Jan 11, 2022

अब तो अमरीका जाना ही पड़ेगा


अब तो अमरीका जाना  ही पड़ेगा


हमारे इलाके में पिछले हफ्ते कई जगह तापमान शून्य ने नीचे चला गया था. फतेहपुर शेखावाटी में तो माइनस  ३.४ हो गया था. हालांकि इस उम्र में, ऐसी सर्दी में हम अस्सी के आसपास वालों को खतरा ही रहता है. लेकिन जैसे 'खालिस्तानी' और 'अमीर किसान' तीन कृषि कानूनों की वापसी के इंतज़ार में साल भर दिली की सीमाओं पर बैठे रहे या छोटे किसान अपनी आय दुगुनी होने के इंतज़ार में आत्महत्या नहीं कर रहे हैं वैसे ही हम इस हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड में भी हिम्मत बांधे हुए हैं. अच्छे दिन और १५ लाख के इंतज़ार में नहीं बल्कि १ अगस्त २०२२ को २०% बढ़ जाने वाली पेंशन की अपनी पास बुक में एंट्री देखने के लिए जिससे कि स्वर्ग में (यदि नसीब हुआ)अन्य स्वर्गीयों के सामने कम लज्जित होना पड़े. 

कमरे में रजाई में पाँव घुसाए कूकड़ी हुए बैठे थे कि तोताराम ने आते ही सूचित किया- मास्टर, अब अमरीका जाना ही पड़ेगा.

हमने भी उसके भ्रम को बनाए रखते हुए कहा- क्या जो बाईडन ने तेरे लिए 'हाउ डी तोता' कार्यक्रम आयोजित किया है ?

बोला- हालांकि तुझे भी पता है कि अब अमरीका में मेरे मित्र ट्रंप राष्ट्रपति नहीं हैं, जो बाईडन ऐसे फालतू के कार्यक्रम आयोजित नहीं करते. और फिर ट्रंप भी कोई अपने खर्चे से कार्यक्रम आयोजित थोड़े ही करते. दोनों तरफ खर्चा तो अपना ही होता जैसे कि 'हाउ डी मोदी' में अमरीका में भी खर्च भारतीयों का हुआ और जब ट्रंप यहाँ आये तो  'नमस्ते ट्रंप'  में भी खर्चा हमारा ही हुआ. लेकिन फायदा क्या हुआ ? वहाँ ट्रंप निबट गए और यहाँ उसके बाद कोरोना ने 'गंगा' को 'शव वाहिनी' कर दिया. उसके बाद  कोरोना ने गुजरात के किसी भाजपा नेता द्वारा सप्लाई किये नकली वेंटीलेटरों ने भद्द पिटवा दी. उसके बाद सूरत से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश होते हुए आये नकली रेमडेसीवेयर  ने यश का रायता फैला दिया. और अब रही सही कसर ममता दीदी ने 'खेला करके' पूरी कर दी. ऊपर से अब उत्तर प्रदेश में यह प्रियंका कह रही है- लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ. 

हमने कहा- भारत की इस राष्ट्रवादी रामायण का कोई अंत नहीं है. तू तो यह बता कि तेरे लिए अमरीका जाने की ऐसी क्या मज़बूरी आ गई. तू तो ऐसे कह रहा है जैसे कि तुझे भी नीरव मोदी, माल्या और चौकसे की तरह भारत छोड़ना ही पड़ेगा.

बोला- मैं तो इस ठंड के चक्कर में परेशान हूँ. सोचता हूँ, इस समय अमरीका में मौसम ठीक चल रहा है.

हमने कहा- दक्षिण अमरीका का तो पता नहीं लेकिन उत्तरी अमरीका के उत्तरी इलाके में तो बहुत बर्फ पड़ती है. 

बोला- अब वहाँ भी हमारे विश्वगुरु बनाने की तरह 'मेक अमरीका ग्रेट अगेन' के राष्ट्रवाद के कारण जलवायु परिवर्तन हो गया है. गरमी आ गई है.

हमने पूछा- जलवायु भी क्या कोई राष्ट्रवादी, राष्ट्रविरोधी, दक्षिणपंथी, वामपंथी, हिन्दू मुसलमान होता है ?   

बोला- ट्रंप ने अपने अनुयायियों में इतना राष्ट्रवादी उत्साह भर दिया कि डंडे, बंदूक लेकर बाईडन को कार्यभार संभालने से रोकने के लिए कैपिटल हिल पहुँच गए थे. अब जब वहाँ की संस्थाओं ने ट्रंप को घपला करने से रोक दिया तो वह ऊर्जा कहाँ जायेगी. अब वह ऊर्जा अमरीका का तापमान बढ़ा रही है. कनाडा की सीमा पर स्थित मध्य अमरीका के राज्यों में जहां तापमान महिनों माइनस में रहता था अब वहाँ बरसात हो रही है. तापमान जीरो से नीचे  गया ही नहीं. 

हमने कहा- यह तो बहुत चिंता की बात है. 

बोल- क्यों ?

हमने कहा- जैसे अपने यहाँ पहले लू में मच्छर मर जाते थे और सर्दी में मक्खियाँ मर जाती थी. तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि तथा राजस्थान में गहलोत और वसुंधरा की तरह बारी-बारी आते थे लेकिन अब तो  दोनों ही दोनों ऋतुओं में परेशान करते हैं. वैसे ही वहाँ अमरीका में भी सर्दी में मर जाया करने वाले कीट-पतंगे मर नहीं रहे हैं. ऐसे में वे सर्दी में होने वाली फसलों पर हमला करेंगे. 

बोला- अपने को क्या है ? अपन तो जब यहाँ सर्दी कम हो जायेगी तब लौट आयेंगे. 

हमने कहा- यहाँ तो पता नहीं सर्दी से मरेगा या नहीं लेकिन वहाँ अब ओमिक्रोन फ़ैल रहा है. उसकी चपेट में आगया तो  ?  यहीं रह. यहाँ जब तक कहीं भी चुनाव हैं तब तक कोरोना का बाप भी कुछ नहीं कर सकता चाहे हजार रेलियाँ करो. उसके बाद गरमियाँ आ ही जायेंगी. 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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