2024-12-25
बरामदा लिट फेस्ट
कल से धुंध शुरू हो गई है । बरामदे की बजाय कमरे में बैठना पड़ रहा है लेकिन स्थान परिवर्तन के बावजूद नाम वही ‘बरामदा संसद’ और काम भी वही ‘पर निंदा’ फारसी में ‘हम चुनिंदा दीगरे नेस्त’ । एक गाना भी तो था-
इंसान की हर शै का इतना ही फ़साना है
एक धुंध से आना है, एक धुंध में जाना है ॥
हमें तो लगता है हर सेवक का भी इतना ही फ़साना है कि एक दल से निकलकर दूसरे दल में जाना है । दूसरे से निकलकर तीसरे या पहले में जाना है । उसके बाद उसके परिजनों को यही धर्म निभाना है और... ।
तभी तोताराम कमरे में घुसा । हमने वाक्य पूरा किया, ... और जनता को तो इस लोकतंत्र में हर बार गू खाना है ।
तोताराम ने कहा- कभी तो वीभत्स रस से बाहर निकला कर । मैं तो सोच रहा था कि आज बड़ा दिन है, कुछ बड़ा और बेहतर सोचेंगे-करेंगे । और तू है कि आते ही ‘गू’ । अरे, रमेश विधूड़ी की तरह कर्म अच्छे नहीं कर सकता तो कम से कम कटुआ, भड़ुआ तो मत कर । मैं तो सोच रहा था कि कुछ जलेबी, हलवा, तिल के लड्डू जैसा समथिंग समथिंग मिलेगा ।
हमने कहा- गू से कहाँ तक बचेगा ? लाखों करोड़ रुपया खर्च करने के बाद पतितपावनी गंगा में लाखों लीटर गू के गटर गंगा में रोज गिरते हैं । देख लेना, कुम्भ मेले के बाद करोड़ों लोग डायरिया लेकर घर लौटेंगे । जहाँ तक तिल के लड्डू की बात है तो वह भी मिलेगा, पहले जरा ‘लिट फेस्ट’ वाला काम तो कर ले ।
बोला- लिट फेस्ट मतलब ?
हमने कहा- कोयले खत्म हो रहे हैं । कोने में पड़े उस पीपे में से निकालकर दस-पाँच कोयले अँगीठी में डाल दे।’लिट द अँगीठी’ । यही इन दिनों का ‘लिट फेस्ट’ है ।
बोला- मास्टर, तू भी अंग्रेजी की टाँग तोड़ने में मोदी जी से कम नहीं है । वे भी शुद्ध तत्सम शब्द के साथ अंग्रेजी का कोई ऐसा शब्द बाँध देते हैं कि बस, पूछो मत, राम मिलाई जोड़ी वाला मामला हो जाता है ।मुझे लगा सीकर में कोई लिटरेचर फेस्टिवल हो रहा है । लेकिन अपने सीकर को तो सनातन यात्रा, खाटू श्याम जी के दर्शन और पौष बड़ा से ही फुरसत नहीं । लिट फेस्ट कहाँ से करेगा ?वैसे लिट फेस्ट तो जयपुर का प्रसिद्ध है । और फिर अभी तो कानपुर में लिट फेस्ट होकर निबटा है ।
हमने कहा - हम उसकी बात नहीं कर रहे हैं । ऐसे लिट फेस्ट तो न हो तो ही अच्छा । अपनी किताब बेचने के लिए नितांत झूठ और घटिया बात करना कहाँ का साहित्य है ? न सही कोई बरामदा लिट फेस्ट लेकिन साहित्य, विचार, हास-परिहास, समालोचना, दर्शन, देश-दुनिया की बात क्या हम नहीं करते ?लेकिन इतना नहीं गिरते । क्या लिट फेस्ट की आड़ में भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को आडंबरी, दोगला, बहुरूपिया, आरामतलब कहना क्या प्रकारांतर से सत्ता के छुपे हुए प्रतिगामी एजेंडे का प्रचार करके कृपा प्राप्त करने का उपक्रम नहीं है ?यह प्रकारांतर से भगत सिंह की छवि खराब करकें सावरकर को बेदाग दिखाने का एजेंडा भी तो हो सकता है ।
बोला- लेकिन लेखिका वैदिक है । ज्ञान और सत्य की बात कोई वेद का ज्ञाता नहीं करेगा तो कौन करेगा ?
हमने कहा- कोई जरूरी नहीं । आजकल जेलों में बाबा लोग ज्यादा पाए जाते हैं और उन्हें चुनावों के समय पेरॉल पर छोड़ा जाना क्या सत्ता और अपराध की जुगलबंदी नहीं लगती ? आजकल सत्ता का गुप्त एजेंडा फैलाने का काम सबसे अधिक बाबा लोग ही कर रहे हैं ।
बोला- लेकिन लेखिका ने तो अमरीका में जाकर भी दस्तावेजों का अध्ययन किया है ।
हमने कहा- हमारे मित्र वेद बटुक बर्कले विश्वविद्यालय में 25 साल रहे हैं और वहीं सेनफ्रांसिस्को में गदर पार्टी का स्मारक है । उन्होंने ‘’गदर पार्टी का इतिहास’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी है । गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक रहे बाबा पृथ्वी सिंह आजाद को भी पढ़ लेतीं । लेकिन जब दिमाग में एजेंडा पहले से तय हो तो फिर कुछ जानने, पढ़ने की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती । ऐसे में कुछ ढंग का पढ़ने से तय एजेंडा दुष्प्रभावित भी हो सकता है ।
बोला- लेकिन हो सकता है भगत सिंह ने कई बार तरह तरह के वेश बदले तो बहुरूपिया कहने में क्या झूठ है ?
हमने कहा- आजकल जहाँ लोग धर्म के चक्कर में देश का सत्यानाश करने पर तुले हैं वहाँ भगतसिंह ने देश के लिए बिना किसी झिझक के सिख धर्म के केश वाली रूढ़ि को तोड़ दिया यह बहुरूपियापन नहीं, प्रगतिशीलता है । आज कई बड़े बड़े नेता दिन में दस वेश बदलते हैं, किसी भी धर्म के वोटर को धोखा देने के लिए तरह तरह के स्वाँग भर लेते हैं । ये तो बहुरूपिये से भी खतरनाक हैं । कभी यह महान लेखिका इन्हें भी तो बहरूपिये कह कर दिखाए । फिल्म देखना गुनाह है तो जब मोदी जी अभिनेत्रियों की शादियों में जाते हैं, मंत्रीमण्डल के साथ फिल्म देखते हैं तो इसे दिन में 20-20 घंटे की देश सेवा में क्यों शुमार कर लिया जाता है ।
बोला- लेकिन लेखिका ने यह भी तो कहा है कि उपवास के दौरान भगत सिंह का वजन बढ़ गया था ।
हमने कहा- वह बात राम प्रसाद बिस्मिल की है जिनका फाँसी की सजा सुनाए जाने के बाद अपने जीवन की सार्थकता का अनुभव करके वजन बढ़ गया था । ऐसा किसी भगत सिंह की श्रेणी के देशभक्त के साथ ही हो सकता है । इन सेवकों और देशभक्तों के तो भाषण पर ताली न बजे तो इन्हें चक्कर आने लगते हैं ।
वैसे जब जाति के अपमान से जगदीप धनखड़ का वजन कम नहीं हुआ, इस्तीफे की माँग और आंबेडकर मामले का अमित शाह पर कोई असर नहीं हुआ । सुना है मोदी जी नवरात्रा में नौ दिन उपवास रखते हैं लेकिन कभी थोड़ा सा सुस्त तक नहीं दिखे तो भगतसिंह के साथ भी चमत्कार हो सकता । आखिर लेखिका ने बहुत मेहनत से शोध जो की है ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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