Aug 2, 2022

2022-07-31 कौन सा झंडा ?


कौन सा झंडा ?

हमारे पास ३१ जुलाई सन 2002 को खरीदा हुआ लगभग ३० गुणा  २० इंच का एक तिरंगा झंडा है जो हम रिटायर होने के दिन खरीदकर लाये थे. इसलिए कि अब १५ अगस्त और २६ जनवरी को झंडे को घर पर ही फहराएंगे और सलामी दे लिया करेंगे.कहीं जाना नहीं पड़ेगा. यह क्रम भगवान की कृपा से अभी तक तो बदस्तूर ज़ारी है. इस १५ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर ७६ वीं बार झंडा फहराता देखेंगे. 

सबसे पहले झंडा फहराते १५ अगस्त १९४७ को देखा था. स्कूल जाते हुए एक साल हुआ था. छह महीने ‘अ’ और छह महिने  ‘ब’ आजकल की नर्सरी, केजी समझ लीजिये. 

शुक्रवार का दिन था. स्कूल गए तो देखा कि  प्राइमरी, मिडिल और हाईस्कूल के सभी बच्चे मुख्य बिल्डिंग के सामने मैदान में इकट्ठे हुए थे. एक ऊँचे बांस पर तीन रंग का झंडा लगा हुआ था. स्कूल के हेडमास्टर अमीर बहादुर सक्सेना उसके पास खड़े हुए थे. उन्होंने कागज से देख-देखकर ‘जन गण मन’ और ‘सारे जहां से अच्छा’ जैसा कुछ गाया था. हाँ यह बहुत अच्छी तरह से याद है कि कुछ मिठाई भी मिली थी. किसी को लड्डू, किसी को गुड़ और किसी को बताशे, किसी को मिश्री और किसी को मखाने। यह भी बताया गया कि आज से हमारे देश से अंग्रेजों का राज ख़त्म हो गया है. अब हमेशा १५ अगस्त को स्वतंत्रता का दिन मनाया जाएगा और मिठाई बांटी जायेगी. 

इसके बाद हर साल सुबह-सुबह हमारे कुछ अध्यापक बच्चों के साथ ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ गाते हुए प्रभात फेरी लेकर आते थे और गली मोहल्ले के बच्चे उसमें शामिल होते हुए अंत में स्कूल पहुंचा करते थे.  १९६० में जब हम अध्यापक बने तो कई वर्षों तक तिरंगा झंडा लेकर प्रभात फेरी निकालते रहे. 

हमने तिरंगा झंडा पहली बार १५ अगस्त १९४७ को देखा था. उसके बाद भी बहुत वर्षों तक झंडे को छूने का मौका नहीं मिला. हमारे हेडमास्टर सक्सेना जी ने कभी तिरंगा किसी को छूने नहीं दिया. खुद चढ़ाते थे और खुद ही शाम को चपरासी को साथ लेकर उतारते थे. अगली बार फहराए जाने तक हम तह किये तिरंगे को उनके ऑफिस में शीशे के पल्लों वाली अलमारी में देखा करते थे. 

 

 

आज रविवार है. तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, झंडा ढूँढकर, धो, प्रेस करके तैयार कर ले. 

हमने कहा- अभी तो दो सन्डे बीचे में हैं. निकाल लेंगे. 

बोला- नहीं, अबकी बार १३ अगस्त से १५ अगस्त तक तीन दिन-रात तक लगातार तिरंगा फहरेगा. 

हमने कहा- लेकिन यह तो नियम विरुद्ध है. शाम को तो झंडा उतार लिया जाता है. 

बोला- नहीं, अबकी बार शाम को नहीं उतारा जाएगा. 

हमने पूछा- तो क्या अब झंडारोहण संहिता बदल गई है ?

बोला- बहुत कुछ बदल गया है. अब केवल सरकारी कार्यालयों, स्कूलों आदि और कुछ तेरे जैसों के घरों पर ही नहीं बल्कि बल्कि दस-बीस करोड़ घरों पर तिरंगा फहराया जाएगा. 

हमने कहा- क्यों, इस बार ऐसी क्या ख़ास बात हो गई. 

बोला- बहुत ख़ास है. पहली बार देश में राष्ट्रप्रेमी सरकार पूर्ण बहुमत से लगातार आठ वर्षों से देश के निर्माण और गौरव-वृद्धि में लगी हुई है. साथ ही घर-घर पर तिरंगा फहराने से अब तक देशभक्ति में जो कमी आ गई थी उसकी पूर्ति भी हो जायेगी और देशद्रोहियों तथा देशभक्तों की पहचान भी हो जायेगी. और अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी, बेरोजगारी और महंगाई से आ रही कुंठा और हीनभावना भी कम हो जायेगी. 

हमने कहा- इसका मतलब है मोदी जी ने २०१४ में ही अपने मन में २०२२ में देश के १०-२० करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने का निश्चय कर लिया होगा. अन्यथा कोई एक दो महीने में तो इतने तिरंगे बन नहीं सकते. तिरंगा हाथ से कते -बुने खद्दर से बड़ी सावधानी और पवित्रता से कुछ ख़ास खादी भंडारों में बनाया जाता है. 

बोला- नहीं, समय कम है इसलिए उस प्रक्रिया को अपनाना संभव नहीं है. अब तो अधिकतर तो चीन से, कुछ चीन के पॉलिएस्टर के कपड़े से सूरत में निजी ठेकेदारों से बनवाये जाएंगे. और लोगों को ९, १८ और २७ रुपये में बेचे जाएंगे. और फहराने के लिए डंडा खुद का. जितना ताकतवर व्यक्ति उतना बड़ा डंडा और उतना ही ऊँचा झंडा. जितना ऊँचा झंडा उतना बड़ा देश भक्त और उतना ही देश की सेवा करके मेवा खाने का अवसर. 

हमने कहा-  जब इतना ही ज़रूरी है तो बैठ, अभी देख लेते हैं. आज धो भी लेंगे और प्रेस भी कर ही लेंगे. 

हमने अलमारी से अपना २२ साल पुराना तिरंगा निकाला लेकिन यह क्या ? किसारियों ने कई जगह से कुतर दिया था. हमें बहुत दुःख हुआ और अपशकुन जैसा भी लगा.आज़ादी का अमृतमहोत्सव वर्ष और झंडे की यह दशा !  

हमने कहा- तोताराम, अब क्या करें ? 

तोताराम हमारे पास अलमारी तक चला आया. 

बोला- इसके नीचे यह भगवा रंग का क्या रखा हुआ है. 

हमने कहा- यह तो एक नया गमछा है जो हमारे किसी राष्ट्रभक्त मित्र ने किसी कार्यक्रम में हमें भेंट किया था. 

बोला- तो बस, ठीक है. इसी को फहरा लेना. 

हमने कहा- इसे कैसे फहरा सकते हैं ? यह तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का झंडा है जिसके मुख्यालय पर आज़ादी के ५०-५५ साल  बाद तक तिरंगा नहीं फहराया गया. 

बोला- मैं ज़्यादा तो नहीं जानता लेकिन कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ईश्वरप्पा ने कह तो दिया है कि  एक दिन लाल किले पर भगवा झंडा फहराएगा. 

हो सकता है यह संघ के जन्मशताब्दी २०२५ में ही हो जाये. तो फिर शुभस्य शीघ्रम. इसी १५ अगस्त को क्यों नहीं. 

हमने कहा- लेकिन अगर इस पर किसी को कोई ऐतराज़ हुआ तो ? 

बोला- ऐसा नहीं होगा। जिनका ऐतराज करने और दंड देने  का अधिकार है उनका तो इसे मौन समर्थन है बल्कि हो सकता है तू इस अतिउत्साह के लिए प्रकारांतर से पुरस्कृत भी हो जाए. 

 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमें सरकार के इस अति झंडा-प्रेम से बहुत डर लगता है. करोड़ों झंडों का क्या सम्मानपूर्वक विसर्जन संभव है. हो सकता है कल को ये झंडे नालियों में और सड़कों पर लोगों के पैरों में अपमानित होते फिरें. 

बोला- इसमें भी फायदा ही है. हो सकता है, लोग झंडा फहराने की सरकरी ज़बरदस्ती से चिढ़कर तिरंगे पर ही गुस्सा उतारने लगें. जैसे हिजाब छोड़ने की ज़िद के उत्तर में कर्णाटक की मुस्लिम लडकियां हिजाब पहनने की ज़िद करने लगीं. हो सकता है इससे ही ईश्वरप्पा वाले इरादे के लिए मार्ग प्रशस्त हो. 

हमने कहा- तोताराम, हमें तो एक और खतरा नज़र आ रहा है. हो सकता है उत्साही गौरक्षकों की तरह उत्साही ‘घर-घर तिरंगा सैनिक’ किसी को भी पकड़कर इसलिए ठुकाई कर दें कि वह अपने घर पर तिरंगा नहीं फहरा रहा है या ढंग से नहीं फहरा रहा है. या यह भी हो सकता है कि किसी को पीटने के लिए कोई ‘तिरंगा जिहाद’ जैसा अपराध न खोज निकालें. या कागज की छोटी सी तिरंगी झंडी पकड़ाकर तीस-तीस रुपये न वसूलने लग जाएँ. 

और जो न देगा उसका क्या हाल होगा, यह सब जानते हैं.


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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