शुक्र कर कि मैं मोहन यादव नहीं हूँ
आज हमारे इलाके में तापमान शून्य से एक डिग्री कम है । मतलब कहीं न कहीं खुले में खेतों में पाला या बर्फ गिरी होगी । बरामदे में बैठना न संभव था और न ही उचित । कमरे में सिगड़ी सुलगाकर बैठे थे । चाय समाप्त करके तोताराम ने कहा- आज गीता का एक प्रसंग सुन ।
हमने कहा- सब सुनाने में ही लगे हुए हैं । कभी मन की बात, कभी तन की बात, कभी धन की बात लेकिन सब अपने मन की, अपने अनुसार । किसी और के मन के सुख-दुख से कोई लेना-देना नहीं । हम किसी भय या स्वार्थ से किसी विपक्षी पार्टी से भाजपा में शामिल हुए नेता नहीं हैं कि जबरदस्ती या दिखावे के लिए मन की बात की तरह तेरी बात सुनने का नाटक करेंगे ।
और गीता ! जब किसी के पास कोई काम की बात नहीं होती तो गीता-रामायण की बात के बहाने अपनी भड़ास निकालने लगता है । जाने किस-किस ने गीता की बात की लेकिन सब ज्ञान, भक्ति के बड़े-बड़े प्रवचन । अरे, काम करो तो बकवास की जरूरत ही न पड़े । गीत का संदेश है कर्म ।कृष्ण कहते है- कर्मण्ये वाधिकारस्ते..... । कर्म रो करना ही पड़ेगा । सबको अपना काम पता हैं लेकिन शिक्षामंत्री ढंग की शिक्षा देने में असमर्थ है, गृहमंत्री से कानून-व्यवस्था नहीं सँभल रही है, स्वास्थ्यमंत्री से नकली दवाइयाँ बनाने वाले और गुर्दा चोरी करने वाले ही वश में नहीं आ रहे हैं तो अपने काम की बात की बजाय कुछ भी आँय-बाँय-साँय बोलने लगते हैं । हमें नहीं सुननी कोई बात । अगर इस ठंडी में सिगड़ी की आँच के लालच में बैठे रहना है तो बैठा रह लेकिन चुपचाप ।
बोला- शुक्र कर कि मैं मोहन यादव नहीं हूँ ।
हमने कहा- और अगर मोहन यादव होता तो क्या कर लेता ? बड़े-बड़े यादव आए और चले गए । स्वयं कृष्ण की यादवों की सेना महाभारत में मारी गई थी और जो बची खुची थी वह आपस में लड़कर निबट गई । उत्तर प्रदेश और बिहार में भी यादवों का डंका बजा करता था लेकिन अब...
बोला- तुझे पता होना चाहिए मोहन यादव कौन है ?
हमने कहा- मध्यप्रदेश मे वैसे ही मुख्यमंत्री हैं जैसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान के पर्ची से निकाले गए मुख्यमंत्री ।
बोला- ये साक्षात मोहन अर्थात कृष्ण हैं । एक तो नाम मोहन और शक्ल से भी मोहक, दूसरे यदुवंशी । तीसरे साक्षात विष्णु मोदी जी द्वारा नामांकित तो कृष्ण होने में क्या शक है ?
समाचार पढ़ा नहीं ? कल ही शहडोल के एक कस्बे में ‘जन कल्याण पर्व’ में बोलते हुए कैसी जनवादी और कल्याणकारी बात कही है- "हमारे विरोधी कहते हैं कि हम भगवान राम और कृष्ण की बात सुनाते हैं। हाँ, हम सुनाते हैं। हम डंके की चोट पर और तुम्हारी छाती पर पाँव रखकर राम और कृष्ण की गाथाएँ सुनाएँगेे और तुम्हें सुननी पडे़गी।"
हमने कहा- अपना अपना तरीका है । राष्ट्रीय और सांस्कृतिक लोगों का यही तरीका होता है । ये तो किसी मस्जिद के आगे लाउडस्पीकर लगाकर खुदा तक को जबर्दस्ती सुना देते हैं तो सामान्य आदमी की तो बात ही क्या ?लेकिन याद रख धर्म, शिक्षा और संस्कृति जबरदस्ती के मामले नहीं होते । ये सब प्रेम के मामले हैं । बुद्ध ने तो कहीं भी अपना धर्म छाती पर पैर रखकर नहीं फैलाया बल्कि लोगों ने अपने मन से अपनाया । उनके प्रेम से तो अंगुलीमाल भी बदल गया ।
बोला- अंगुलीमाल में आत्मा बची हुई थी । यह अहंकारियों दंडधारियों की भाषा और शैली है ।
हमने कहा- इससे इनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन इनके कर्मों के कारण धर्म और महापुरुषों के प्रति लोगों की श्रद्धा जरूर कम हो जाएगी । हो सकता है यह अश्रद्धा घृणा का रूप ले ले ।
बोला- ऐसा कुछ नहीं होगा । महाभारतकाल में भी कृष्ण ने जबरदस्ती दुर्योधन को अपना विराट रूप दिखाया था ।
हमने कहा- तुझे क्या पता ?
बोला- मैंने तो नहीं देखा लेकिन दिनकर ने लिखा तो है-
यह देख गगन मुझमें लय है
यह देख पवन मुझमें लय है
इसका क्या मतलब है ? लगता नहीं कि कृष्ण बार-बार उसकी मुंडी अपनी तरफ घुमा-घुमााकर कह रहे हैं- देख, देख । यह छाती पर पैर रखकर सुनाना नहीं तो और क्या है ?
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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