Sep 22, 2020

लिखावट उर्फ़ विश्वास


लिखावट उर्फ़ विश्वास 


हम तो मोदी जी के 'बिना बात घर से न निकालने' की सलाह से पहले भी बिना बात कहीं नहीं जाते थे |जिनकी घर में कोई नहीं सुनता या सुनने वाला नहीं होता, उनकी तो मजबूरी होती है | बच्चे ड्यूटी पर जाते हैं तो आते समय सभी काम करते हुए आते हैं |बैंक, पोस्ट ऑफिस ज्यादा दूर नहीं हैं सो हम हो आते हैं | दवाई वाले के हम स्थायी ग्राहक हैं सो घर भिजवा देता है |


तोताराम आज सवेरे नहीं आया |अभी दस-साढ़े दस बजे दरवाजा खटका |वैसे यह समय न तो अखबार वाले का है, न ही दूध वाले का और न ही डाकिये के आने का |दरवाजा खोला तो तोताराम |

पूछा- सुबह क्यों नहीं आया ?

बोला- आज बाज़ार जाना है तो सोचा दो चक्कर लगाकर क्या करूंगा |बाज़ार जाते हुए ही 'हाय, हैलो' कर चलूँगा |

हमने कहा- हम सब समझते हैं |अभी कोई चाय नहीं बनेगी |

बोला- फिर वही तुच्छ बात |अभी चलता हूँ | कुछ मँगवाना हो तो बोल  |

हमने कुछ चीजों के नाम लिखकर कागज तोताराम को थमा दिया |उसने कागज हमें लौटाते हुए कहा- यह क्या लिखावट है !ज़रा ढंग से लिख |न तो तू डॉक्टर है और न ही दुकानदार कोई केमिस्ट जो कुछ भी दे देगा और तू खा लेगा |न ही तू मूसा है और न ही दुकानदार खुदा जो तेरा लिख पढ़ लेगा |अब तो ओडिशा में कोर्ट ने भी एक डाक्टर का नुस्खा न पढ़ पाने पर आदेश दिया है कि डॉक्टर साफ़, बड़े और कैपिटल अक्षरों में लिखा करें |


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हमने कहा- हो सकता है कुछ डॉक्टरों की लिखावट ठीक न हो लेकिन अधिकतर तो इसलिए घसीट कर लिखते हैं कि उन्हें  दावा के नाम की सही स्पेलिंग नहीं आती |बहुत से पंडित भी तो मन्त्र इस तरह बोलते हैं कि यजमान और इकट्ठे हुए भक्त गण ही क्या भगवान भी नहीं समझ पाता होगा |

बोला- एक हिसाब से तो ठीक है |संदेह का लाभ मिल जाता है जैसे किसी परीक्षार्थी की लिखावट समझ में न आने पर बोर्ड में परीक्षक यह सोचकर उसे पास कर देता है कि क्या पता ठीक ही लिखा होगा |पास ही कर दो |बिना बात रीचेकिंग में चक्कर तो नहीं पड़ेगा |

हमने कहा- यह बदमाशी यहीं नहीं है |एक बार हमें डायरिया हो गया |कुछ गोलियां मंगवाईं जिन पर इतने छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा था कि हमसे न तो उसका मूल्य पढ़ा गया और न ही खुराक की मात्रा |

बोला- यह तो चलो, दवा वाले से पूछ सकते हैं लेकिन नेता अपने भाषणों में ऐसी-ऐसी बातें कर जाते हैं जिन्हें समझना तो वकील के वश का भी नहीं होता |२०१४ में चुनाव से पहले पंद्रह लाख रुपए खाते में भेजने के वादे को गड़करी ने जुमला कहकर पीछा छुड़ा लिया |

हमने कहा- तभी तो कहा गया है कि अंधविश्वास सुखमय जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है | फिर चाहे डाक के डिब्बे में पात्र डालना हो या कोई अनुष्ठान या किसी दवा का सेवन |या फिर किसी सामान्य या प्रधान सेवक का चुनाव | सब कुछ राम भरोसे |जबकि राम भी भी तो एक विश्वास ही है |







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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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