Jul 17, 2022

2022-07-14 शेर के दांत


शेर के दांत

हमने कहा- तोताराम, लगता है, हमने अनुपम खेर के ट्वीट के साथ न्याय नहीं। 

बोला- न्याय एक मानसिक अवस्था है, एक दृष्टिकोण है. तीस्ता और ज़किया ने गुलबर्ग सोसाइटी के हत्याकांड को  कुछ और तरह से तथा न्यायालय ने कुछ और तरह से देखा हो. वे न्याय के लिए फ़रियाद कर रहे थे तो न्यायालय ने समझा कि वे भले लोगों को फंसा रहे हैं.सो देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानकर फ़टाफ़ट जेल में डाल दिया।  हिमांशु कुमार निर्दोष आदिवासियों की हत्या की फरियाद लेकर न्यायालय गए और न्यायालय को समझ आया कि वे न्यायालय का समय बर्बाद कर रहे हैं. सो लगा दिया पांच लाख का जुर्माना. वैसे यह तो सच है दोनों घटनाओं में लोग मरे तो थे. उन्होंने किसी को फंसाने के लिए आत्महत्या तो नहीं की थी. 

वैसे तू अनुपम खेर के ट्वीट के साथ क्या न्याय चाहता है ?

हमने कहा- उन्होंने केवल शेर के काटने की ही बात नहीं की है. वे ट्वीट के शुरू में ही कहते हैं- रे भाई, शेर के दांत है तो दिखायेगा ही. 

बोला- दांत तो सभी के होते हैं. यदि दांत है तो हर समय दिखाने की क्या ज़रूरत है. कोई किसी बड़े पद पर है तो क्या अपने माथे पर लिखवाकर फिरेगा ?  किसी के पास बहुत-सा पैसा है क्या रोज सड़क पर बैठकर गिनेगा ? सूरज को अपने उदय होने का विज्ञापन नहीं देना पड़ता.  

हमने कहा- तोताराम, हमें एक बात और समझ आती है, हो सकता है अशोक के समय में इस शेर की गुर्राहट या दांत दिखाने को असंसदीय मानकर प्रतिबन्ध लगा दिया गया हो. वैसे दांतों के दिखाने की और भी कई व्यंजनाएँ हो सकती हैं. दांत दिखाना, दांत फाड़ना, दांत पीसना। हो सकता है दो हजार साल से दांत न दिखा पाने के कारण अब २०२२ में दांत दिखाने, पीसने, किटकिटाने आदि की स्वतंत्रता मिलने के कारण जोश में आकर कहीं ज़्यादा ही दांत दिखाने लग गया हो. 

बोला- हो सकता है अशोक की अहिंसा के कारण इसे  दो हजार वर्षों से अब तक कुछ पैष्टिक आमिष आहार न मिला हो तो गुस्से में दांत दिखा कर कुछ मांसाहार मांग रहा हो ?लगता है, इसका पेट नहीं कुंआ है. पिछले कुछ वर्षों में कोरोना में लाखों लोगों की बलि लेकर, लाखों की नौकरियाँ खाकर, हम बूढ़ों की गैस और रेल यात्रा की सब्सीडी हजम करके, बैंकों के हजारों करोड़ रुपए हड़प जाने से भी इसकी क्षुधा शांत नहीं हुई. 




हमने कहा- लेकिन अब तो सरकार मांसाहार को पसंद नहीं करती. तभी कभी रामनवमी, तो कभी श्रावण मास में कांवड़ यात्रा के समय मांसाहार पर प्रतिबन्ध लगा रही है. चित्रों में सभी ने काली को एक हाथ में खून से भरा खप्पर, एक हाथ में तलवार, एक हाथ में नरमुण्ड लटकाये देखा है. हमने भी १९६०-७० के बीच सवाईमाधोपुर सीमेंट फैक्ट्री की पत्थर की खदानों में काम करने वाले भीलों को दुर्गा अष्टमी पर अपने घर के सामने काली को बकरे की बलि देते देखा है. लेकिन अब महुआ मोइत्रा द्वारा काली को मदिरा पीने वाली और मांस खाने वाली बताने पर हल्ला मचा हुआ है.

बोला- मुझे तो लगता है कि  दो हजार साल से मुंह बंद किये-किये इस शेर के जबड़े अकड़ गए हैं सो अब अपने जबड़ों को स्ट्रेच कर रहा है. 

हमने कहा- हो सकता बूढ़ा होने के कारण इसके दांतों में कोई समस्या हो. अच्छा हो इसे एक सुन्दर सी बत्तीसी लगवा दी जाए जिससे यह चिढ़ते और गुस्सा होते हुए भी खूँख्वार न लगे. जैसे चुनाव में जनसंपर्क के समय नेता.

बोला- वैसे मास्टर, मैं तो आजकल जो चल रहा है उससे बहुत कन्फ्यूज़्ड हूँ. एक तरफ लोग शेर को खूँख्वार बना रहे हैं तो दूसरी तरफ देवताओं के आहार-विहार को शाकाहारी और नशामुक्त बनाने पर तुले  हुए हैं. अब भोले बाबा भांग और गांजा के लिए तरस जाएंगे। तेरे नानाजी शिव के भक्त थे. वे शिवरात्रि को शिवजी का भांग की ठंडाई का प्रसाद बच्चो-बूढ़ों, औरत-मर्द सबको दिया करते थे. अब तो नारकोटिक्स वाले फंसा दें. 

हमने कहा- अच्छा हो, हम अपना राष्ट्र-चिह्न ही बदल दें. शेर की जगह सांड। शाकाहारी भी और सड़क से संसद तक निर्द्वन्द्व विचरण करता, चाहे जिसको डराता, किसी को भी सींगों पर उठाकर उछालता।

बोला- कोई बुराई तो नहीं है. वैसे भी लोक में सांड और अंग्रेजी में ‘बुल’ बड़े धाकड़ होते हैं. सिंधुघाटी सभ्यता में तो राजमुद्रा पर एक बलिष्ठ सांड ही है.नंदी भोले बाबा के महादेवत्त्व का वाहक भी है. 

हमने कहा- हमें तो कोई ऐतराज़ नहीं है लेकिन यदि किसी की आस्था आहत हो गई तो कौन संभालेगा ? 

    


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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