Jan 11, 2010

गुरु गुणगान


आदरणीय गुरु जी शिबू सोरेन जी,
सादर प्रणाम । हमारे एक मित्र हैं । हमें अक्सर विभिन्न विषयों पर लिखने को कहते रहते हैं । आज उन्होंने कहा- हम आप पर लिखें । हमारे मित्र को पता नहीं कि गुरु की महिमा पर लिखना कितना कठिन हैं । करघा चलाते-चलाते तत्काल कविता लिख लेने वाले कबीर जी के लिए भी इतना आसान नहीं था गुरु के गुणों का बखान करना । तभी वे लिखते हैं -
सात समद की मसि करूँ लेखनि सब बनराय ।
सब धरती कागद करूँ गुरु गुण लिख्या न जाय ॥


फिर भी उन्होंने गुरु के गुणों को लिखने का साहस किया लेकिन लिख नहीं पाए क्योंकि-
सतगुरु की महिमा अनत, अनत किया उपकार ।
लोचन अनत उघाडिया, अनत दिखावनहार ॥


सो कबीर जी के गुरु जी ने अनंत को देखने के लिए कबीर जी के अनंत लोचन उघाड़ दिए । वैसे गुरु के थप्पड़ में बड़ी ताक़त हुआ करती थी कि उनके एक थप्पड़ से ही शिष्य के अनंत लोचन उघड़ जाते थे । थप्पड़ की तेज़ी पर निर्भर है । थप्पड़ से दिमाग में एक विशेष प्रकार का प्रकाश हो जाता है जिससे शिष्य को विभिन्न अदृश्य चीजें भी दिखाई देने लग जाती हैं । अब ज़माना बदल गया है । गुरु शिष्यों से डरने लगे हैं पर डरनेवालों को सच्चे गुरु का दर्ज़ा नहीं मिल पाता । गुरु डरते नहीं, डराते हैं ।



वैसे समझ में नहीं आता कि किस गुरु का वर्णन करें क्योंकि इस देश में कई प्रकार के, बहुत से गुरु हुए हैं- गुरु वसिष्ठ से लेकर अफ़ज़ल गुरु तक । पर एक बात तय है कि गुरुओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका । गुरुओं के कर्म भी तो बहुत प्रकार के होने लगे हैं । वे बलात्कार से लेकर हत्याएँ तक करवा देते हैं । परीक्षा में नक़ल करवाने से लेकर ट्यूशन न पढ़ने वाले को फेल करने तक । वे पढ़ाई के अलावा और सभी धंधे करते हैं- प्रोपर्टी डीलिंग से लेकर अवैध दारू बेचने तक ।

भले ही शारीरिक दंड की कितनी ही आलोचना की जाती हो पर आज भी यह सत्य है कि गुरु की लात खाने वाले ही इस लोकतंत्र में सफल होते हैं । तभी कहा गया है कि 'गुरु की चोट, विद्या की पोट ।' कबीर जी ने भी कहा है-
गुरु कुम्हार शिश कुम्भ है गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट ।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट ॥


अब यह बात और है कि कभी-कभी नशे में गुरु जी का हाथ ज़रा ज्यादा जोर से पड़ जाता है तो शिष्य का अंतकाल भी हो जाता है , जैसे कि शशिनाथ झा का । शिष्य का कर्तव्य है कि वह गुरु की कोई गलती न देखे । गुरु में जो कुछ अच्छी बातें हैं उन्हें ग्रहण कर ले और बाकी छोड़ दे । अगर शिष्य ऐसा नहीं करता तो उसे दंड तो मिलना ही है, चाहे गुरु दे या भगवान । शिष्य को उतना ही खाना-पहनना चाहिए जो गुरु दे, उससे अधिक की इच्छा नहीं करनी चाहिए । भले ही गुरु को एक करोड़ ही कहीं से मिले हों उसमें शिष्य का कोई कानूनी हिस्सा नहीं होता । यदि गुरु उसे दे दे तो यह गुरु की कृपा है । कृपा विनय से प्राप्त की जाती है दादागिरी से नहीं । शशिनाथ झा ने शिष्य धर्म का पालन नहीं किया तो गलती उसी की है ।

आपकी जाति का हमें कोई पता नहीं है । हो भी कैसे आप तो भारत के आदि निवासी हैं ।वैसे कहा भी गया है कि 'जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।' सो जाति का क्या है । हम तो आपके गुणों के मुरीद हैं । अब आप कर्म से राजा हैं । राजा में रजोगुण अवश्य होना चाहिए । आज के राजाओं को देखिये, पड़ोसी पीटते रहते हैं और ये उसकी समीक्षा करते रहते हैं । ऐसे राज थोड़े ही चलता है । राजा को तो ऐसा होना चाहिए कि उसकी तरफ देखने तक का साहस किसी को न हो सके । आज से पैंतीस बरस पहले किन्हीं दो आदमियों ने आपकी बकरी चुरा ली या काट कर खा गए । बात बकरी की नहीं है । बात तो अपराध और दंड की है, राजा के रजोगुण की है । आपने उन्हें तत्काल दंड दे दिया । उस रजोगुण के कारण ही फिर किसी ने आपकी बकरी की तरफ आँख उठा कर देखने का साहस नहीं किया । काश, ऐसा रजोगुण भारत के शासक दिखाते तो आतंकवाद की नौबत ही नहीं आती । हमारे अनुसार तो आपको भारत का प्रधान मंत्री होना चाहिए था पर पता नहीं, आपने उस पद को क्यों स्वीकार नहीं किया वरना चाहते तो जब नरसिंह राव की सरकार बचाई तभी कह सकते थे 'प्रधान मंत्री बनाओ तो समर्थन दूँ ।' पर नहीं आप इतने कमीने नहीं हैं । आपको तो आपने राज्य के लोगों का विकास करना है तभी तो एक छोटे से राज्य झारखंड का मुख्य मंत्री बनना ही पसंद किया ।

परशुराम ने अपने पिता को मारने वाले राजा का वध तो किया ही, उसके बाद भी इक्कीस बार पृथ्वी को छत्री-विहीन किया । अब बताइये, कितनी बार सजा देंगे एक अपराध की और वह भी उनको जिन्होंने वह अपराध किया ही नहीं । पर परशुराम को कोई कुछ भी नहीं कहता बल्कि ब्राह्मण तो उन्हें अपना आदर्श मानते हैं । अब सोचिये एक आदमी को इतने बड़े अपराध की भी कोई सजा नहीं और आपने अपनी बकरी को मारने वालों को सज़ा दे दी तो आसमान टूट पड़ा । कहाँ, मुख्य मंत्री बनते ही पैंतीस बरस पुराना मामला उठा कर लाये हैं । वास्तव में आदिवासियों के साथ इस देश में बड़ा अन्याय है ।

अब चाहे कोई कुछ भी कहे पर रास्ते में, रात के समय, अकेली खड़ी सुन्दरी को देख कर किसका मन चंचल नहीं हो जायेगा । जिसने हिम्मत करके पूछ लिया कि 'आती क्या खंडाला', वह ले गया अपनी मोटर साइकिल पर बैठा कर । अब चुप रहने वाले को पछतावा हो रहा है कि उसने क्यों प्रस्ताव नहीं किया । अब सुन्दरी कब तक किसी का इंतजार करे । उसकी जवानी भी तो चार दिन की ही है, बेकार खोने से क्या फायदा ।

७-१-१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

3 comments:

  1. वाह कबीरा, देख तेरे देश में आज भांति-भांति के गुरू

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  2. गुरु जी की महिमा अपरंमपार!!

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  3. हांय इहां तो गुरू नहीं गुरू घंटालों का वर्णन किया गया है , जय हो, जय जय हो
    अजय कुमार झा

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