2025-05-24
तेरी रगों में क्या बह रहा है
आज तोताराम ने आते ही हमसे प्रश्न किया- तेरी रगों में क्या बह रहा है ?
हमने कहा- यह भी कोई प्रश्न है ? हम मनुष्य हैं और सभी मनुष्यों जैसे ही दो हाथ पैर वाले, जमीन पर हगने-चलने वाले, मुँह से दो रूखी-सूखी रोटी खाने वाले हैं । जो दूसरे मनुष्यों की रगों में बहता है वही हमारी रगों में बहता होगा । जब कहीं कट जाता है तो लाल रंग का तरल पदार्थ निकलता है जिसे लहू या खून कहते हैं । पहले कुएँ से निकालकर पानी लाया करते थे लेकिन अब तो कोई सत्तर साल से जैसा भी गँदला-साफ पानी नल में आता है वही पीते हैं । हो सकता है अब रगों में वही बहता हो । फिर भी दावे से कुछ नहीं सकते ।
बोला- वह बात नहीं है लेकिन अब जब से पहलगाँव में 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या हुई है तब से जैसे मोदी जी की रगों में गरम सिंदूर बह रहा है वैसे तेरी रगों में क्या बह रहा है ?
हमने कहा- मोदी जी असामान्य हैं, अलौकिक हैं । उनकी रगों में कुछ भी बह सकता है ।पहले शायद खून ही बहता होगा लेकिन अब अवसरानुकूल, आवश्यकतानुसार सिंदूर बहने लगा है । कभी उनकी रगों में देश प्रेम बहने लग जाता है । देवताओं पर कोई नियम लागू नहीं होता । उनके कितने भी सिर, कितने भी हाथ-पैर, नेत्र हो सकते हैं, वे कभी भी कहीं भी जा सकते हैं, जल में समाधि लगा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं । कोई भी रूप धारण कर सकते हैं । रमेश विधूड़ी की रगों में मुसलमानों के प्रति घृणा बहती है, योगी जी की रगों में बुलडोजर बहता होगा तो अमित जी रगों में कानून व्यवस्था और सुशासन बहता हो ।
बोला- मैं तुझसे तेरे बारे में बात कर रहा हूँ और तू बिना बात ही दुनिया की रामायण मुझे सुना रहा है ।
हमने कहा- पहलगाँव की घटना पर हमें भी बहुत दुख हुआ था, क्रोध आया था लेकिन हम क्या कर सकते थे । हम कोई मोदी जी तो हैं नहीं जो बादलों का फायदा उठाकर राडार को धता बताकर घर में घुसकर मार दें । हमसे तो मच्छरदानी में घुसा हुआ मच्छर तक नहीं मरता ।
23 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के 22 वें अधिवेशन में भाग लेने के लिए अमेरिका जाना था लेकिन उसी दिन कोई 4-5 घंटे पहले बहुत जी घबराया और कमजोरी अनुभव हुई तो बच्चों ने रोक लिया । कहा- अकेले नहीं जाने देंगे । फिर 26 को जयपुर दिखाया तो पता चला कि ब्लोकेज कुछ बढ़ गया लेकिन आयु को देखते हुए कोई भी छोटा-बड़ा ऑपरेशन नहीं करेंगे । बस, पथ्य-परहेज से रहो ।
बोला- तो फिर लगे हाथ डाक्टर से यह भी पूछ लेता कि जैसे वीरता के कारण मोदी की रगों में सिंदूर बहने लगा वैसे ही कहीं कायरता और डर के मारे तेरा खून कॉकरोच के खून की तरह सफेद न हो गया हो या पानी ही न हो गया हो ।
हमने कहा- ये सब बकवास है । खून खून होता है । वह किसी प्रधानमंत्री या सामान्य आदमी या हिन्दू मुसलमान, संघी-लीगी के हिसाब से नहीं होता । खून ए बी सी डी आदि ग्रुपों के हिसाब से होता है । और खून केवल रगों में दौड़ने के लिए नहीं होता उसे गालिब की तरह समय पर आँख से भी टपकना चाहिए , भीम की तरह द्रौपदी के चीरहरण के समय दुःशासन की जांघ तोड़ने के लिए प्रतिज्ञ होना चाहिए, राम की तरह ऋषि-मुनियों की हड्डियों के ढेर को देखकर ‘भुज उठाय प्रण करके’ उनका विनाश भी करना चाहिए । सेना की वर्दी तो फ़ोटो खिंचवाने के लिए फ़ोटो स्टूडियो में भी मिल जाएंगी ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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