Jul 7, 2022

अखबार छांटकर लेंगे

 अखबार छांटकर लेंगे  


 वैसे तो अखबार वाला दीवार के ऊपर से फेंक जाया करता है और यदि चौक में पानी की कोई बाल्टी रखी हो या बारिश हो तो अखबार की हालत उद्धव सरकार जैसी हो जाती है कि अब गिरी और तब गिरी। और उठाते-उठाते बंगाल की तरह खेला हो ही जाता है. 

आज बरसात जैसा कोई संकट नहीं था लेकिन एक और संकट था जिससे बचने के लिए हमने अखबार वाले के आने से  पहले ही बरामदे में बैठ जाना उचित समझा। आज अखबार वाला कुछ विलम्ब से आया और तोताराम कुछ जल्दी। दोनों लगभग साथ-साथ. 

जैसे ही अखबार वाला हमें अखबार पकड़ाकर जाने लगा, हमने कहा- रुक. आज से हम अखबार छाँटकर लिया करेंगे।

 लड़का  बोला- मास्टर जी, यह कोई सब्जी है जो छाँटकर लेंगे। सभी अखबार एक जैसे ही होते हैं. क्या छाँटेंगे इनमें ? 

हमने कहा-सब्जी हो और खराब निकल आये तो फेंक सकते हैं लेकिन अखबार में कोई बड़ा चक्कर पड़ सकता है. 

तोताराम बीच में कूद पड़ा- क्या चक्कर पड़  सकता है ?

हमने कहा- कल का ही उत्तर प्रदेश के संभल जिले का एक समाचार है, एक होटल वाला अखबार में लपेटकर खाने का कुछ सामान बेच रहा था कि किसी की आस्था आहत हो गई तो पुलिस ने होटल वाले को गिरफ्तार कर लिया। तुझे पता है आजकल हर बीमारी का इलाज है लेकिन आस्था का मामला बड़ा सीरयस है. जब तक आहत करने वाले की गिरफ्तारी और उसे फांसी न हो जाए तब तक आहात आस्था को चैन नहीं मिलता।

बोला- अखबार में लपेट कर बेचना तो अच्छी बात है. बायोडिग्रेडेबल। पहली जुलाई से तो मोदी जी के संयुक्त राष्ट्र संघ में किये वादे के अनुसार सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर जुर्माना है. अखबार और पत्ते तो प्लास्टिक का बहुत अच्छा विकल्प है. उस होटल मालिक को तो सम्मानित किया जाना चाहिए। 

हमने कहा- बात इतनी सी ही थोड़ी है. वह जिस अखबार में  पलपेटकर चिकन का व्यंजन बेच रहा था वह  अखबार नवरात्रि और नव वर्ष विशेषांक था जिसके पहले ही पेज पर दुर्गा के दो रूपों के चित्र छपे हुए थे. अब यह कैसे सहन किया जा सकता है कि माँ दुर्गा के चित्र छापे अखबार में मांसाहारी व्यंजन परोसा जाए. 

बोला- वैसे तो दुर्गा को बहुत से भक्त निरामिष व्यंजनों का भी भोग लगाते हैं.

हमने कहा- बात दुर्गा की नहीं है, बात भक्त की आस्था और भावना की है. 

बोला- तो क्या वह अखबार उस होटल वाले ने विशेष रूप से इसी दुष्कर्म के लिए छपवाया था. 

हमने कहा- नहीं ऐसा तो नहीं है. अखबार तो एक हिन्दू का है और यदि विज्ञापन भी रहा होगा तो किसी हिन्दू ने ही छपवाया होगा। 

बोला- तो फिर गलती तो अखबार या विज्ञापन छापने -छपवाने वाले की है या जिसने यह अखबार रद्दी में उस होटल वाले को बेचा। 

हमने कहा- लेकिन होटल वाले का भी तो देश के सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा के लिए कुछ कर्तव्य बनता है. उसे यह अखबार रद्दी में नहीं खरीदना चाहिए था. यदि खरीद लिया तो उसे सम्मानपूर्वक किसी आस्थावान हिन्दू के यहां पहुंचा देना चाहिए था जहां उस चित्र की किसी दीवार या मंदिर में विधिविधान से प्राणप्रतिष्ठा होती और नित्य पूजा होती। 

बोला- अब यह कैसे संभव है. रोज अखबारों में  हजारों-लाखों देवताओं और नेताओं के चित्र छपते हैं.अब कौन कितना संभाले। क्या यह अपेक्षा करते हो कि गणेश खैनी और तुलसी जर्दे का उपभोक्ता देवता के उस चित्र को भी चबा जाए. थोड़ी देर चबाने के बाद भी तो नाली या रास्ते में थूकेगा ही. देवी  देवताओं का अपमान तो हर हालत में होना तय है. कौन, कहाँ तक बचा सकता है.   

हमने कहा- लेकिन हम कोई रिस्क नहीं ले सकते। इस अखबार में सीकर जिले के श्रीमाधोपुर कस्बे  में जगन्नाथ जी की रथयात्रा के स्थगन का समाचार है और रथ का फोटो भी. इसे कब तक संभाल कर रखेंगे ?भूल से या उड़कर किसी अपवित्र जगह जा गिरा तो किसी की आस्था आहत हो जायेगी और फिर पुलिस के पास हमें गिरफ्तार करने के अलावा की चारा नहीं बचेगा। शेष अखबार में किसी देवी देवता का फोटो नहीं है, उसे रख लेते हैं. शेखावाटी संस्करण के चार पेज के हिसाब से एक रुपया काम कर देंगे। 

अखबार वाला लड़का बोला- मास्टर जी, इस तरह तो शाम तक भी अखबार बांटना नहीं होगा। लाइए वापिस और कल मालिक से बात कर लेना। 

तोताराम बोला- जब रिपोर्ट लिखने-लिखाने वाले दोनों ही सच्चे भक्त हों तो फिर किसी अखबार-वखबार का होना भी क्या ज़रूरी है.     



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