Nov 16, 2022

स्टीव जॉब्स की चप्पलें


स्टीव जॉब्स की चप्पलें 


सभी लतें बोरियत से शुरू होती हैं। और बोरियत के साथ बढ़ती भी जाती हैं। जैसे बोर होने पर बीड़ी पीने वाला ज्यादा बीड़ी पीता है और खैनी खाने वाला ज़्यादा खैनी खाता है।  कोई बड़ा नेता या राजा हुआ तो कोई ऊल जलूल कानून बना देगा। और कुछ नहीं तो नोटबन्दी ही कर देगा। लॉक डाउन ही लगा देगा।  

चूँकि जानवर के पास ये सुविधाएं और अधिकार नहीं होते तो वह जैसी भी संभव हो तो कोई तोड़-फोड़ करता है।  कई वर्षों से घर में कोई न कोई पालतू जानवर कुत्ता-बिल्ली, तोता आदि रहे हैं इसलिए हम कह सकते हैं कि ये भी  बोर होने पर काट-पीट, कुतरना जैसा कुछ न कुछ कर ही डालते हैं।  

हम अपने पालतू कुत्ते 'कूरो' को रात को खुला छोड़ते हैं तो वह भाग-दौड़, उछल-कूद कर लेता है।  कल रात को उसे खोलना भूल गए तो उसने अपना काम कर दिया।  मतलब पास में पड़ी हमारी पुरानी चप्पलों का एक पट्टा काट दिया।  वैसे चप्पलें दो साल पुरानी हैं। महँगी भी नहीं हैं। अपने मूल्य के अनुसार सेवा भी दे चुकी हैं। अब उन्हें हमारी तरह निर्देशक मंडल में रखा जा सकता है।  लेकिन चूँकि कभी कभार बरसात में उन्हें अब भी पहना जा सकता था इसलिए 'विश्व विरासत' और सनातन संस्कृति की तरह संभाले हुए थे। अब तो वे मरम्मत के लायक भी नहीं बचीं तो कूड़े के साथ उन्हें भी फेंकने जा रहे थे कि तोताराम आ गया।  

बोला- चप्पलें क्यों फेंकने जा रहा है ? 

हमने कहा- अब कब तक संभालकर रखें। दो साल पहले मंडी के सामने कानपुर वालों की 'दिवाली धमाका' सेल लगी थी तो १५०/- रुपए में लाये थे।  अब और कब तक घसीटेंगे ? 

बोला- आजकल नई नहीं, पुरानी चीजों का बड़ा क्रेज चल रहा है। आज ही समाचार है कि स्टीवजॉब्स की पुरानी  चप्पलें नीलम होने वाली हैं जो उसने १९७०-८० में पहनी थीं ।ब्राउन लेदर बार्किस्टॉक वाली इन एरिजोना सेंडल को जूलियन ऑक्सन्स ने नीलामी के लिए  ४८ लाख रुपए की  शुरुआती कीमत पर रखा है।  

और अंततः ११७ लाख रुपए में बिकी।   

हमने कहा- ये सब भरे पेट के, कुंठाओं का धंधा करने वाले लोगों के तमाशे हैं।  बुद्ध मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे लेकिन उन्हीं के दाँत को मंदिर में रख रखा है।  यह ठीक है कि स्टीवजॉब्स एप्पल का सहसंस्थापक था लेकिन इसी से उसके जूते राम की पादुका नहीं हो जाते।  कैंसर होने पर वह मन्त्र-तंत्र में चक्कर में भारत के तांत्रिकों के संपर्क में भी रहा बताते हैं। उसकी चप्पलों से लोग कौन सी महान प्रेरणा लेंगे। 

ऐसे में हमारी चप्पलें !

बोला- हमारी चप्पलें व्यर्थ नहीं हैं।  उनका अब भी अर्थ है।  वे सरल और सुविधाजनक रास्तों पर चलकर नहीं घिसी हैं।  उन्होंने जीवन के कंटकाकीर्ण रास्तों पर अस्सी साल का सफर किया है। अपने विद्यार्थियों को भी हमने तर्क और बौद्धिकता के रास्ते पर चलना सिखाया है।  

हमने कहा- लेकिन अब 'जय अनुसन्धान' के युग में इंग्लैण्ड से सेमीफाइनल खेलने से पहले ही पाकिस्तान को फाइनल में रगड़ देने के लिए टी वी स्टूडियो में क्रिकेट पर चर्चा करने के लिए शंखध्वनि के साथ ज्योतिषियों का सम्मलेन शुरु हो जाए तो उस देश में 'समुझि मनहि मन रहिये'।  

बोला- और फिर देख भी लिया विश्वगुरु की ज्योतिषीय वैज्ञानिकता का हश्र। जुबान तालू से चिपकी हुई है। बोलती बंद है।   

हमने कहा- जब निकल ही पड़े हैं तो कूड़ा फेंक ही आते हैं।  उसके बाद बैठेंगे।    


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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