Jan 12, 2022

वह संसद कुछ और थी


 वह संसद कुछ और थी 


हमारा एक शिष्य माननीय बन गया है. माननीय मतलब सांसद. मन किया, जिस लोकतंत्र में वार्ड पञ्च भी खुद को प्रधान सेवक समझता है, वहाँ हम दिल्ली जाएँ और माननीय बने अपने शिष्य से पैर छुआ कर आयें. तोताराम से पूछा- तोताराम, संसद का अगला अधिवेशन कब होने वाला है ?

बोला- अब संसद और चंडूखाने में कोई फर्क नहीं रह गया है. जहां भी चार लफंगे जुड़ बैठें वहीँ संसद हो जाती है.तू जब कहे करवादें संसद का अधिवेशन. जो किसी काम के नहीं हैं वे सबसे ज्यादा सुविधाओं का उपभोग करते हैं और आँखें ऊपर से दिखाते हैं, न नीयत नियंत्रण में, न ईमान, न जुबान; उन्हें चंडाल चौकड़ी जमाते क्या देर लगती है. 

हमने कहा- कैसी बात करता है ? संसद एक पवित्र शब्द है, जहां सेवक लोग निष्पक्ष भाव से समस्त समाज-देश के कल्याण के लिए चिंतन-मनन करते हैं. 

बोला- क्यों ? १७ से १९ दिसंबर को हरिद्वार में और २५ से २६ दिसंबर २०२१ को रायपुर में. उसके बाद १ से २ जनवरी २०२२ को भी संसद आयोजित करने का कार्यक्रम था लेकिन इनके प्रपंचों पर जब चर्चा चली तो रोक लगा  दी गई है लेकिन ऐसे लोग बाज थोड़े ही आते हैं. फिर रचेंगे कोई न कोई प्रपंच. 

हमने कहा- यह तो तू 'धर्म संसद' की बात कर रहा है. ऐसी संसदें तो सभी धर्मों, पंथों में दुनिया भर में हर दिन चलती है. निंदा करना, थूक उछालना तो सभी निठल्लों का हमेशा से शौक और शगल रहा है. ये कोई किसान मजदूर थोड़े ही होते हैं जिन्हें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती.  हम तो दिल्ली वाली संसद की बात कर रहे हैं जिसका पुराना भवन तुड़वाकर 'सेन्ट्रल विष्ठा' बनवाया जा रहा है. 

बोला- सच पूछे तो मास्टर आजकल सभी संसदें धर्म नहीं 'अधर्म संसदें' रह गई हैं. जिस संसद की सीढ़ियों पर सेवक मत्था टेक रहे थे उसी में किसानों और विपक्ष से चर्चा किये बिना कृषि कानून बना दिए गए और उनका शांति पूर्ण विरोध कर रहे लोगों को एक साल तक खुले में बैठा दिया, रास्ते में कीलें गाड़ दी गईं और संसद के अन्दर उन्हें आतंकवादी कहा गया, वह संसद भी संदेहास्पद हो गई है. 

हमने कहा- लेकिन इस संसद का ही एक रूप तेरी यह तथाकथित धर्म संसद है. जिसमें गाँधी, मनमोहन को गाली और हत्या की बात की जाती है, विधर्मियों को मारने के संकल्प दिलवाए जाते हैं, विद्यार्थियों को किताबें छोड़कर हथियार उठाने की नसीहत दी जाती है, क्रिसमस मनाने वालों को धमकी दी जाती है.  यदि देश की संसद निष्पक्ष हो और ऐसी धर्म संसदों के फसादी निर्णयों पर कार्यवाही भी करे तो कुछ सुधार हो सकता है लेकिन वह तो चुप है. क्या धर्म संसदें ऐसी होती हैं ?

बोला- नहीं, एक धर्म संसद १८९३ में ११ सितम्बर को शिकागो में भी हुई थी जिसमें विवेकानंद ने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था.

हमने कहा- वह संसद कुछ और थी. उसमें विवेकानंद के मुख से भारत के बहुलतावादी और समन्वयवादी दर्शन को दुनिया ने आश्चर्यचकित होकर सुना था- 

मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं. 

बोला- संयोग देख मास्टर, विवेकानंद का सन्देश न सुनने-गुनने के कारण ही, उसी देश में, उसी तारीख़ को धर्म की आड़ में  ११ सितम्बर २००१ को अमरीका ट्विन टावरों पर हमला हुआ.

बोला- मास्टर, तुझे पता होना चाहिए  कि कोलकाता के रामकृष्ण मिशन आश्रम में आज भी ईसा का जन्म दिन मनाया जाता है.वैसे तथाकथित राष्ट्रवादी लोग विवेकानन्द की बातें तो बहुत करते हैं. 

हमने कहा- तोताराम, इन्हें रामभक्त भगतसिंह चाहिए और मुसलमानों और ईसाइयों को गाली निकालने वाला विवेकानंद चाहिए.नास्तिक भगतसिंह और सभी धर्मों को समान मानने वाला विवेकानंद इन्हें नहीं पचता. इनकी प्रज्ञा के अनुसार गाँधी नहीं, गोडसे आदरणीय और देशभक्त है. 

तभी तो 

वह संसद कुछ और थी, यह संसद कुछ और

उस  संसद  में  संत थे, इस  संसद  में  चोर 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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