चलो एक काम तो हुआ
आज तोताराम के मुखमंडल से एक प्रकार की शांति झलक रही थी। वैसी ही शांति जैसे कि किसी विषय की वार्षिक परीक्षा होने के बाद छात्र के चेहरे से झलकती है कि चलो, एक से तो पीछा छूटा । अचानक एक बोझ सा उतर जाता है । लगता है कि अब इसकी नोटबुक्स और किताबों को रद्दी में बेचा जा सकता है । और नहीं तो मजे से सुबह तापने के लिए चूल्हा जलाया जा सकता है ।
बोला- चलो मास्टर, नए साल से पहले एक काम तो हुआ ।
हमने पूछा- कौनसा काम हो गया ? दो करोड़ नौकरियां, सबके खाते में 15-15 लाख रुपए, पहलवानों को न्याय, किसानों की आमदनी दुगुनी ।
बोला- अब ये न तो वादे हैं, न जुमले, न किसी बात का विषय । अब तो इनके बारे बात करने पर लोग हँसते हैं । कहते हैं बड़ा बेवकूफ है । इन बातों का कोई मतलब होता है ? जैसे कोई किसी लड़की से बड़े-बड़े वादे करके फँसाता है, शादी का वादा करके कई वर्षों तक यौन शोषण करता है और फिर वह बेवकूफ महिला पुलिस में शिकायत करती है कि उसके साथ धोखा हुआ ? अरे, ऐसे सब काम और बातें धोखा ही हुआ करते हैं ।
हमने पूछा- तो फिर और कौन सा काम हो गया ?
बोला- ले, 3 दिसंबर को चुनाव का परिणाम आने के बाद से एक महिना होने को आया, और मंत्रीमण्डल का गठन नहीं हो रहा था । चलो, कल भजनलाल ने घोषणा कर ही दी ।
हमने कहा- लेकिन अब भजनलाल कहाँ, अब तो मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर है और उनका तो मंत्रीमंडल बहुत समय से बना हुआ है ।
बोला- मैं हरियाणा की नहीं, अपने राजस्थान की बात कर रहा हूँ ।
हमने कहा- कुछ भी कह तोताराम, जब भी कोई भजनलाल का नाम लेता है तो हरियाणा ही ध्यान में आता है । यह नाम हरियाणा से कुछ इस तरह जुड़ गया है कि कोई और ध्यान में ही नहीं आता । उसने दल बदल का जो कीर्तिमान बनाया था वह आज तक नहीं टूटा । एक साथ रात रात में अपने सभी 40 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। कर लो अब क्या करोगे ? लगाओ अब दल-बदल कौनसी धारा लगाओगे ?
बोला- अपने राजस्थान के पहली बार एम एल ए बने भजनलाल शर्मा ने बड़े इंतजार के बाद आखिर मंत्रीमंडल की घोषणा कर ही दी ।
हमने कहा- इस नई शताब्दी में राजस्थान की जनता जयनारायण व्यास, मोहनलाल सुखाड़िया, हरिदेव जोशी किसी को नहीं जानती । उसके हिसाब से तो राजस्थान का मुख्यमंत्री मतलब अशोक गहलोत या वसुंधरा राजे ही होता है ।अच्छा होता इन्हें पहले एक दो बार मंत्री बना देते फिर मुख्यमंत्री बनाते ।
बोला- ऐसे ही तो प्रतिभाओं का विकास अवरुद्ध हो जाता है और देश-राज्य बड़े लाभ से वंचित रह जाता है । मोदी जी भी तो गुजरात में सीधे ही मुख्यमंत्री बने थे और जब केंद्र में आए तो सीधे ही प्रधानमंत्री । इसीलिए वे खुद को किसी का मातहत नहीं मानते और कोई भी बड़े से बड़ा निर्णय ले लेते हैं । मातहत रहते रहते आदमी दब्बू हो जाता है । दूसरों से राय लेने में ही पूरा कार्यकाल निकल जाता है । प्रोटोकॉल के चक्कर ही लगा रहता है ।
मोदी जी ने एक ही झटके में सर्वोच्च न्यायालय से राम मंदिर का फैसला दिलवा दिया । फटाफट राष्ट्रपति के बिना ही राम मंदिर का शिलान्यास करवा दिया । नया संसद भवन बनवा दिया और फिर बिना राष्ट्रपति के उद्घाटन भी करवा दिया । राजदंड का प्रतीक 'सेंगोल' भी रखवा दिया और 150 सांसदों को निकालकर सेंगोल की शक्ति भी दिखा दी । चुनाव से पहले ही मंदिर का उद्घाटन तय कर दिया भले ही शिखर नहीं बना हो और हो सकता है राष्ट्रपति को एक मूक दर्शक बनाकर रामलला को गृह-प्रवेश भी करवा दें ।
क्रांतिकारी परिवर्तन घिसट घिसटकर सीढ़ियाँ चढ़ने वालों के वश का नहीं है । यह तो किसी ऊपर से अवतरित अवतारी पुरुष के द्वारा ही संभव है ।
हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी इन बातों से हमें लगता है कि हमारे भजन लाल में भी प्रतिभा की कोई कमी नहीं है । तभी तो चार दिन में ही मोदी जी की तरह प्लेन में बैठकर फ़ाइलें निबटाने लगे और साफ सुथरी जगह पर झाड़ू लगाकर जयपुर को स्वच्छ बनाने लगे हैं ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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