Dec 19, 2024

शुक्र कर कि मैं मोहन यादव नहीं हूँ



शुक्र कर कि मैं मोहन यादव नहीं हूँ  

 

 

 

आज हमारे इलाके में तापमान शून्य से एक डिग्री कम हैमतलब कहींकहीं खुले में खेतों में पाला या बर्फ गिरी होगीबरामदे में बैठनासंभव था औरही उचितकमरे में सिगड़ी सुलगाकर बैठे थेचाय समाप्त करके तोताराम ने कहा- आज गीता  का एक प्रसंग सुन ।  

हमने कहा- सब सुनाने में ही लगे हुए हैंकभी मन की बात, कभी तन की बात, कभी धन की बात लेकिन सब अपने मन की, अपने अनुसारकिसी और के मन के सुख-दुख से कोई लेना-देना नहींहम किसी भय या स्वार्थ से किसी विपक्षी पार्टी से भाजपा में शामिल हुए नेता नहीं हैं कि जबरदस्ती या दिखावे के लिए मन की बात की तरह तेरी बात सुनने का नाटक करेंगे ।  

और गीता ! जब किसी के पास कोई काम की बात नहीं होती तो गीता-रामायण की बात के बहाने अपनी भड़ास निकालने लगता हैजाने किस-किस ने गीता की बात की लेकिन सब ज्ञान, भक्ति के बड़े-बड़े प्रवचनअरे, काम करो तो बकवास की जरूरत हीपड़ेगीत का संदेश है कर्मकृष्ण कहते है- कर्मण्ये वाधिकारस्ते.....कर्म रो करना ही पड़ेगा ।  सबको अपना काम पता हैं लेकिन शिक्षामंत्री ढंग की शिक्षा देने में असमर्थ है, गृहमंत्री से कानून-व्यवस्था नहीं सँभल रही है, स्वास्थ्यमंत्री से नकली दवाइयाँ बनाने वाले और गुर्दा चोरी करने वाले ही वश में नहींरहे हैं तो अपने काम की बात की बजाय कुछ भी आँय-बाँय-साँय बोलने लगते हैंहमें नहीं सुननी कोई बातअगर इस ठंडी में सिगड़ी की आँच के लालच में बैठे रहना है तो बैठा रह लेकिन चुपचाप ।   

बोला- शुक्र कर कि मैं मोहन यादव नहीं हूँ ।  

हमने कहा- और अगर मोहन यादव होता तो क्या कर लेता ? बड़े-बड़े यादव आए और चले गएस्वयं कृष्ण की यादवों की सेना महाभारत में मारी गई थी और जो बची खुची थी वह आपस में लड़कर निबट गईउत्तर प्रदेश और बिहार में भी यादवों का डंका बजा करता था लेकिन अब...  

बोला- तुझे पता होना चाहिए मोहन यादव कौन है ? 

हमने कहा- मध्यप्रदेश मे वैसे ही मुख्यमंत्री हैं जैसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान के पर्ची से निकाले गए  मुख्यमंत्री ।  

बोला- ये साक्षात मोहन अर्थात कृष्ण हैं । एक तो नाम मोहन और शक्ल से भी मोहक, दूसरे यदुवंशी । तीसरे साक्षात विष्णु मोदी जी द्वारा नामांकित तो कृष्ण होने में क्या शक है ?  

समाचार पढ़ा नहीं ? कल ही शहडोल के एक कस्बे मेंजन कल्याण पर्व’  में बोलते हुए कैसी जनवादी और कल्याणकारी बात कही है- "हमारे विरोधी कहते हैं कि हम भगवान राम और कृष्ण की बात सुनाते हैंहाँ, हम सुनाते हैंहम डंके की चोट पर और तुम्हारी छाती पर पाँव रखकर राम और कृष्ण की गाथाएँ सुनाएँगेे तुम्हें सुननी पडे़गी।" 

हमने कहा- अपना अपना तरीका हैराष्ट्रीय और सांस्कृतिक लोगों का यही तरीका होता हैये तो किसी मस्जिद के आगे लाउडस्पीकर लगाकर खुदा तक को जबर्दस्ती सुना देते हैं तो सामान्य आदमी की तो बात ही क्या ?लेकिन याद रख धर्म, शिक्षा और संस्कृति जबरदस्ती के मामले नहीं होते । ये सब प्रेम के मामले हैं । बुद्ध ने तो कहीं भी अपना धर्म छाती पर पैर रखकर नहीं फैलाया बल्कि लोगों ने अपने मन से अपनाया । उनके प्रेम से तो अंगुलीमाल भी बदल गया ।  

बोला- अंगुलीमाल में आत्मा बची हुई थीयह अहंकारियों दंडधारियों की भाषा और शैली है ।  

हमने कहा- इससे इनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन इनके कर्मों के कारण धर्म और महापुरुषों के प्रति लोगों की श्रद्धा जरूर कम हो जाएगीहो सकता है यह अश्रद्धा घृणा ूप  

बोला- ऐसा कुछ नहीं होगामहाभारतकाल में भी कृष्ण ने जबरदस्ती दुर्योधन को अपना विराट रूप दिखाया था ।  

हमने कहा- तुझे क्या पता ?  

बोला- मैंने तो नहीं देखा लेकिन दिनकर ने लिखा तो है 

यह देख गगन मुझमें लय है  

यह देख पवन मुझमें लय है  

इसका क्या मतलब है ? लगता नहीं कि कृष्ण बार-बार उसकी मुंडी अपनी तरफ घुमा-घुमााकर कह रहे हैं- देख, देख । यह छाती पर पैर रखकर सुनाना नहीं तो और क्या है ?      

 

 

  



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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