Oct 24, 2022

अभी बाबा सेवकों कब्ज़े में हैं


                  


अभी बाबा सेवकों कब्ज़े में हैं 


आज दिवाली है।  घर के सभी स्वयंसेवक लस्त-पस्त पड़े हैं।  कई दिनों से 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत सभी लगे हुए थे सफाई कार्यक्रम में अपने आप ही। चूँकि अब यहां भी अमरीका की तरह 'सामान सस्ता और मजदूरी महँगी' वाली विकसित स्थिति आने लगी है तो सदन ने खुद ही बहुमत से  श्रमदान करने का निर्णय लिया । हमने मतदान में भाग नहीं लिया इसलिए इस वास्तविक श्रमदान में भाग लेने की बाध्यता नहीं थी। 

यह कोई 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' जैसा  पहले से साफ़ जगह पर 'डिसइन्फैक्टेड झाड़ू फिराते हुए फोटो खिंचवाने का फ़िल्मी सूटिंग वाला काम तो था नहीं, 'भारत जोड़ो पदयात्रा' की तरह वास्तव में थका देने वाला काम था। कल इस सफाई  मेराथन का अंतिम राउंड था जो देर रात तक चला।  सो सभी धावक 'प्रसाद जी' के आंसू वाली स्थिति में थे- 

मादकता से तुम आए
संज्ञा से चले गए थे
हम व्याकुल पड़े बिलखते
थे उतरे हुए नशे से।

 इसलिए हमने भी किसी स्वयंसेवक को कष्ट देने का पाप करना उचित नहीं समझा। 


निर्देशक मंडल के आजीवन अध्यक्ष की तरह बरामदे में अकेले ही बैठे थे। तथाकथित पट्ट शिष्यों को कहाँ फुर्सत दिवाली की राम-राम करने की या 'साल मुबारक' कहने की।  होंगे कहीं दीये जलाने का विश्व रिकार्ड बनाने में व्यस्त। अखबार वाला भी दिवाली के चक्कर में आज जल्दी ही अखबार दे गया। हम अखबार में दिवाली के विज्ञापनों के बीच कोई खबर ढूँढने के असफल प्रयास में खोये हुए थे कि तोताराम के मुखर-मुग्ध स्वर ने मधुमती भूमिका को भंग किया, बोला- अब तो खुश, मिल गया दिवाली का तोहफा ?

हमने कहा- कैसा तोहफा ? दो  महिने से अखबार वाले हल्ला मचाये हुए हैं- मोदी जी ने दिया केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों को दिवाली का तोहफा। अभी तक तो अच्छे दिन की तरह मृगतृष्णा साबित हो रहा है। नेताओं के वादे हैं, जब पूरे हो जाएँ तब विश्वास करना। बल्कि हमारा तो मानना है कि तसल्ली करने के लिए बैंक पासबुक दो-चार लोगों को दिखा लेनी चाहिए। कहा है ना- मियाँ मरा तब जानिये जब चालीसा होय।  

बोला- और बातें सब बाद में पहले तो तू अपनी जुबान संभाल।  किसी ने तेरे इस मुहावरे से 'भावनाएं आहत होने' को लेकर एफआई आर दर्ज़ करवा दी तो तेरी दिवाली का दिवाला निकल जाएगा। आगे कई छुट्टियां हैं, कई दिनों तक जमानत भी नहीं  होगी।  

हमने कहा-  इसकी फ़िक़र मत कर। यह किसी हिन्दू की भावना नहीं है जो किसी मुसलमान के अपने मरीज के लिए दुआ स्वरूप अस्पताल के किसी कमरे में नमाज पढ़ने तक से आहत हो जाए और जिसका पुलिस नोटिस भी ले ले और एफआईआर भी दर्ज कर ले। सच पूछे तो मुसलमानों की तो कोई भावनाएं ही नहीं होतीं। यदि कोई युवा नेता उन्हें गोली मारने या कोई संत उनकी महिलाओं से बलात्कार करने की धमकी दे दे तो भी उनकी भावनाएं आहत नहीं हो सकतीं। तो फिर मियाँ वाले इस मुहावरे से भी कुछ नहीं होगा। लेकिन तू तोहफा कौन सा बता रहा था।  क्या मोदी जी वाले चर्चित लेकिन अभी भी लंबित तोहफे से अलग कुछ है ? 

बोला- और क्या ? कल छोटी दिवाली को विराट ने ऑस्ट्रेलिया में पाकिस्तान को हराया, यह क्या किसी तोहफे से कम है ? 

हमने कहा- ये सब झुनझुने हैं जो दूध न पिला सकने वाली माँ हर रोते हुए बच्चे को थमाती है।  कल अयोध्या में १५ लाख ७६ हजार दीयों का रिकार्ड बनाया लेकिन क्या उससे किसी की दाल में छोंक लगेगा या उन दीयों से यमुना खड़े इनामोत्सुक किसी ब्राह्मण को गरमी मिलेगी ? 

 बोला- आज सोमवार है। जब तक भाभी उठे तब तक 'गहलोत मोटर्स' के सामने वाले शिव-हनुमान मंदिर ही हो  आते हैं।  

हमें बिना किसी अतिरिक्त समय खर्च किये मुफ्त में दो बड़े  देवताओं को आभारी बनाने का सुझाव पसंद आया और हम दोनों भोले बाबा के दर्शनों के लिए चल पड़े।  

जैसे ही मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो देखा,एक अत्यंत शांत और शालीन महिला वहीँ रखी पत्थर की एक बेंच पर बैठी थी। पता नहीं क्यों, हमें उसकी शक्ल पहचानी सी लगी । हमने जब तोताराम को अपना अनुमान बताया तो   बोला- इसमें सोचने की  क्या बात है, पूछ ही लेता हूँ। और उसने पूछा ही लिया-  माते, क्या आप पार्वती जी हैं ? 

वह महिला कुछ अनखाती  सी बोली- तो और कौन इतनी सुबह यहां आकर बैठेगा ? 

हमने कहा- माते, अब थोड़ी ठण्ड होने लग गई है। अच्छा हो, आप अंदर ही बैठें।  

बोलीं- अंदर ही तो बैठे थे लेकिन क्या करें, कोई बड़े नेता आ गए हैं दर्शन करने।  

तोतराम ने कहा- लेकिन माते, ऐसा कौन इतना बड़ा नेता आ गया जो आपको वहाँ नहीं बैठने दे ?

पार्वती जी बोलीं- पता नहीं कौन है ? उसके साथ कई फोटोग्राफर हैं, तरह-तरह से बाबा के साथ नेता के फोटो खींच रहे हैं। हम एक बार आगे से निकल गए तो नेता ने ही हमें बांह पकड़कर एक तरफ कर दिया और बोला- हम अपने और कैमरे के बीच किसी भगवान को भी बर्दाश्त नहीं करते ।  

हमने कहा- तो फिर माते, जब तक नेता की यह फोटो नौटंकी चले तब तक क्यों न हमारे घर पधारें और एक कप चाय पियें  ?

बोलीं- बेटा, थोड़ी देर में यह काम भी निबट ही जाएगा। दिन में दस ड्रेसें बदलने वाले नेताओं को  इस बूढ़े दिगंबर बाबा से क्या मतलब है ? चुनाव हैं तो प्रकारांतर से वोट का गणित बैठा रहे हैं। फिर कहीं और जाकर मंच सजायेंगे।तुम दोनों अपने घर जाओ।  

और हाँ, शाम को मास्क ज़रूर लगा लेना। संस्कृति के नाम पर पटाखे फोड़ने का भोंडा प्रदर्शन अपने चरम पर होगा। वैसे ही इस उम्र वालों के फेफड़े पंचर हुए रहते हैं।  

 





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