Feb 26, 2021

देखा ?


देखा ?


तोताराम ने आते ही प्रश्न उछाला, -देखा ?

हमने कहा- हाँ, देखा. लाल किले पर निशान साहब चढ़ाते हुए देखा. पुलिस द्वारा हुडदंगियों को ससम्मान लाल किले में प्रवेश दिलाते भी देखा. लेकिन सदैव भी भांति ट्वीट करने वाले पकड़ में आ गए, उन पर एफ.आई.आर. हो गई और जो झंडे के पोल पर चढ़ते दिखे थे वे सदैव भांति 'अज्ञातों' की श्रेणी में चले गए. 

बोला- उसमें क्या ख़ास बात है.  विवादित ढाँचे पर चढ़े लोग भी तो 'अज्ञात' हो गए और जो उन्हें शांति स्थापना और सर्व-धर्म-सद्भाव के लिए इकठ्ठा करके लाए थे वे नेता भी बरी हो गए. मैं तो आज की मुख्य खबर की बात कर रहा था. ट्रंप का नाम प्रस्तावित हो गया है.

हमने कहा- लेकिन 'भारत रत्न' तो इस बार किसी को नहीं दिया गया. अडवानी जी को भी नहीं. अब नाम पस्तावित करने से क्या लाभ. 

बोला- भारत रत्न से भी बड़े पुरस्कार, नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन.

हमने कहा- नामांकन तो ग्रेटा और एलेक्सेई नेवेलनी का भी हुआ है. हो सकता है शीत युद्ध की शैली में  नेवेलेनी को मिल जाए लेकिन जो बात ट्रंप के मामले में है वह अद्भुत है. शांति पुरस्कार के लिए चिंतन के नए द्वार खोलने वाली है.

बोला- कैसे ?

हमने कहा- यदि द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी जीत जाता तो क्या पता चर्चिल की जगह हिटलर को शांति का नोबल मिल जाता. यदि ट्रंप चुनाव जीत जाते तो उनके लिए अरब इज़राइल समझौते पर शांति का नोबल पक्का था. 

बोला- लेकिन ट्रंप ने लोकतंत्र बचाने की जो साहसिक कोशिश की वह भी कोई छोटी बात नहीं है. कल्पना कर यदि ट्रंप केपिटल हिल को विवादित ढांचे की तरह पूरी तरह ध्वस्त करवा देते और न्यायालय ट्रंप का पक्ष ले लेता तो ? 

हमने कहा- तो केपिटल हिल में घुसकर उत्पात मचाने वाले, बैल के सींग लगा कर लोगों को डराने वाले सभी अज्ञात लोगों के नाम पर बरी हो जाते और उनके पक्ष में फैसला देने वाले जज किसी विभाग के मंत्री या राज्यपाल बना दिए जाते. वैसे क्या अद्भुत समानता है कि केपिटल हिल में भी सुरक्षा कर्मचारी और पुलिस हुड़दंगियों को उसी शैली में घुसा रहे थे जिस शैली में सी आर पी वाले दीप सिद्धू एंड पार्टी को लाल किले में घुसा रहे थे. 

बोला- इस विषय में कुछ और बता.

हमने कहा- क्या बताएं, हमें तो नेवेलनी की चिंता लगी हुई है. कहते हैं, पहले ज़हर दिया गया अब हो सकता है कोई अज्ञात व्यक्ति बंदूक लहराता-लहराता गोली का शिकार न बना दे. केनेडी की हत्या आजतक रहस्य बनी हुई है कि नहीं.



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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