Jan 9, 2022

एकोहं द्वितीयो नास्ति....

 एकोहं द्वितीयो नास्ति....


आज तोताराम की सज और धज दोनों ही हिन्दू संस्कृति के अनुरूप थी. माथे पर तिलक, हाथ में कलावा, खाकी निक्कर, काली टोपी. समर्पित, सन्नद्ध, सेवक. बस, कंधे शस्त्र की कमी थी. आते ही बरामदे में 'शपथ ग्रहण समारोह' का बैनर टांग दिया. 

हमने कहा- तोताराम, एक दिन हमने तुझे मोदी जी द्वारा हमें प्रधानमन्त्री की जिम्मेदारी सौंपकर संन्यास पर चले जाने वाला स्वप्न बताया था. वह कोई मजाक नहीं था, सच में हमें सपना आया था. हाँ, ऐसे स्वप्न स्वप्न ही होते हैं. स्वप्न तो सच मोदी जैसे भाग्यशालियों के होते हैं. लेकिन अब तू यह 'शपथ-ग्रहण समारोह' का नाटक करके हमें शर्मिंदा क्यों कर रहा है ?  

बोला- यह किसी राजा का 'शपथ-ग्रहण समारोह' नहीं है. यदि तेरे वास्तव में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का समारोह होता तो क्या ऐसे बरामदे में होता ?   फिर तो रायसीना हिल पर होता, रायसीना-दाल बनती.  हजारों अपने आपको विशिष्ट समझने वाले आते और दर्शक बनकर अपनी औकात को समझते कि आज वे मास्टर की रियाया हैं. खैर, यह तो प्राण देकर भी अपने धर्म की रक्षा करने और उसे बचाने का मामला है. 

हमने कहा- तोताराम, तू भले ही कुछ भी कह लेकिन हमें आजकल के चतुर राजनीतिक मनुष्य में विश्वास नहीं रहा. वह संविधान की शपथ लेकर भी धर्म-जाति-पार्टी आदि के आधार पर बेशर्म होकर भेदभाव करता है. और सच कहें तो आज तेरे 'शपथ' शब्द में ही बिहारी की नायिका की तरह चतुरता और चालाकी दिख रही है.जो 'सौंह' (शपथ ) करती है लेकिन जिस तरह से चतुर हंसी हंसती है उससे साफ़ पता चल जाता है कि वह चतुर नेता की तरह चुनाव में वादे और अभिनय करके नायक को उल्लू बनाती है-

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय 

सौंह  करे, भौहन  हँसे, देन  कहे नट जाय 

बोला- यह किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा नहीं है, यह इस देश के अस्तित्त्व और अस्मिता का सवाल है. हजारों साल से दुनिया के अन्य धर्म वालों ने हमें उल्लू बनाया है. 

हमने कहा- धर्म के मामले में कोई किसी को उल्लू नहीं बना सकता.सबका धर्म होता है, पिता का, पुत्र का, पति का पत्नी का, राजा का प्रजा का और सभी कमोबेश उसे निभाते ही हैं.आग का, पानी का भी धर्म होता है. धर्म तो अपने कर्तव्य को अपने तरीके से निभाने का नाम है. तभी गाँधी जी कहते थे कि दुनिया में जितने जीव हैं उतने ही धर्म हैं. 

बोला- गाँधी को क्या पता ? वह तो ईश्वर अल्ला तेरो नाम गाता और गवाता था. क्या ऐसे होता है ? हिन्दू का ईश्वर  अलग होता है, मुसलमान का अल्ला अलग होता है. ईश्वर ही इस संसार में दयालु, पवित्र और श्रेष्ठ होता है. और सब तो 'ऐवें' ही होते हैं. 

हमने कहा- गाँधी की बात छोड़. उसे तो इस 'देशभक्त गोडसे युग' में राष्ट्र और हिंदुत्व के नाम पर कोई भी लतियाने-गरियाने में लगा है. खैर, तू तो उस शपथ के बारे में बता. 

बोला- सबसे पहले मैं बोलूंगा- मैं. इसके बाद रिक्त स्थान रहेगा और वहाँ तू अपना नाम बोलना जैसे कि शपथ लेते समय मंत्री नेता बोलते हैं. उसके बाद की शपथ इस प्रकार है जो भागवत जी ने सच्चे हिन्दुओं को संतों की उपस्थिति में दिलवाई है.-

'मैं हिन्दू संस्कृति का धर्मयोद्धा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की संकल्प स्थली पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज के संरक्षण संवर्धन और सुरक्षा के लिए आजीवन कार्य करूंगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि किसी भी हिन्दू भाई को हिन्दू धर्म से विमुख नहीं होने दूंगा। जो भाई धर्म छोड़ कर चले गए हैं, उनकी भी घर वापसी के लिए कार्य करूंगा। उन्हें परिवार का हिस्सा बनाऊंगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि हिन्दू बहनों की अस्मिता, सम्मान व शील की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण करूंगा। जाति, वर्ग, भाषा, पंथ के भेद से ऊपर उठ कर हिन्दू समाज को समरस सशक्त अभेद्य बनाने के लिए पूरी शक्ति से कार्य करूंगा।' 

हमने कहा- राम की संकल्प स्थली तो चित्रकूट मानी जाती है जहां राम ने ऋषियों की अस्थियों का पहाड़ जैसा ढेर देखकर राक्षसों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी. लेकिन आज क्या इस देश में फिर राक्षसों ने धावा कर दिया है ? क्या वे मनुष्यों अर्थात हिन्दुओं को मारकर खा रहे हैं ? 

बोला- यह तो पता नहीं लेकिन इतना तो तय है कि वे अपनी संख्या बढाए जा रहे हैं जिसके मुकाबले में हिन्दुओं को अपनी संख्या बढानी पड़ेगी. अगर कोई किसी अन्य धर्म में जाना चाहे तो उसे रोकना है, जो भय और लालच से अन्य धर्म में चले गए हैं उन्हें वापिस लाना है.  

हमने कहा- लेकिन ऐसे लोगों को कैसे पहचानेंगे कैसे ?

बोला- उनके कपड़े देखकर पहचान लेंगे.

हमने कहा- यदि वह सामान्य कपड़े और क्लीन शेव्ड हुए तो ?

बोला- तो फिर खतना चेक करेंगे.

हमने कहा- क्या ऐसे लोगों का खतना पूर्ववत किया जा सकता है ?

बोला- तू अब फालतू बात मत कर. बस, मेरे साथ संकल्प दोहरा. 

हमने कहा- यदि कोई अपना बदला हुआ धर्म न छोड़ना चाहे तो ?

बोला- हमें उसके लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहना चाहिए. संकल्प के शब्दों में 'सर्वस्व समर्पण' भी है.

हमने कहा- लेकिन हमारे यहाँ भी तो हिन्दू, जैन, बौद्ध, शाक्त, शैव, वैष्णव, सिक्ख, कबीरपंथी, रविदासिया आदि और उनमें भी कई तरह की ऊंचनीच. किसे कहाँ डालोगे ? 

बोला- जिस तरह १९५७ में जब नई दशमलव प्रणाली आई थी, एक रुपए में सौ पैसे का सिस्टम किया गया था तो सरकार ने कन्वर्जन टेबल घोषित की थी. आज भी रुपया-डोलर, रुपया पौंड, रुपया-दीनार  इंच सेंटीमीटर आदि की कन्वर्जन टेबल बनी हुई है उसी तरह से कन्वर्जन टेबल बना लेंगे कि किस धर्म के किस व्यक्ति को हिन्दुओं में किस जाति में रखा जाएगा ?  जैसे मुसलमान भंगी हिन्दू भंगी हो जाएगा. 

हमने कहा-  जब किसी को उस धर्म में झाड़ू ही लगानी है और इस धर्म में भी झाडू ही लगानी है तो फिर फायदा क्या ?कोई डिस्टर्बेंस अलाउंस भी नहीं मिलता और नई तरह के कपडे, दाढ़ी,टोपी का चक्कर अलग. अपनी पुरानी टोपी ही भली, फिर चाहे वह जाली वाली हो या काली.

बोला- मैं तो जितना जानता था सो बता दिया. आब आगे की बात चित्रकूट में इकट्ठे हुए संत जानें. 

हमने कहा- तोताराम, एक दोहा है-

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर

तुलसिदास चन्दन घिसें तिलक करें रघुवीर

सो चन्दन घिसने वाले कोई और होते हैं और तिलक करने वाले कोई और. कल तिलक रघुवीर करते थे और आज कोई और करेंगे. धर्म दो ही हैं- एक चन्दन घिसने वाला और एक मुफ्त के चन्दन से तिलक करने वाला. और संतों का लक्ष्य मुफ्त के चन्दन से तिलक करते-करते 'राजतिलक' तक पहुँचने का लक्ष्य होता है. 

वैसे हमें याद है एक जगह भागवत जी ने कहा था कि हिन्दू मुस्लिम एकता शब्द बेमतलब है. ऐसे में 'घर वापसी' का क्या मतलब हो सकता है. 

बोला- शायद उन्हें अपने-अपने घर पाकिस्तान, इटली वापिस भेजने से हो. 

हमने कहा- तोताराम, यदि दिल बड़ा करके सोचें तो अरब में रामल्ला है जो 'राम लल्ला' से बना है, राम भी रोम रोम में बसते हैं जो कि इटली की राजधानी है. लेकिन हमें नहीं लगता कि वे इन्हें स्वीकार करेंगे.क्यों न इन्हें जैसे ये हैं वैसे ही स्वीकार करके यहीं रहने दिया जाए. 

बोला- यह भी नहीं हो सकता क्योंकि कहा गया है-

एकोहम द्वितीयो नास्ति 

मतलब एक ईश्वर के साथ दूसरा ईश्वर नहीं रह सकता. और अगर रहेगा तो पहले का मातहत बनकर ही रहना पड़ेगा. 

हमने कहा- लेकिन एक बार भागवत जी ने यह भी तो कहा था कि दोनों का डी. एन. ए. एक ही है.

बोला-ये सब किसी खास परिस्थिति में कहने की बातें हैं. यदि कोई बड़ा सेवक किसी कबीरपंथी, बाउल या मज़दूर के साथ खाना खा लेगा तो क्या वे 'राजा' हो जायेंगे ? दो दिन बाद फिर 'मूषकः मूषकः पुनः .  

  

  




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