अमरीका का चीयरलीडर
पढ़ा कि अमरीका के प्रसिद्ध पत्रकार बॉब वुडवर्ड ने अपनी आने वाली पुस्तक Rage (गुस्सा ) में गुस्सा दिखाते हुए लिखा है कि उन्होंने अमरीका के प्रसिद्ध पत्रकार बॉब वुडवर्ड ने अपनी आने वाली पुस्तक 'रेज' (गुस्सा) में गुस्सा दिखाते हुए लिखा है कि ट्रंप ने कोरोना वायरस के घातक नेचर को जानबूझकर छिपाया. वहीं आलोचक आरोप लगाते रहे हैं कि ट्रंप दोतरफा बात करते हैं और उन्होंने हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेला है जिन्हें बचाया जा सकता था. राजनीतिक गलियारे में 'Trump lied, people died' (ट्रंप ने झूठ बोला, लोग मरे) की गूंज है.
ट्रंप ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा, 'बात यह है कि मैं देश के लिए एक चीयरलीडर हूँ. मैं अपने देश से प्यार करता हूं और मैं नहीं चाहता कि लोग डरें. मैं विश्वास दिखाना चाहता हूँ, मैं ताकत दिखाना चाहता हूँ'.
ट्रंप के इस बयान से हमारी हालत तो नायिका के घूँघट से झांकते रोशन चेहरे के लिए लिखे गए एक राजस्थानी गीत, 'थारै घूँघटिये में सोळा ऊग्या ऐ मरवण' जैसी हो गई. एक ही झटके में सब भरम भाग गए. घूँघट के पट खुल गए. प्रकाश-पिया मिल गए. जन्नत की हक़ीकत उजागर हो गई. दुनिया का महाबली और हालत चीयर लीडर जैसी.
आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, आज हमें नेताओं की असलियत पता चल गई है. वे वास्तव में हमारी सहानुभूति के पात्र हैं और एक हम हैं कि बेचारों को सुबह-सुबह चाय पी-पीकर कोसते रहते हैं.
बोला- क्यों क्या हुआ ? कहीं तुझे भी कंगना की तरह उज्जवल भविष्य ने चकाचौंध में तो नहीं डाल दिया ? कहीं मंत्रीपद के ख्वाब तो नहीं देखने लग गया जैसे कि जज सरकार के पक्ष में फैसला देकर राज्यसभा में चले जाते हैं.
हमने कहा- भले की आडवानी जी की कोई महत्वाकांक्षा बची हो लेकिन हमारी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है. बस, अस्सी के हो जाएं और एक ही झटके में पेंशन को सवाया होता देख लें.
हाँ,आज ट्रंप का बयान पढ़कर समझ आया कि नेताओं को जनता की ख़ुशी और हौसला अफजाई के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता ? ट्रंप ने खुद को अमरीकी जनता का चीयर लीडर स्वीकार किया है.
बोला- यह सच है कि कोई हारे, कोई जीते; छक्का लगे या विकेट गिरे लेकिन चीयर लीडर्स को उछलना और कमर मटकाना ही पड़ता है. चीयर लीडर्स की हालत सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाचने वाली किराए की पतुरिया जैसी होती है.हर कोई उसे सरलता से सुलभ और मुफ्त का माल समझता है. कई बार तो बेचारियों को न चाहते हुए भी पापी पेट के लिए खिलाड़ियों की गोद में बैठने तक का नाटक करना पड़ता है. लेकिन नेताओं की स्थिति खेल वाली चीयर लीडर्स जैसी नहीं है. ये तो बस दिखाने के लिए नाटक करते हैं. झूठा गुस्सा, झूठा रोना-गाना. तुलसी के शब्दों में-
झूठ हि लेना झूठ हि देना
झूठ हि भोजन झूठ चबैना.
चीयर लीडर्स की तरह नहीं तो भी नेताओं को भी बड़े-बड़े सेठों की गोद में बैठना तो पड़ता है.
हाँ, कभी कभी की थोड़ी-सी चीयर लीडरी के बदले नेताओं को जो रुतबा मिलता है वह बहुत बड़ी बात है. पैसे की तो ट्रंप के पास पहले भी कोई कमी नहीं थी लेकिन राष्ट्रपति बनते ही एक ही झटके में महाबली बन गए. इस प्रकार चीयर लीडरी जिसमें थोड़ा सा नाच दिखाने के बदले में दुनिया को नचाने का अधिकार मिल जाता है. तभी तो पाँच करोड़ के नोबल के लिए ५०० करोड़ देने वाले और लाख-पचास हजार रुपए वाली सांसदी के लिए के लिए १००-५० करोड़ देने के लिए तैयार श्रेष्ठि वर्ग मूर्ख नहीं है.
हमने कहा- लेकिन इस साफगोई के लिए ट्रंप को दाद तो देनी पड़ेगी. उनके अलावा भी तो बहुत से लीडर हैं लेकिन किसी ने ऐसा साहस नहीं दिखाया.
बोला- भले ही ट्रंप ने इसे अब स्वीकार किया हो लेकिन चीन ने तो दो महिने पहले ही कह दिया था कि ट्रंप भारत के लिए चीयर लीडर का काम कर रहे हैं.
हमने कहा- भारत के मामले में यह उपमा उचित नहीं है. इस समय दुनिया में यदि जय और वीरू की तरह किसी की दोस्ती है तो वह ट्रंप और मोदी जी की है .'हाउ डी मोदी' और 'नमस्ते ट्रंप' जैसे कैसे प्यारे-प्यारे कार्यक्रम करते हैं. एक दूसरे के चुनाव का प्रचार करते हैं |वैसे कुछ भी कहो ट्रंप हैं बहुत भोले. लाइजोल के इंजेक्शन को कोरोना का इलाज बता दिया.
बोला- यह भोलापन नहीं है. यह भोली जनता को लुभाने की एक अदा है. भोलापन दिखाने पर जनता समझती है कि भले ही बेचारे से कोई अच्छा काम न न बन पड़ा हो लेकिन है भोला आदमी. और भोला आदमी भला तो होता ही है. लालू जी क्या कोई भोले आदमी हैं ? लेकिन सामान्य लोगों की तरह उन्हें कपड़े फाड़ होली खेलते हुए देखकर जनता फ़िदा हो जाती है.
नेहरू जी तो धूर्त थे जिन्होंने देश की ज़मीन पर कब्ज़ा होने दिया या चीन को बेच दिया लेकिन आज चीन हमारे भोले और भले सेवकों की भलमनसाहत का
फायदा उठाकर सीमा पर दादागीरी कर रहा है. इसमें गलती हमारे भोले चीयर लीडरों की नहीं चीन की है. हम तो मानवता, विनम्रता, सज्जनता और भोलेपन और मासूमियत से झूला झूल रहे थे और चाय पी पिला रहे थे.
अमरीका में तो एक चीयर लीडर है. हमारे यहाँ तो मजदूर, किसान और कारीगरों की बात और है. उन्हें तो काम किए बिना रोटी मिलनी नहीं लेकिन इन के अलावा अधिकतर विद्यार्थी, शिक्षक, नेता, बुद्धिजीवी, मीडिया चीयर लीडरी की प्रतियोगिता में शामिल है. देशभक्ति व्यक्तिभक्ति में बदल गई है और प्रमाणस्वरूप दिखाने के लिए एक ही प्रकार की नौटंकी पूरे देश में चल रही है.
कोरोना के इलाज के लिए थाली-ताली बजाना-बजवाना, भाभीजी पापड़ का नुस्खा सुझाना कोई छोटी चीयर लीडरी है ? इनके सामने लालू जी नौसिखिए लगते हैं.
हमने कहा- यह तो वही हो गया, जंगल में लोकतंत्र था और किसी हवा के चलते एक बन्दर वहाँ का राजा चुन लिया गया. एक भेड़ उसके पास गई और बोली- राजाजी, एक भेड़िया मेरे बेटे को खा रहा है. आप कुछ कीजिए.
बन्दर एक डाली से दूसरी डाली पर छलाँग लगाना शुरू कर दिया. भेड़ ने फिर फ़रियाद की. बन्दर ने फिर छलाँग लगाना शुरू कर दिया. भेडियों ने बकरी के बच्चे को खा लिया.
दूसरे जानवरों ने भेड़ का मज़ाक उड़ाते हुए कहा- गई थी ना राजा जी के पास ! मिल गया न्याय ?
बकरी बोली- यह तो एक्ट ऑफ़ गॉड है. भेड़िये मेमनों को नहीं खाएंगे तो क्या एलोवेरा ज्यूस पियेंगे ? लेकिन राजाजी ने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी. एक घंटे तक एक से दूसरी डाल पर छलाँग लगाते रहे. पसीने में तरबतर हो गए थे बेचारे.
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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