Feb 2, 2021

आ बात करें

आ बात करें 


आते ही तोताराम बोला- आ, बात करें.

हमने पूछा- किस प्रकार की बात करें ?

बोला- बात का क्या है, कुछ भी बात. 

हमने कहा- नहीं, बात कई प्रकार की होती है जैसे- चर्चा, विमर्श, चुगली, निंदा, मंथन, बौद्धिक, थूक उछाल आदि-आदि. 

बोला- मुझे बातों के प्रकार के क्या मतलब ? सुबह-सुबह चाय पी रहे हैं तो साथ-साथ कुछ बात भी करते रहें. अब चुपचाप सर झुकाए अपराधी या शोकसभा में आये हुए की तरह चाय पीना क्या अच्छा लगेगा ? और बात का क्या है. बात तो बात होती है. करने के लिए की जाती है. सामान्य आदमी समय बिताकर उठ जाते हैं, जिज्ञासु कुछ ज्ञान  निकाल लेते हैं और भक्त तथा शराबी जूतम-पैजार करके समापन करते हैं.

आजकल कृषि मंत्री और किसानों में भी तो बात चल रही ही है. पता नहीं कब तक चलेगी. आठ दौर हो चुके हैं और नवां दौर १५ जनवरी २०२१ को होने वाला है. 




हमने कहा- तो क्या तूने हमें नरेन्द्र तोमर समझ रखा है जो सरकार के कहने पर वह बात करता रहेगा जिसका कोई अंत और अर्थ नहीं. पानी और थूक को बिलोने से घी नहीं निकलता. मोदी जी के पास समय नहीं है इसलिए किसानों को चिढ़ाने और बात कर-कर के थकाने के लिए छुटभैयों को भिड़ाया जा रहा है. लेकिन ताज्जुब है बंदा एक ही बात बार-बार बोलते-कहते बोर और दुखी भी नहीं होता. बड़ी घटिया नौकरी है. 

बोला- तो क्या करें ? किसान हैं परेशान और सरकार है राम भक्त जो 'प्राण जाय पर वचन न जाई' में विश्वास करती है. बिल वापिस नहीं  लेगी. इतना थूक दिया है कि चाटना मुश्किल है. तू ही कोई ऐसा तरीका बता जिससे सरकार की नाक भी बच जाए और खाद्यान्नों के व्यापार में उतरने वाले बड़े खिलाड़ियों का भी नुकसान न हो और किसानों का मान भी बचा रहे.  

हमने कहा- इसके लिए हम तो यही सुझाव दे सकते हैं कि किसान को कोई किसान न कहे, 'अन्नदाता' कहे, देश के हर जिले में अन्नदाता की एक-एक मूर्ति बनवा दी जाए. जब भी कोई किसान आत्महत्या करे तो राज्य और देश के कृषि मंत्री अपने ट्विटर पर दुःख प्रकट करे. सामान्य नहीं गहरा दुःख. संसद और विधान सभाओं के अधिवेशन से पूर्व  उस समय तक आत्महत्या कर चुके किसानों को श्रद्धांजलि दी जाए. जिस तरह प्रधान मंत्री जी संगम पर सफाई कर्मचारियों के पैर धोये थे उसी तरह एक बार किसी किसान के पैर भी धोएं फिर चे वह किसान राजनाथ सिंह जी हों या नरेन्द्र सिंह तोमर हों. जैसे अमित शाह जी ने बंगाल में बासुदेब बाउल के घर खाना खाया था वैसे ही कोई बड़ा नेता किसी किसान के घर खाना खाए. भले ही उससे एक शब्द भी न बोले और उसकी एक बात भी न सुने. 

बोला- हमारी सरकार इतनी भी संवेदनहीन नहीं है. यह तो किया जा सकता है. तू कहे तो किसानों पर कोरोना वारियर्स की तरह पुष्प वर्षा भी करवा देंगे. 

यह बात और है कि चिकित्सा कर्मियों को कई महिने से तनख्वाह न मिली है. 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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