Oct 23, 2022

रूपचौदस : रूप का नरक


रूपचौदस : रूप  का  नरक 

कल धनतेरस थी। दो महीने से अख़बारों में कर्मचारियों और पेंशनरों को सरकार के तोहफे, दिवाली के उपहार , खाते में आएंगे एक-एक लाख जैसे जुमले उछल रहे  हैं लेकिन आया कुछ नहीं। गया ही गया है। फिर चाहे दूध के दाम हों या सब्जी के। हाँ, ज्योतिषी खरीददारी के लिए अनेक शुभ और श्रेष्ठ मुहूर्त बता रहे हैं। इसलिए उनकी धन तेरस ज़रूर होनी है।  उनके लिए कोई महंगाई नहीं है।  हर सौदे पर २०-२५ प्रतिशत मुनाफा पक्का। 

सो धनतेरस जिन के लिए रही होगी वे जानें, हमारे लिए सामान्य दिन जैसा ही रहा है।  आज जैसे ही उठे पत्नी ने एक ही रट लगा रखी है-  दो हाथ सरसों के तेल के लगा लो, ऐसे ही नहीं चुपड़ना, रगड़ना भी।  

हमने कहा- रगड़ाई के लिए हमें कुछ नहीं करना।  वह तो सेवक लोग जब, जिसको मौका लगता है हमें ही रगड़ रहा है।  व्यापारी और गुंडे तो उनके वश में आते नहीं हैं। 

बोली- ये हर बात में सेवक, व्यापारी, राजनीति लाना बंद करो।  आज रूपचौदस है।  कम से कम आज तो तेल मालिश करके गरम पानी से ढंग से नहा लो। उसके बाद तो सर्दी का बहाना बना कर कभी नहाओगे नहीं, तो कभी ऐसे ही दो लोटे पानी डालकर नहाने का कर्मकांड कर लोगे जैसे सरकारें चुनाव आने पर जगह-जगह शिलान्यास और घोषणाएं कर देती हैं और उसके बाद करना-धरना नहीं।विकास में हिस्सदेदारी के बतौर छुटभैय्ये शिलान्यास के पत्थर उखाड़कर ले जाएंगे।  

इसी बीच पता नहीं कब तोताराम आगया, बीच में ही बोल उठा- अरे मास्टर, नहा ले। क्या इस मैल को लिए-लिए ही यमराज का स्वागत करेगा ?

हमारी जगह पत्नी ने ही उत्तर दिया- आज के दिन तो कम से कम शुभ-शुभ बोलो लाला, रूपचौदस का दिन है ।  तुम्हारी चाय कहीं भागी थोड़े ही जा रही थी। आज तो कम से कम नहा-धोकर आते। 

अब तो हमें भी हस्तक्षेप करना ही पड़ा। एक बार को अज्ञानी चुप रह सकता है लेकिन जिसे सर्वज्ञता का बहम हो जाए वह टांग अड़ाए बिना नहीं रह सकता। वैसे किन्हीं दो की बात में बीच में बोलना मूर्खता कहलाती है।  

हमने कहा- यह रूप ही तो सभी समस्याओं की जड़ है। जिस रूप को लेकर हम खुद को अलौकिक समझते हैं वह भी हर अन्य नश्वर जीव और वस्तु की तरह तरह-तरह से नारकीय ही होता है। हर जन्म लेने वाले को बीमार होना और बूढ़ा होकर मरना ही है। किमाश्चर्यं ? सबको मरते हुए देखकर भी मनुष्य सोचता है कि और जीव अपनी गलतियों-कमियों या अभावों के कारण मरते हैं लेकिन मैं नहीं मरूँगा, मेरे पास क्या कमी है ? 

इसीलिए इस रूपचौदस नामक आकर्षक लेकिन भरमाने वाले पर्व को नरकचौदस भी कहा गया है।  

तोताराम ने ऐतराज जताया, बोला- फिर भी आदमी मानता कहाँ है ? दिन में दस बार नई-नई ड्रेसें बदलता है, जहां जाता है अपने साथ कई-कई फोटग्राफर ले जाता है, तरह-तरह की फोटो खिंचवाता है, उन्हें हर जगह चिपकवाने का इंतज़ाम करता है। धर्म-कर्म की बजाय हर क्षण कैमरे पर ही निगाह टिकाये रहता है। 

अंतिम यात्रा में भी यह सोचकर पूरे मेकअप और दल-बल सहित ऊपर जाना चाहता है कि ऊपर भी उसे वी वी आई पी ट्रीटमेंट मिलेगा।  इसका वश चले तो मरने के बाद भी खुद को भुस भरकर भी गद्दी पर स्थापित रखे। तभी तो मिस्र के फराह खुद को पिरामिड में रखवाते थे और साथ में अपने दास-दासी, गहने भोजन आदि।   

हमने कहा- इसमें क्या झूठ है ? कहने को पांच तत्त्व माने जाते हैं और मरने के बाद यही कहा जाता है कि अमुक-अमुक सेवक की देह पंचतत्त्व में विलीन हो गई लेकिन ऐसा होता कहाँ है ? ऐसे माया मोह में फंसे लोगों में एक छठा तत्त्व भी होता है जो कभी विलीन नहीं होता। वह है खुराफात। 

बोला- तभी तो रामसुखदास जैसे संत  कहते हैं कि उनका कोई स्मारक नहीं बनवाया जाए।  वे तो फोटो भी नहीं खिंचवाते थे, चरण छुआना तो बहुत दूर की  बात। और ये खुद और कैमरे के बीच भगवान तक को नहीं आने देते।  इनका वश चले तो ये अपने स्मारक और मूर्ति के ठेके का कमीशन भी जीते जी ही वसूल लें।  

हमने कहा- तभी तो ! क्या तूने कभी सुना है कि किसी नेता ने मेडिकल के छात्रों के अध्ययन के लिए अपना 'देह दान' किया हो ? रूप के नरक में फंसे इन लोगों के लिए ऐसा संभव नहीं। ऐसा भी कोई ज्योति बसु जैसा तत्त्वज्ञानी ही कर सकता है।  

तोताराम बोला- तो दिवाली की छुट्टी के बाद देहदान पर गंभीरता से विचार करते हैं।    


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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