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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
इन्दौरी कौवे और राजस्थानी मोर
तोताराम ने अखबार हमारे सामने पटकते हुए कहा- देख, तू यहाँ दुनिया के चर्चे करता रहता है और उधर इंदौर में ५० कौवे और राजस्थान के नागौर में ५२ मोर मृत पाए गए हैं. अब इनसे पता नहीं, किस प्रकार का कोरोना फैलेगा ? अभी कोरोना कोविड-१९ से मोदी जी अपने धाकड़ व्यक्तित्त्व से किसी प्रकार निबटने वाले हैं कि यह एक और नई आफत !कैसे और कौनसा इलाज किया जाए इनका ? पता नहीं, ताली-थाली बजाने से नियंत्रित होगा या नहीं.हो सकता है गोबर का लेप और गौमूत्र का पान करना पड़े.
बोला- कैसी साम्प्रदायिकता, कट्टरता और अंधविश्वास की बात करता है ? क्या पशु-पक्षियों, दूध-पानी और रंगों के कोई जाति-धर्म होते हैं ?
हमने कहा- होते क्यों नहीं, क्या गाय मुसलमान हो सकती है ? क्या बकरी ब्राह्मण हो सकती है ? क्या कोई मुसलमान सूअर का मुसलमान होना स्वीकार कर सकता है ? क्या कोई मुसलमान भारत में आ रहे वेक्सीन को स्वीकार करेगा जब तक वह सूअर से लिए गए पदार्थ से मुक्त और हलाल सिद्ध नहीं हो जाता ? यदि किसी राष्ट्रवादी सवर्ण हिन्दू खुले आम गाय की मज्जा से बनने वाला टीका लगवा लेगा ? आखिर जब तक इनका धर्म निर्धारण नहीं हो जाता तब तक हमारी तो संवेदना ही जागृत नहीं होती.
बोला- क्या तुझे इतने भर से संतोष नहीं होता कि कौवा एक घरेलू पक्षी है. जो घरों में आता है, बच्चों से छेड़खानी, शैतानी करता है. हमारा तो भक्त कवि कितने गर्व से कहता है-
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी.
और हमारे काकभुशुण्डी तो अमर हैं, गरुड़ जी तक उनसे ज्ञान लेने जाते हैं. और राजस्थानी विरहिणी तो पति का सन्देश लाने पर कौवे की चोंच सोने से मँढ़वाने का वादा करती है. यदि इन्द्र का पुत्र जयंत कौवा बनकर सीता के पैर पर चोंच नहीं मारता तो राम के बाण का अमोघपना कैसे सिद्ध होता ?
हमने कहा- लेकिन तूने कौवों और मोरों का धर्म और जाति तो बताये ही नहीं तो हम क्या ज़वाब दें.
बोला- कौवे इंदौर के हैं जहां से हनुमान भक्त कैलाश विजयवर्गीय आते हैं, और जहां उनके सुपुत्र किसी के साथ भी 'दे दनादन' कर देते हैं. वहाँ के ये कौवे या तो देशद्रोही धर्म के हैं जो मरकर भाजपा शासित मध्यप्रदेश में कोई नई प्रकार का बर्ड फ्लू फैलाने आए हैं.
हमने पूछा- और मोर ?
बोला- मोर तो हिन्दू के अतिरिक्त किसी और धर्म का हो ही नहीं सकता. क्योंकि कहीं मोर कार्तिकेय और सरस्वती का वाहन है, तो महान हिन्दू राष्ट्र का राष्ट्रीय पक्षी है, और यदि हिन्दू नहीं होता तो क्या इतने प्रेम-भाव से मोदी जी के हाथ से दाना चुगने आता ? हो सकता है राजस्थान की किसी गैर देश भक्त पार्टी के नेता ने मोरों को कोई ज़हरीला दाना खिला दिया हो.
हमने कहा- तोताराम, कौवों में बड़ी एकता होती है. कुछ अज्ञात बीमारी से मरे हैं तो कुछ इनके शोक में काँव-काँव करके मर जाएंगे.
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अभी तो सूरज उगा है
सुबह हवा चल पड़ी. दो-चार बूँदें भी गिरीं. इसलिए तोताराम विलंब से आया.
आते ही बोला- मास्टर, भाभी को बोल, जल्दी चाय बनाए, कड़क.
हमने कहा- अर्ज़ किया है,
तू चाय भी पा जाएगा
खाने को भी मिल जाएगा
कुछ धैर्य धर, संतोष रख
यूँ प्राण क्यों खाने लगा है
अभी तो सूरज उगा है
बोला- तेरा दिमाग खराब है. ऊपर देख, सूरज दस हाथ चढ़ आया है. और लगा रखी है-अभी तो सूरज उगा है. लगता है मेरे आने से पहले तू एक-दो तिल के लड्डू भी खा चुका है और मुझे टरकाने के लिए 'अभी तो सूरज उगा है'. जाड़े के दिन वैसे ही छोटे होते हैं. काम करने वाले सूरज उगने से पहले काम में लग जाते हैं और तेरे जैसे आलसी कहते रहते हैं-
अभी उठकर क्या करेंगे
अभी तो सूरज उगा है.
चाय के दो चार कप पी
फिर रजाई में घुसेंगे
एक छोटी नींद लेकर
दोपहर तक ही उठेंगे
अभी तो सूरज उगा है.
सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय
पवन जगावत आग को दीपहिं देत बुझाय .
तोताराम ने भावुक होकर हमारे पैर छुए, बोला- मास्टर, बुरा मान गया. मज़ाक करने और किसके पास जाऊँ ? मज़ाक करके ही तो दिल बहलाना है. सूरज तो रोज ही उगता है. भरे पेट वालों को उत्सव और नाटक का बहाना चाहिए. ऐसे बात करेंगे जैसे सूरज को इन्होंने ही उगाया है. और सूरज उग आया तो पता नहीं कौनसा चमत्कार हो गया. यह तो सृष्टि का सामान्य नियम है. सूरज और चाँद क्या कभी छुपते-उगते, घटते-बढ़ते हैं ! हर क्षण दुनिया में कहीं न कहीं सूर्योदय और सूर्यास्त होते रहते हैं. मानो तो हर क्षण नया जन्म है, हर क्षण नया सूर्योदय है, हर क्षण नया साल है. और फिर कौन सोता है ? यः जागर्ति सः पंडितः . मोदी जी को बेरोजगारी, भय और फूट के समय में घबराए हुए देश को प्रेरित करने के लिए, धैर्य दिलाने के लिए लिखना पड़ा है कि
अभी तो सूरज उगा है.
धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा. अच्छे दिन भी आएँगे, सबके खातों में १५-१५ लाख भी आएँगे. जब सूरज उगने से पहले अँधेरे में ही कमल खिल गया. सारा दिन सामने पड़ा है. अभी तो सूरज उगा है. दोपहर तक पता नहीं कमल कितना खिल जाएगा.
लेकिन तेरी कविता से मुझे लगा कि तू मुझे टरकाने के लिए कविता सुना रहा है. वरना क्या मुझे पता नहीं कि तिल के लड्डू बनें और तोताराम को न मिलें.
हमने कहा- तोताराम, बात तो सही है. हम भी कविता लिखना चाहते थे, प्रेम की कविता. लेकिन मौका ही नहीं मिला.
बोला- कोई बात नहीं. मेरी तरफ से एक और बंद भी सुन-
व्यर्थ की जल्दी करें क्यों
हड़बड़ाहट में मरें क्यों
चाय पी चर्चा करेंगे
बात करके फिर पियेंगे
पी-पी के चर्चा करेंगे
अभी तो सूरज उगा है
हमने कहा- तोताराम, आज तूने अपनी कविता के दो बन्द पेल दिए. अगली बार तू कुछ नहीं बोलेगा और चुपचाप हमारी कविता सुनेगा.
बोला- लेकिन अगली साल के पहले दिन मतलब १ जनवरी २०२२ को, अभी नहीं.
मामा खतरनाक मूड में है
क्या संबोधन करें, समझ में नहीं आ रहा है. वैसे हम तो भूदान वाले और डाकुओं से आत्मसमर्पण करवाने वाले विनोबा जी की तरह समस्त जगत के कल्याण की कामना वाले 'जय जगत' संबोधन में विश्वास करते हैं. आपको पता ही है कि चम्बल के बीहड़ों में डाकू रहा करते थे. चम्बल राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा भी बनाती है. हमने अपनी एक ग़ज़ल में लिखा है-
जाने दस्यु-मुक्त कब होगी
लोकतंत्र की चम्बल, भगतो !
कल आपने अटल जी के जन्म दिन २५ दिसंबर २०२० को 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाते हुए बड़े सजे-धजे 'किसान सम्मेलन' के मंच से सुशासन के लिए मध्य प्रदेश के तरह-तरह के माफियाओं को चेतावनी दे डाली और अपनी मनः स्थिति के बारे में भी बता दिया. कहा- आजकल अपन खतरनाक मूड में हैं। मशल पाॅवर का, रसूख का इस्तेमाल करके कहीं अवैध कब्जा कर लिया, कहीं भवन टांग दिये, कहीं ड्रग माफिया, सुन लो रे, मध्यप्रदेश छोड़ देना, नहीं तो जमीन में गाड़ दूंगा, 10 फीट, पता नहीं चलेगा, कहीं भी।
अटल जी तो २०१८ में दो साल पहले ही गुज़रे हैं लेकिन आप तो १५ साल से मध्य प्रदेश की जनता को सुशासन दिए चले आ रहे हैं. हाँ, बीच में सवा साल के लिए कमलनाथ ज़रूर आए थे. लगता है उन्होंने आपके द्वारा १४ साल से स्थापित सुशासन को सवा साल में ही समाप्त कर दिया. अब आपको फिर से सुशासन स्थापित करना है, बिगड़े हुए को सँवारना है. कोई किसी की करी-कराई मेहनत को इस तरह खराब आकर दे तो गुस्सा तो आता ही है.
आपके इसी गुस्से के कारण हम तय नहीं कर पा रहे हैं कि किस संबोधन से पत्र लिखें. 'जय जगत' ही सुरक्षित लगा.
आपने सितम्बर २०१८ में कमलनाथ के पद संभालने से पहले तक के व्यापम-पापम सभी माफिया समाप्त कर दिए थे. अब इतनी जल्दी इतने माफिया कहाँ से आ गए ? वैसे अवसर किसान सम्मेलन का था. यह मौसम गेहूँ की बुवाई का है इसलिए किसान या तो दिल्ली की सीमा पर डटे हैं या अपने खेतों में गेहूँ की बुवाई कर रहे हैं. ऐसे समय में कौन किसान आए हैं या उन्हें बुलाने का क्या मक़सद है ? लगता है दिल्ली में धरना दिए हुए वास्तविक किसानों के खिलाफ शक्ति संतुलन का प्रयास है. तब यह दस फीट नीचे गाड़ देने का इशारा किसकी तरफ है ? निश्चित ही किसानों का समर्थन करने वाले लोगों की तरफ है. तो क्या समाज में लोग एक दूसरे के साथ सुख-दुःख में खड़े न हों ? फिर एक राष्ट्र का मतलब क्या है ? क्या मुसलमान के साथ हिन्दू और दलित के साथ ब्राह्मण खड़ा नहीं हो सकता ? क्या सत्ताधारी दल की जय बोलना ही देश की एकता और लोकतंत्र है.
इस देश में माफियाओं की कहीं कमी नहीं है. कोई भी क्षेत्र इनसे अछूता नहीं है. माफिया के बिना चुनाव में जिताऊ और कमाऊ लोग कहाँ से मिलेंगे ? पैसे के बिना चुनाव नहीं लड़े जा सकते. नौकरी व ईमानदारी से मेहनत करने वालों का तो गुजारा चल जाए वही बहुत है. राजनीतिक पार्टियों को चंदा कहाँ से दें. वह तो माफिया ही देंगे. फिर भी क्या मध्य प्रदेश में कोई दो-चार लोग ही थोड़े हैं जिन्हें आपको दस फीट नीचे गाड़ना पड़ेगा. बहुत मुश्किल है इतने गड्ढे खोदना. आजकल कोरोना के मरीजों को दफनाने के लिए ही कब्रें खोदने वाले नहीं मिल रहे हैं. अस्पताल वाले यूं ही जे. सी. बी. मशीन से गड्ढा खोदकर पटक आते हैं. कइयों की लाशें तो वैसे ही नालों में फेंक दी गईं. आप कम से कम ढंग से ज़मीन में तो गाड़ेंगे. दस फुट पर्याप्त है. पहले कभी-कभी कुछ लोग छोटे बच्चों को, जिनका दाहसंस्कार नहीं किया जाता, दो-तीन फुट गड्ढा खोदकर ही गाड़ आते थे. कई बार तो ऐसे बच्चों को कुत्ते निकाल लेते थे. बड़ा फज़ीता होता था. आपकी सज्जनता है कि आप उसे दस फुट नीचे गाड़ेंगे. फावड़े से तो बड़ी संख्या में इतने गहरे गड्ढे खोदना मुश्किल है. इसके लिए तो हनुमान जी वाली तकनीक ठीक रहेगी-
जेहि गिरि चरण देइ हनुमंता
चलेउ सो गा पाताल तुरंता .
एक ठोकर मारी और दस क्या, हजारों फुट नीचे.
लेकिन क्या इन माफियाओं में सभी मुसलमान और ईसाई ही हैं ? क्या किसी हिन्दू को दफनाना उचित होगा ? बेचारे को नरक में जाना पड़ेगा.
जैसा कि हमने ऊपर कहा- सुशासन का मतलब प्रेम और नियम से काम करना. गुस्सा तो शैतान का काम है. दस फुट नीचे गाड़ने में अभिमान झलकता है. अभिमान को तुलसी दास जी पाप कहते हैं- पाप मूल अभिमान. आधा सुशासन तो शांति से अपनी बात कहने और शांति से दूसरे की बात सुनने से ही हो जाता है. दिल्ली में किसानों की समस्या इतनी बड़ी नहीं है. बस, बिना बात नाक का सवाल बना लिया गया है. यह ठीक है कि मोदी जी किसी का भी भला और विकास के अलावा कुछ और करना ही नहीं चाहते. लेकिन आपको पता होना चाहिए कि सेवा-सुश्रूषा दोनों शब्द साथ-साथ आते हैं. मतलब जिसकी सेवा कर रहे हो उसकी बात शांति से सुनो भी- सुश्रूषा. केवल सुनना ही नहीं, ढंग से सुनना.
हम तो मास्टर हैं. बच्चों के बीच बड़े हो सकते हैं लेकिन आप जैसे बड़े नाम और बड़े पद वालों के सामने तो हम नादाँ ही हैं. फिर भी उत्सुकता है कि जिन्हें आप दस फुट नीचे गाड़ेंगे उन्हें जिंदा ही गाड़ेंगे या मारकर ? किसी कोर्ट से पूछेंगे या फिर खुद ही फैसला सुना देंगे- मोब लिंचिंग वालों की तरह. आपने कहा- पता भी नहीं चलेगा. मतलब गुपचुप यह काम करेंगे. जब चेलेंज देकर गाड़ रहे हैं तो पता न चलने की क्या बात है ? हमारे ख़याल से तो उन गड्ढों पर बोर्ड लगाया जाए कि फलां-फलां माफिया को श्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश ने सुशासन के लिए फलां-फलां की उपस्थिति में दस फुट नीचे जिंदा गाड़ दिया. सनद के लिए फोटो भी रख लिया जाए तो क्या बुरा है. पहले राजा लोग जिस शेर का शिकार करते थे उस पर पैर रखकर फोटो भी खिंचवाया करते थे.
मध्य प्रदेश में शीघ्रातिशीघ्र सुशासन की कामना के साथ,
आपका
रमेश जोशी