2024-12-29
कौन मनमोहन ?
आज सुबह तोताराम नहीं आया । ऐसे तगड़ी ठंड के मौसम में बुजुर्गों का का बाहर न निकलना ही अच्छा है । पिछले दो दिन से कम-ज्यादा बारिश होती रही । आज बारिश तो नहीं है लेकिन कोहरा और हवा की ठंड है । हम भी कमरे से बाहर नहीं निकले । रजाई में घुसे रहे । बीच-बीच में उठकर अँगीठी में कोयले डालते रहे ।
तोताराम धूप निकालने के बाद कोई बारह बजे आया । आते ही शिकायत, बोला- मास्टर, मोदी जी ने अच्छा नहीं किया ।
हमें आश्चर्य हुआ । रोज ‘’मोदी-मोदी’ करने वाला आज कह रहा है- मोदी जी ने अच्छा नहीं किया । उन मोदी जी ने जो कभी कुछ भी बुरा या गलत करते ही नहीं । जो करते हैं बनारसी लहजे में ‘दिव्य’ ही करते हैं । पूछा- मोदी जी ने क्या अच्छा नहीं किया ?
बोला- मोदी जी की लापरवाही के कारण मनमोहन सिंह जी का अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर किया गया ।
हमने पूछा- कौन मनमोहन ?
बोला- मतलब तू मोदी जी से भी बड़ा हो गया जो ‘कौन राहुल‘ की तरह पूछा रहा है- ‘कौन मनमोहन’ ? अरे, वही मनमोहन सिंह जी जिनको भटके हुए गाँधीवादी अन्नाहजारे को आगे करके गालियाँ निकालकर-निकालकर केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए और मोदी जी प्रधानमंत्री । जिनके कार्यक्रमों के नाम बदल-बदलकर विकास का डंका बजवा लिया । जिन्होंने एक सौ डालर प्रति बैरल के समय भी पेट्रोल और डालर के दाम 60/-रुपए से ऊपर नहीं जाने दिए, भोजन, शिक्षा, सूचना, चिकित्सा के निर्देशक तत्वों को कानूनी दर्जा दिया । जिनके भोजन के अधिकार के कानून का रूप बदलकर मोदी जी ‘पाँच किलो अनाज’ में जनता का वोट और ईमान खरीदकर अगले 50 साल तक सत्ता में बने रहकर देश को पता नहीं किस विकास के सातवें आसमान पर ले जाना चाहते हैं ।
बोला- देख मास्टर, जो बोले उसके सड़े बेर भी बिक जाते हैं और न बोलने वाले का कोई नोटिस ही नहीं लेता । दस साल में न किसी पाँच किलो अनाज के थैले पर फ़ोटो छपवाया, न राशनकार्ड और आधार कार्ड पर । न कभी मन की बात की और न कभी रोड शो । न ही कभी विदेश में ‘मनमोहन-मनमोहन’ के हल्ले की कोई व्यवस्था की । लगा ही नहीं देश में कोई प्रधानमंत्री भी है । न नोट बंदी जैसा साहसी कदम उठाया और न ही किसी को गाली दी, न ही किसी का मज़ाक उड़ाया । ऐसे क्या कोई किसी को जानता है ?
वही नीली पगड़ी, सफेद कुर्ता पायजामा और जैकेट और गरमियों में तो वह भी नहीं । कभी किसी बड़े कार्यक्रम में विदेश गए तो वही काला सूट । कैसी एकरसता । जनता को लुभाने, छवि बनाने में बहुत जोर आता है, समय लगता है । दस साल में बोले भी तो कितना ? जितना एक दिव्य अवतारी नेता एक दिन में बोल देता है ।
बोला- जो काम करता है उसे बकवास करने और दिन में दस ड्रेसें बदलने का समय ही कहाँ मिलता है ? अनपढ़ आदमी ही चार-चार कीमती पेन रखता है और बार-बार निकाल निकालकर दिखाता और रहता है ।
हमने कहा- तोताराम, लोग कहते हैं कि मनमोहन सिंह अपने क्षेत्र में आंबेडकर जी की तरह सबसे अधिक क्वालीफाइड थे लेकिन कभी ‘एनटायर पॉलिटिकाल साइंस’ की तरह ‘एनटायर इकोनॉमिक्स’ में एम. ए. तो नहीं कर सके । दिखाई कैसे देते थे जैसे कोई रिटायर्ड प्राइमरी स्कूल का मास्टर जिसे अटल जी ने नई पेंशन स्कीम में ला पटका हो । न कभी किसी को लाल आँख और 56 इंच का सीना दिखाया । दिखाते भी कहाँ से जब था ही तेरी तरह 30 इंच का ।
बोला- मास्टर, क्रोध कमजोर और कुंठित व्यक्ति का लक्षण होता है । ओछे आदमी बड़बोले और प्रदर्शनप्रिय होते हैं । प्रकृति में सभी सकारात्मक काम बिना ढोल-ढमाके के चुपचाप और निरंतर होते रहते हैं । दुनिया आँख दिखाने से नहीं, दिल और आँख मिलाने से चलती है । वे क्या थे इसका मूल्यांकन आज हो रहा है और जैसे जैसे अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र और और गड्ढे में गिरते जाएँगे उतना ही उनका योगदान और और याद आएगा । लेकिन यह प्रश्न तो उठता ही है कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री होने के साथ साथ वे लगातार दो कार्यकाल पूरे करने वाले नेहरू जी के बाद पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने बहुत से लोकहितकारी और लोकतंत्र को मजबूत करने वाले कार्यक्रम लागू किये । उन्हें इस तरह उपेक्षित करना क्या अच्छी बात है ?
हमने कहा- उपेक्षित करना किसी का मकसद नहीं था लेकिन न तो उन्होंने कोई वसीयत छोड़ी और न ही कभी इस बारे में कोई आवेदन दिया जब कि इनके सभी पूर्ववर्तियों ने अंतिम संस्कार की सभी संबंधित औपचारिकताएं बाकायदा पूरी कर ली थीं । फिलहाल तो निगम बोध में सब कुछ करवा तो दिया । धीरे धीरे और सब कुछ भी नियमानुसार हो जाएगा । उन्होंने समय से कुछ दबाव-भार ही नहीं डाला तो कोई क्या करे । जब कोई एक अकेला सब पर भारी होता है तो सब कुछ अपने आप आगे-आगे होता चलता है ।
बोला- भार तो कुकर्म, पत्थर और मुर्दे होते हैं । सज्जन दबाव नहीं डालते, किसी पर भारी नहीं होते । वे तो खुशबू, धूप, हवा, छाया की तरह भारहीन होते हैं । उनके लिए कर्म ही सब कुछ होता है । वही उनके जीवन की सार्थकता होती है । वे कर्म के फल की भी आशा नहीं करते, जीवन के बाद के स्मारक तो बहुत दूर की बात है । उनके अनुसार तो-
बाद-ए-फ़ना फ़ज़ूल है नाम-ओ-निशाँ की फिक्र
जब हम नहीं रहे तो रहेगा मज़ार क्या ।
छोटे आदमी अपने जीते जी ही अपने स्मारक के ठेके का कमीशन वसूल कर लेते हैं । क्या कहीं राम-कृष्ण का स्मारक मिलता है ? देह तो उन्होंने भी त्यागी ही होगी । लोगों के दिलों में किसी के सत्कर्मों की स्मृति ही उसका सच्चा स्मारक होता है ।
बोला- तभी तो मोदी जी ने कभी ऐसी भौतिक बात नहीं की । यही कहते हैं- हम तो फकीर हैं, कभी भी झोला उठाकर चल देंगे । उन्हें पता है कि वे विष्णु हैं और विष्णु का स्मारक यह समस्त सृष्टि है ।
हमने कहा- कल हमने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का एक वीडियो देखा था जिसमें उन्होंने मनमोहन जी को लक्ष्मण का वंशज बताया था लेकिन कहाँ अखिल जगत के पालनकर्त्ता साक्षात विष्णु और कहाँ उनके अवतार राम के छोटे भाई लक्ष्मण के हजारों पीढ़ियों बाद के अनुमानित वंशज ।
बोला- फिर भी मोदी जी बहुत उदार, संवेदनशील, ईर्ष्या-द्वेष से परे एक संत हैं । वे जरूर कुछ न कुछ करेंगे ।
हमने कहा- कोई कुछ न करे तो भी यह संसार नश्वर है । और इसमें सबका कोई न कोई योगदान तो होता ही है ।हमने भी तो 40-40 साल स्कूल में सेवा दी है तो क्या हम भी उस स्कूल में अपने स्मारक की उम्मीद करें ?
अगर ऐसे में सभी अपने स्मारक का भ्रम पालने लगें तो इस दुनिया में स्मारक ही स्मारक हो जाएंगे तो जिंदा लोगों के लिए रहने और खेती करने तक के लिए जमीन नहीं बचेगी ।
क्या अपनी देह अस्पताल को दान कर जाने वाले ज्योति बसु का कोई योगदान नहीं था, क्या वे कीट-पतंगे थे ? नहीं, वे तत्वज्ञानी थे ।
जिनके मन में दया-धरम नहीं होते वे ही हर समय दर्पण में मुखड़ा निहारते रहते हैं-
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में
तेरे दया-धरम नहिं मन में ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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