Nov 17, 2022

कुछ खाया भी कर


कुछ खाया भी कर 


कूड़ा फेंककर आये और सीढ़ियों पर चढ़ने लगे तो पैर लचक गया।  तोताराम ने हमारा हाथ थाम लिया।  जैसे ही अंदर आकर बैठे, बोला- कुछ खाया कर। 

हमने कहा- खाते तो हैं दो रोटी सुबह, दो रोटी शाम को।  दोपहर में चाय और दो बिस्किट। और क्या खाएंगे इस बुढ़ापे और महंगाई में।  

बोला- मेरा मतलब कुछ पौष्टिक। 

हमने कहा- अब इस पेंशन में कौनसा शिलाजीत या हिमालय का ४० हजार रुपए किलो का मशरूम खा लें।  बाड़े में जो सैंजने का पेड़ लगा है उसके फलियां तो आती नहीं सो जितने भी पत्ते आते हैं उन्हीं को तोड़कर, सुखाकर पाउडर बना रखा।  कभी-कभी उसकी रोटियां बनवा लेते है, डाक्टर ने परांठे खाने से तो मना कर रखा है। और क्या खाएं ?

बोला- बुरा न माने तो एक सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ उपाय है तो सही।  मोदी जी ने कल ही हैदराबाद में कहा है कि मैं रोजाना दो-अढ़ाई किलो गालियां खाता हूँ जिससे मुझे ताकत मिलती रहती है। वैसे इस देश में गालियां तरह-तरह की होती हैं। किस प्रकार की, किस भाषा की, कितनी, कब, किसके साथ सेवन करनी चाहिए यह तो नहीं बताया।  फिर भी जनहित में यह खुलासा करने के लिए उनसे निवेदन किया जा सकता है। 

सबका तो ५६ इंच का सीना होता नहींजो इतनी गालियां पचा सकें। वैसे सामान्य आदमी के लिए तो सौ-दो सौ ग्राम ही बहुत है। तेरा काम तो ५० ग्राम में ही हो जाएगा।  

मोदी जी ने बताया है कि उनके शरीर में एक विशेष व्यवस्था है जो गालियों को पौष्टिक ऊर्जा में बदल देती है जैसे फोटो वाल्टिक सेल धूप को बिजली में। यह पता करना पड़ेगा कि तेरे आमाशय में वह व्यवस्था है या नहीं।  नहीं है तो क्या इम्प्लांट हो सकती है ? 

हमने कहा- तोताराम, हिंदी का अध्यापक होकर भी तू मोदी जी की बात नहीं समझा।  अरे, गाली कोई वस्तु थोड़े ही होती है। मोदी जी इतने शालीन हैं कि किसी को 'हत्तेरे की' भी नहीं कहते। उनके अनुसार तो आलोचना भी गाली ही होती है।जो किसी भी देश समाज के विकास में बाधा डालती हैं।  सच्चे और अच्छे नागरिक का कर्तव्य है कि वह 'जय-जय' के अतिरिक्त कुछ न बोले।   

जैसे गाँधी जी ने एक अंग्रेज द्वारा लिखे गए गालियों वाले पत्र में से काम की एक चीज 'आलपिन' निकालकर रख ली और कागज फेंक दिया। वैसे ही वे तो अपनी सेवा की लगन की बात कर रहे थे कि वे लोगों की आलोचना की परवाह नहीं करते बल्कि  उससे प्रेरणा लेकर देश की और अधिक सेवा करते हैं।

जो कुछ करते नहीं, या करने योग्य नहीं होते उन्हें कोई गाली भी नहीं देता।  हमें न कोई गाली देता है और न ही कोई हमें देखकर 'मोदी-मोदी' की तरह 'जोशी-जोशी' या 'तोता-तोता' चिल्लाता है।  

बोला- तो इसका मतलब है कि गाँधी और नेहरू ने वास्तव में बहुत काम होगा जो आज भी भक्त लोग अपने आराध्य के साथ गाँधी के लिए गोडसे और सावरकर की आड़ में तथा नेहरू के लिए सुभाष और पटेल की आड़ में नित्य प्रति गाली सहस्रनाम का पाठ करते रहते हैं।  

तभी तो  'चलती का नाम गाड़ी' में कहा गया है- 

खून-ए-जिगर पीने को, लख्ते जिगर खाने को, 

ये ग़िज़ा मिलती है लैला तेरे दीवाने को।  

हमने कहा- गालियों और समाज की ट्रोलिंग के इसी महत्त्व को समझते हुए हमारे विद्वानों ने कहा- 

घटं भिन्द्यात्पटं छिन्द्यात्कुर्याद्रासभरोहणम्।
येन केन प्रकारेण प्रसिद्धः पुरुषो भवेत्॥

चाहेअपना घड़ा फोड़कर, अपने कपड़े फाड़कर या गधे पर सवार होकर ही सही लेकिन पुरुषों को कोई भी उल्टा-सीधा काम करके प्रसिद्ध होने का प्रयत्न करना चाहे। 

क्योंकि 'बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा'।  

नाम होगा तो कुछ न कुछ काम भी हो ही जाएगा। 

पूजा ढिंचेक नाम की मधुर गायिका का नाम सारे दिन नेट पर झख मारने वाले ज़रूर जानते होंगे कि वह अपने बकवास रैप गीतों से भी अपना स्थान बना चुकी है और यूट्यूब पर अपने वीडियो से ठीकठाक कमाई भी कर रही है।  


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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