Jul 28, 2022

2022 -07 -28 तोताराम की आहत आस्था

तोताराम की आहत आस्था 

 

आज तीसरा दिन है तोताराम से मन की बात किये हुए. हम किसी पहचान वाले के यहाँ सगाई के कार्यक्रम में रेवाड़ी गए हुए थे. ब्लॉग-लेखन तो खैर, कोई बात नहीं। वह कौन मोदी जी की मन की बात और प्रियंका चोपड़ा के ट्वीट की तरह आवश्यक सेवाओं में आता है.  लेकिन तोताराम से चाय पर चर्चा ! 

वास्तव में आदत बहुत बुरी चीज है. सुना है गुजरात के वैध या अवैध शराब पीकर मरने वाले तो खैर, मर गए. भागवत जी की सकारात्मक सोच के अनुसार मुक्त हुए समस्त भाव-बाधाओं से, जी एस टी और बेरोजगारी से. लेकिन जो बच गए उन्हें इलाज के बतौर अल्कोहल के इजेक्शन दिए जा रहे हैं. तभी कहा है ज़हर को ज़हर मारता है. विषश्य विषमौशधं। सो तोताराम का इंतज़ार करने की बजाय हम खुद ही उसके यहाँ पहुँच गए. 

बरामदे में बंटी मिला, घूम-घूमकर ब्रश कर रहा था. पूछा तो पता चला कि तोताराम अभी बिस्तर में ही घुसा हुआ है. हमने कुरेदा- लोग तो हैं कि देश सेवा के चक्कर में घंटे-दो घंटे भी नहीं सो पा रहे हैं और एक तू है जो अभी तक बिस्तर में पड़ा है. 

बोला- शुक्र है कि अभी तक जिंदा हूँ. बाकी दिल टूट गया है. 

हमने कहा- तेरे जैसे आदमी के दिल में टूट सकने के अतिरिक्त और कुछ करने का दम ही कहाँ है ? 

तेरी किस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया. 

फिर भी हुआ क्या ?

बोला- मेरी आस्था आहत हो गई है. 

हमने कहा- सलमान रुश्दी की ‘सेटानिक वर्सेज’ और तसलीमा नसरीन की ‘लज्जा’ के प्रकाशन से, पहलू खान की लिंचिंग और शम्भूलाल रेगर द्वारा बंगाली अफाराजुल की गेंती से हत्या कर कर दिए जाने या उदयपुर में कन्हैयालाल की दो मुसलमानों द्वारा नृशंस हत्या से तेरी आस्था आहत नहीं हुई. आज ही ऐसा क्या हो गया ?

बोला- ये सब तो धार्मिक मामले हैं. भारत एक प्राचीन और अनके धर्मों और सम्प्रदायों वाला देश है. जिनमें हजारों साल से तरह-तरह के झगडे-झंझट चलते रहे हैं. एक ही धर्म के फिरके आपस में झगड़ते रहे हैं. आस्था-स्थल तोड़ना, कत्ले आम करना आदि धर्म और राजनीति में कोई नई बात नहीं है. मेरी आस्था के आहत होने का कारण इन सबसे अलग है और गंभीर है.

हमें कहा- तो फिर चुपचाप क्यों बैठा है, उठा कोई भी हथियार चाकू, चिमटा, कैंची, झाडू जो भी सामने पड़े और निकल पड़ वीर राजपूतों की तरह केसरिया अमल या अमृत छककर और मचा दे मारकाट। 

बोला- इतनी हिंसा और क्रोध भी संभव नहीं।

हमने कहा- जब कुछ भी संभव नहीं तो फिर चुपचाप बैठ अग्निवीरों और गैस, डीजल और पेट्रोल उपभोक्ताओं की तरह. गुस्सा-कुंठा छोड़. हम तेरा मनोबल बढ़ाने के लिए रेवाड़ी से रेवड़ी लाये हैं. सच्चे देशभक्तों की तरह रेवड़ियों का प्रसाद ग्रहण कर और घर-घर तिरंगा फहरवाने के लिए तैयार हो जा.

बोला- मास्टर, इस रेवड़ी ने ही तो मेरा दिल तोड़ा है. वैसे तो यूपी वाले कहते हैं कि रेवड़ियां मेरठ की प्रसिद्ध होती है. पिछले कुछ वर्षों से लखनऊ और दिल्ली की रेवड़ियाँ पहली पायदान पर चल रही हैं. लेकिन अपने यहाँ तो रेवड़ियां रिवाड़ी की ही प्रसिद्ध हैं. तू ही क्या,इधर का कोई रेवाड़ी की तरफ से आता है तो रेवड़ियां ज़रूर लाता है. मेरी रेवाड़ी वाली मौसी तो याद है ना ? जब भी आती थी तो थैला भरकर लाती थी.  

 

अब मोदी जी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे का उद्घाटन करते हुए कह दिया कि यह ‘रेवड़ी-कल्चर’ नहीं चलेगी। 

हमने कहा- वही एक्सप्रेस वे ना जिस पर चार दिन बाद ही गड्ढे पड़ गए थे. 

 

वैसे तो, अब तक सभी दलों में ‘रेवड़ी-वितरण’ चलता ही रहा है.कभी जनता में तो कभी बिकाऊ माननीयों में.  १५ लाख हर खाते में, दो करोड़ नौकरियाँ, साफ़ गंगा, फ्री सिलेंडर, उत्तर प्रदेश चुनाव में पांच किलो मुफ्त अनाज; ये सब रेवड़ियां नहीं तो क्या है ? 

बोला- वह तो चुनाव में थोड़ा बहुत करना ही पड़ता है लेकिन क्या किया जाए यह केजरीवाल सब खेल बिगाड़ रहा है. हमारे ही हथियार से हमें ही आहत कर रहा है. कभी हनुमान चालीस पढ़ने लग जाता, कभी तिरंगा लेकर भक्तों को राम मन्दिर के दर्शन करवाने के लिए अयोध्या ले जाता है. बिजली-पानी मुफ्त देकर चुनाव जीत रहा है, कभी कहता है पार्कों में ‘तिरंगा-शाखाएं’ लगायेंगे।  इस ‘केजरीवाल-कल्चर’  को ख़त्म होना चाहिए। मोदी जी ने कहा है, अब साइकल मुफ्त नहीं देंगे। ब्याजमुक्त ऋण पर देंगे। 

हमने कहा- खुद ही बैंक को ‘लेटर ऑफ़ अंडर स्टेंडिंग’ देकर हजारों करोड़ का लोन लेकर भाग जाने वाले नीरव मोदियों की बात और है. लेकिन लोन पर साइकल लेने वाले कहाँ भाग जायेंगे ? जो लाखों बच्चे मध्याह्न भोजन और ड्रेस के लालच में स्कूल आते हैं वे कहाँ से लौटायेंगे। 

याद रख नेताओं के भाषण और दर्शन के लिए कोई नहीं आता. रैलियों में किराए भी भीड़ होती है. मन की बात ‘रेवड़ी प्राप्ति उत्सुक’ चतुर लोग सुनते हैं.

याद रखा,‘जहां-जहां कीचड़ : वहाँ-वहाँ कमल’ और ‘जहां-जहां कूड़ा : वहाँ-वहाँ झाड़ू’ . दोनों ही जगह बदबू। 

किसी सेवक में किसी को खुशबू नहीं आती. सब रेवड़ियों के लालच में आते हैं. 

रेवड़ी नहीं तो ‘तू नहीं और सही’. 

लोकतंत्र के रक्षक दरवाजे पर स्पेशल प्लेन लेकर गौहाटी ले जाने के लिए तैयार खड़े हैं.  



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