अब विश्व गुरु बनने में क्या कसर है
आज तोताराम को किसी लघु-दीर्घ शंका या प्रश्न-जिज्ञासा का मौका दिए बगैर हमने ही बैटिंग संभाल ली और पूछा- तोताराम, भारत के विश्वगुरु बनने में क्या कसर रह गई ?
बोला- कसर किस बात की है ? चार धामों के चार जगद्गुरुओं के अतिरिक्त पचासों और भी कई लंठ टाइप जगद्गुरु भी इधर-उधर घूमते मिल जाएंगे । जिस पुण्य भूमि पर इतने जगद्गुरु हों उसके जगद्गुरु होने में क्या कमी और क्या कसर ?
और तो और छोटे मोटे धर्मगुरु, बापू और राम-भगवान तो जेलों तक में भरे पड़े हैं । किसी को जमानत नहीं मिलती और कई इतने संस्कारी होते हैं कि जब जब चुनाव होते हैं जमानत पर बाहर आ जाते हैं और सत्संग (!) करते फिरते हैं ।
हमने कहा- 1986 में एक बार हमने भी बनारस से दिल्ली तक की यात्रा में एक जगद्गुरु के हाथ से बनी 'खैनी' खाई है । लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि जगद्गुरु और विश्वगुरु में फ़र्क होता है । जगद्गुरु तो एक साथ कई कई हो सकते हैं । और मजे की बात यह है कि सब एक दूसरे को नकली बताते रहते हैं ।इनको कोई नहीं पूछता । इनको अपनी खुद कि बात तक समझ नहीं आती कि क्या बोल रहे हैं और उसका क्या मतलब है । सब 'एन्टायर हिन्दुत्व' में एम ए होते हैं । लेकिन विश्वगुरु का मामला दूसरा है । जो अपनी वैश्विक दृष्टि और समझ से दुनिया को प्रभावित कर सके और यह विश्व मार्गदर्शन के लिए जिसकी तरफ देखता हो, वही विश्वगुरु हो सकता है । कभी बुद्ध ने अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत से विश्व को मार्ग दिखाया था तो कभी विवेकानंद ने भारतीय दर्शन के मूलतत्व की अपनी यूनिवर्सल व्याख्या से दुनिया को मुग्ध कर दिया था तो आज पूरी दुनिया को गांधी की समावेशी सोच में भविष्य की रोशनी दिखाई देती है ।
बोला- तो चल तेरी ही बात मान लेता हूँ । तो आज सारी दुनिया समाधान के लिए मोदी जी की तरफ देखती है । आस्ट्रेलिया का प्रधानमंत्री उन्हें बॉस कहता है। अमरीका का राष्ट्रपति उनके ऑटोग्राफ लेता है । रूस का राष्ट्रपति उनसे रूस और यूक्रेन के संघर्ष के समाधान की आशा लगाए हुए है । जिस दृढ़ता से नोट बंदी की, जीएस टी लागू किया और जिस तरह ताली-थाली से कोरोना मनेजमेंट किया उसने उन्हें विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता बना दिया है । अब विश्वगुरु, जगद्गुरु या ब्रह्मांड गुरु होने में क्या कमी रह गई ?
हमने कहा- ऐसी उपाधियों की कौनसी परीक्षा होती है ? कोई भी जगद्गुरु की तरह खुद को कुछ भी घोषित कर सकता है ? नौकरी करने जाओ तो फिर भी डिग्री की जाँच की संभावना रहती है । महुआ मोईत्रा जैसी नौकरी धुप्पल वाली डिग्रियों से नहीं मिल सकती । हमारी एक परिचित है जो कभी किसी चक्कर में दस दिन के लिए एम आई टी हो आईं सो अब अपने मेल के पते एम आई टी लगाती हैं । एक हमारे परिचित हैं जो एक स्कूल चलाते हैं । एक दिन अचानक अपने नाम से पहले डॉ. लिखने लगे । अब कोई नौकरी तो करते नहीं । वैसे भी जब धर्म का धंधा करने वालों तक को इंजीनियरिंग के बड़े बड़े कॉलेज उनके राजनीतिक प्रभाव के कारण डॉ . की मानद डिग्री दे देते हैं तो कोई उनका क्या कर लेगा ? और तो और कई निजी विश्वविद्यालय पैसे लेकर डॉ. की मानद उपाधि बांटते हैं ।
तू चाहे तो आज से हम तुझे 'डॉक्टर' और तू हमें 'विश्वरत्न' कहने लग जा । देखते हैं कौन हमारा किया बिगाड़ लेता है ।
बोला- मैं तुझे इस महान देश के ज्ञान और शिक्षा के दो उदाहरण देता हूँ जिससे पता चलता है कि इस देश के विश्वगुरु होने में कोई कसर नहीं है । पहला- अमृतसर के डॉ संदीप सिंह चार विषयों में स्नातकोत्तर है और एक पीएचडी डिग्रीधारी हैं। 11 साल पंजाबी यूनिवर्सिटी में एडहॉक प्रोफेसर के पद पर काम करने के बाद अब ठेले पर सब्जी बेचते हैं।
दूसरा- राजस्थान के धौलपुर जिले के एक स्कूल में राजनीति विज्ञान के पेपर में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा और उसकी लंबाई के बारे में एक सवाल पूछा गया, ”भारत बनाम पाकिस्तान के बीच कौन-सी सीमा है, लम्बाई बताओ?
बालक ने लिखा- दोनों देशों के बीच सीमा हैदर है । उसकी लंबाई 5 फुट 6 इंच है । दोनों देशों के बीच इसको लेकर लड़ाई है ।
हमने कहा- डॉ. संदीप सिंह के बारे में तो क्या कहें। हमसे तो ज़िंदगी में राम राम करके एक एम ए और एक बी एड ही हो पाई लेकिन भारत पाक सीमा के बारे में उत्तर देने वाले इस बालक में हमें जरूर विश्वगुरु नजर आता है । अभी तो बारहवीं में राजनीति विज्ञान पढ़ रहा है । एन्टायर पॉलिटिकाल साइंस में एम ए कर लेने दे । फिर देखना कमाल । जरूर किसी देश का प्रधानमंत्री बनेगा ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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