Feb 10, 2021

शक्ल का क्या है


 शक्ल का क्या है 



बंगाल का चुनाव क्या आ गया, जीतने के लिए हथियार उठाने से लेकर विश्वभारती में साड़ी के पल्लू तक पर रिसर्च होने लगी. सुभाष वाली वेशभूषा में सलामी लेते या देते दिल्ली और पोर्टब्लेयर में मोदी जी के फोटो भी खूब खिंचे. और अब राष्ट्रपति भवन में नेताजी के चित्रों का अनावरण किया जा रहा है. 

हमने कहा- तोताराम, जो चित्र लगाया गया है उसके बारे में कुछ लोगों का कहना है कि वह सुभाष पर बनी फिल्म में काम करने वाले किसी अभिनेता का है. सुभाष से उसकी शक्ल ही नहीं मिलती.

बोला- शक्ल का महत्त्व है या गुणों का ? कल को तू कहेगा अधनंगे और टकले गाँधी अच्छे नहीं लगते. क्या उनकी शक्ल किसी खूबसूरत हीरो जैसी कोई फोटो लगा दें. और किसी की शक्ल सदा एक जैसी रहती है क्या ? तुझे याद नहीं शायद १९६० में इलस्ट्रेटेड वीकली में गामा के बुढ़ापे और जवानी दोनों की फोटो छपी थी.किसे सच मानें ?

हमने कहा- फिर भी सुभाष के तो फोटो उपलब्ध हैं. कई लोगों ने उन्हें देखा भी है तो अच्छा होता, कोई पूर्णतया प्रमाणिक फोटो लगाते.

बोला- शक्ल का क्या है ? शिव, गणेश और हनुमान को किसने देखा है ? और क्या शिव एक गोल पत्थर, गणेश मिट्टी का ढेला या हनुमान सिंदूर लगी तिकोनी आकृति मात्र है ? ये तीनों तो कोई ढंग से आकृति भी नहीं है. पोस्ट ऑफिस में मिलने वाली गंगाजल की शीशी केवल एक भाव नहीं तो और क्या है ?  यदि भाव पवित्र नहीं है तो चाहे १००० करोड़ के भव्य मंदिर में रत्नजटित स्वर्ण प्रतिमा के आगे सिर झुकाओ या राजघाट पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि दो, मन में तो शाश्वत देशभक्त गोडसे ही आएगा. 

हमने कहा- और भी कई अजीब बातें कही-सुनी जा रही हैं. कहते हैं अमित शाह ने गुरुदेव का जन्म स्थान कोलकाता की जगह बोलपुर बता दिया. बिरसा मुंडा की जगह उसके नाम से पता नहीं किसकी मूर्ति पर माला चढ़ा दी ? 

बोला- फिर वही बात. अरे, गुरुदेव कहाँ पैदा हुए थे, यह महत्त्वपूर्ण नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि उनके विचार क्या थे. वे कभी कट्टर राष्ट्रवाद के समर्थक नहीं रहे. वे विश्व मानवता में विश्वास करते थे. और लोग हैं धर्म-जाति और झंडों के रंगों को लेकर मारामारी कर रहे हैं या आत्मनिर्भर भारत से जोड़ रहे हैं. तुझे याद है दादी अपनी पूजा में आज से ८५ साल पहले दिवंगत हो चुके दादाजी की फोटो रखती थी जिसमें फ्रेम और चन्दन के छींटों के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता था, ऐसे में क्या वह किसी आकृति की पूजा कर रही थी ? 

हमने कहा- तभी शायद स्वामी रामसुखदास जी कभी अपना फोटो नहीं खिंचवाते थे. इसीलिए उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनका कोई भी स्मृति-चिह्न न रखा जाए. उनके नाम से कोई पंथ, मंदिर या आश्रम न बनाया जाए. उनकी धोती ,कमंडल, पादुका आदि सब उनके साथ जला दिए जाएं. उनका कोई स्मारक नहीं बनाया जाए.

बोला- लेकिन जिहें किसी भी भी महान व्यक्ति की महानता का धंधा करना है तो वह उसके गुणों नहीं बल्कि उसकी मूर्ति, ट्रस्ट, मंदिर, चंदे और प्रसाद में अधिक रुचि लेगा और उसके नाम से तरह-तरह के अंधविश्वास फैलाएगा. 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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