश्मा कब्ज़ा लिया | उन सज्जन ने उत्तर दिया- यह सब तो चलता रहता है | गाँधी जी ने भी मोदी जी के 'स्वच्छाग्रह' और 'गंदगी भारत छोड़ो'  नारों का 'सत्याग्रह' और 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' के नाम से उपयोग किया था |

ऐसे में हमारी हालत बहुत खराब हो जाती है |क्या कहें और क्या न कहें ? एक बार किसी ने कहा- जब रावण सीता का हरण करके ले जा रहा था तब तू क्या कर रहा था ?
अब इस 'हेतु हेतु मद्भूत' का क्या उत्तर हो सकता है ? हमने भी वैसा ही तरीका अपनाते हुए कहा- जिस जटायु ने बिना बात किसी के फटे में टांग फँसाकर जान दे दी तो तुमने उसके परिवार को क्या कोई पॅकेज दिया था ? उसके परिवार के किसी सदस्य को राम की सेना में नौकरी दी थी ? 

हम दुनिया के इसी गोरखधंधे के बारे में विचारों में उलझे हुए थे कि तोताराम आ गया |

हमने कहा- तोताराम, क्या ज़माना आ गया ? मेहनत करें मोदी जी और फायदा ले जाएँ ट्रंप साहब !

बोला- दोस्तों में सब चलता है ? फिर भी बता तो सही ट्रंप ने चीन की तरह झूला झूलते- झूलते क्या झटका दे दिया, मोदी जी को ?

हमने कहा- ट्रंप ने मोदी जी का  'आत्मनिर्भर' वाला नारा चुरा लिया है |वे भी कहने लगे हैं कि अमरीका को आत्मनिर्भर बनाएंगे | 

बोला- आज के समय में कोई आत्मनिर्भर नहीं है | भारत हो या अमरीका, सभी एक दूसरे से व्यापार से ऐसे जुड़े हुए हैं कि एक तरफ युद्ध चलता रहता है तो दूसरी तरफ व्यापार भी बदस्तूर चलता रहता है |जैसे कि अभी भारत ने चीन से लाखों कोरोना टेस्टिंग किट मंगवाए हैं |अरबों डालर की जेनेरिक दवाइयों का कच्चा माल चीन से भारत आ ही रहा है |अभी फ़्रांस से राफाल आए ही हैं |अमरीका से भी ७५ हजार करोड़ का सेक्योरिटी सिस्टम खरीदने का समझौता हुआ ही है |

हमने कहा- तो फिर आत्मनिर्भर वाला नारा या नाटक क्या है ?



पौधारोपण घोटाला भी सूखा – नहीं होगी ...

बोला- ये सब लोकतंत्र की स्काउट हट हैं |

हमें बड़ा अजीब लगा |पूछा- बात आत्मनिर्भरता और व्यापार की चल रही है उसके बीच में यह 'स्काउट हट' कहाँ से आ गई ?

बोला- मेरे एक प्रिंसिपल थे | जब कभी भी कोई निरीक्षक स्कूल में आता था तो उससे 'स्काउट हट' का शिलान्यास करवाते थे |उसके बाद वे पत्थर वापिस उसी ढेर में रखवा दिए जाते थे | संयोग से वही निरीक्षक दुबारा आ जाता था और पूछ लेता था- वर्मा जी, फिर वही....|तो वर्मा जी कहते तो फिर सर, पारिजात का एक पौधा अपने कर कमलों से लगा दीजिए |

सोचते-समझते नाटक देखने से सिर दर्द होने लगता है |ऐसे नाटक देखते समय अक्ल (यदि हो तो ) व्यर्थ खर्च नहीं करनी चाहिए |

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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