Feb 12, 2021

राम और शक्ति का युद्ध


राम और शक्ति का युद्ध 


आज ठण्ड लौट आई जैसे कि उखड़ते आन्दोलन को टिकैत के आँसुओं ने फिर जमा दिया.   हालांकि बरामदे में किसानों की हमदर्द सरकार की ओर से कीलें और बेरिकेड नहीं लगे थे फिर भी बरामदे में नहीं गए. 

तोताराम ने दरवाजे से ही सिंहनाद किया- 'जय श्रीराम'.  दरवाजा खुला हुआ था अन्यथा वह दरवाजे को तोड़ सकता था. बन्दे में आज अपने बल के अतिरिक्त राम का बल भी तो था. 

हमने उसे जैसे ही चाय थमाई फिर उसने 'जय श्रीराम' का घनघोर निनाद किया. हमें बड़ा अजीब लगा फिर भी हमने उसकी अभिव्यक्ति का सम्मान किया जैसे जनता 'मन की बात' का करती है. 

थोड़ी देर में जैसे ही चाय समाप्त हुई उसने कप एक तरफ सरकाया और फिर वही नाद- 'जय श्रीराम'. 

अब तो हमसे रहा नहीं गया. हमने कहा- क्या परेशानी है ? हर एक-दो मिनट बाद 'जय श्रीराम' का क्या मतलब है ? 

बोला- क्या एक भारतवासी अपने देश में भी 'जय श्रीराम' का उच्चारण नहीं कर सकता ?

हमने कहा- कर क्यों नहीं सकता लेकिन क्या कोई सारे दिन नारे लगाता है क्या ? और तुम्हारा यह जो 'जय श्रीराम' का नारा है वह सामान्य नहीं है. वह एक प्रकार का युद्ध घोष है. फिर भी मज़े की बात देख कि रामचरित मानस में भी लंकाकांड में युद्ध में वानर-भालू और राक्षस नारे लगाते हैं लेकिन बस इतना ही वर्णन मिलता है-

उत रावण इत राम दुहाई

'जय श्रीराम' और 'जय रावण' या 'जय लंकेश' तो कहीं नहीं. 

बोला- लेकिन इसमें ममता बनर्जी की तरह चिढ़ने वाली क्या बात है ?

हमने कहा- तो फिर नेताजी के जन्म दिन पर केंद्र सरकार की तरफ से आयोजित कार्यक्रम को 'शौर्य दिवस' नाम देने की क्या ज़रूरत थी ? जबकि ब्रिटिश सरकार के समय आज़ाद हिन्द सेना के आक्रमण के समय तो तुम लोग सुभाष का समर्थन नहीं कर रहे थे. इस अवसर पर यदि नारा लगाना था तो 'जय हिन्द' का नारा लगाते. यह कोई धार्मिक आयोजन थोड़े ही था. वैसे भी धार्मिक आयोजन के रूप में जैसे महाराष्ट्र में तिलक महाराज का शुरू किया गया 'गणेश-उत्सव' महत्त्वपूर्ण है वैसे ही बंगाल में तो 'दुर्गा पूजा' ही मुख्य सांस्कृतिक कार्यक्रम है न कि राम लीला. और जय श्रीराम. 

बोला- हम तो राम भक्त हैं. राम का ही नारा लगाएंगे. 

हमने कहा- तो क्या राम भक्ति के नाम पर तुम 'दुर्गा और राम' का युद्ध करवाना चाहते हो ? 

बोला- राम और दुर्गा का कोई विवाद नहीं है. राम ने तो खुद रावण से युद्ध में विजय के लिए शक्ति की आराधना की थी. बंगाल से प्रभावित निराला ने इसीलिए तो 'राम की शक्ति पूजा' जैसी महान रचना लिखी.  

हमने कहा- जब तुम इतना सब जानते हो तो फिर बंगाल में 'जय हिन्द' या 'जय काली' का नारा लगाते. जय श्रीराम का नारा लगाकर क्यों लोगों को छेड़ते हो ? 

बोला- कभी-कभी अस्वाभाविक काम किये-करवाए जाते हैं जैसे पुराणों में राम-हनुमान युद्ध, भीष्म-कृष्ण युद्ध, ब्रह्मा-विष्णु युद्ध, शिव-हनुमान युद्ध, राम-शिव युद्ध, शिव-कृष्ण युद्ध आदि. जय श्रीराम से जैसे उत्तर भारत की जनता को जोश दिलाकर सत्ता के लिए राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त कर दिया वैसे ही बंगाल में बसे लोगों की अस्मिता को राम से जोड़कर ध्रुवीकरण किया जा सकता है. 

हमने कहा- बंगाल में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान के लाखों लोग सैंकड़ों साल से रह कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं. और अब तो वे आधे बंगाली ही हो गए हैं. अब उनके जीवन में बिना बात तूफ़ान उठाने से क्या फायदा ? 

बोला- सामान्य रूप से प्रेम से रहने वाली जनता के बीच चुनाव जीतना आसान नहीं होता. सरकारें ऐसे ही बनती और इसे ही चलती हैं. 

हमने कहा- तोताराम, राजनीति तो अपना काम बना लेगी लेकिन जनता इतनी चालाक नहीं होती जो अडवानी जी के इस सिद्धांत को समझ सके कि राजनीति में कोई स्थायी शत्रु और मित्र नहीं होता. मौके के अनुसार स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी किया जा सकता है. 

जनता के अवचेतन में पैदा की गईं कुंठाएं वर्षों, दशकों तक ही नहीं सहस्राब्दियों तक लोगों को सहज जीवन जीने नहीं देतीं.  इसलिए कुंठा पैदा करना, उसे सहलाना और हवा देना सब गलत है.




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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