Jan 16, 2010

चमत्कार को नमस्कार

आदरणीय तेलगी जी,
नमस्कार । यूँ तो आप उम्र में हमारे बेटे के बराबर हैं पर इससे क्या होता है । आदर उम्र का नहीं महानता का होता है । शंकराचार्य ने सोलह साल की उम्र में सन्यास ले लिया और सारे भारत की यात्रा पर निकाल पड़े । बत्तीस साल की उम्र में चार धाम स्थापित करके, वैदिक धर्म की ध्वजा फहरा कर वापस लौट भी आए और इस धराधाम से कूच भी कर गए । और लोग हैं कि सौ बरस की ज़िंदगी भी यूँ ही खाट पर पड़े-पड़े, खा-खाकर बिता देते हैं । सो भैया, बड़े काम करने से बड़ी होती है ज़िंदगी, न कि ज्यादा दिन तक धरती का भार बने रहने से ।

आपका जन्म १९६१ में हुआ । तब तक हम टीचर बन गए थे । बचपन में ही आपके पिता की मृत्यु हो गई । आपने सर्वोदय विद्यालय इंग्लिश मीडियम में शिक्षा पाई । आप अपनी फीस चुकाने के लिए रेलगाड़ियों में फल बेचते थे । बेलगाँव से बी.काम. किया । इसके बाद स्टांप बेचने लगे । इसके बाद किसी विशेषज्ञ से अपने प्रयत्नों से नकली स्टांप बनाने का ज्ञान प्राप्त किया और फिर अपने स्वतंत्र व्यवसाय में लग गए । स्टांप बेचने के काम में आपने ३०० लोगों को रोज़गार दिया । और विभिन्न पुरस्कारों और भेंटों से बहुत से पुलिस अधिकारियों और नेताओं को आभारी बनाया, उनका जीवन स्तर ऊँचा उठाया । इस प्रकार से आपका समाज सेवा और रोजगार सृजन में महत्त्व पूर्ण योगदान रहा है । हमने कहा न कि हम ऐसे-वैसे लोगों पर नहीं लिखते । आपकी प्रतिभा और सेवा भावना ने ही हमें प्रभावित किया है ।

इस समय आप जेल में हैं । आराम फ़रमा रहे हैं । दर्शन का अध्ययन कर रहे हैं और आत्मकथा लिख रहे हैं । कई काम एक साथ कर रहे हैं । इस छोटी सी उम्र में ही कितना कुछ कर लिया । यही तो पहचान है महान आत्माओं की । आपकी इस कला का सम्मान न तो ललित कला अकादमी ने किया, न किसी कला के संरक्षकों ने और न ही सरकार ने । अमरीका जैसे विज्ञान में उन्नत देश में भी आज तक ऐसा कोई कलाकार नहीं हुआ जिसने कोई इतना सम्पूर्ण रूप से असली लगने वाला स्टाम्प पेपर या नोट बनाया हो । अरे, अणुबम या युद्धक विमान बनाना भी कोई कला है । ये तो विनाश के हथियार हैं जब कि आपका काम कला है और उसके ज़रिये लोगों को काम देना है । क्या किया जाये, आजकल कला के कद्रदान कहाँ रहे हैं ।

आपका सरनेम तेलगी है- तेलगी का अर्थ कहीं न कहीं तेल से ज़रूर जुड़ता होगा । पहले लोग तिल, मूँगफली, सरसों, नारियल आदि का तेल निकाला करते थे । इसके बाद विज्ञान की उन्नति हुई तो लोग मिट्टी से तेल निकालने लगे । व्यापार का विकास हुआ तो व्यापारियों ने राजा से मिलकर जनता का तेल निकालना शुरु कर दिया । आजकल सारा खेल कागजों का हो गया । लोग कागजों से तेल ही क्या जाने क्या-क्या चीजें निकालने लगे । लोग कागज़ों में ही सड़कें बना देते हैं, कागज़ों में ही खरीद कर लेते हैं, कागज़ों में ही भुगतान हो जाता है, कागज़ों में ही मिड डे मील पक और खा लिया जाता है, कागज़ों में ही सच को झूठ और झूठ को सच कर दिया जाता है तो आपने कागज़ों से प्रतिदिन २०२ करोड़ रुपये कमा लिए तो क्या गुनाह कर दिया । हंगामा है क्यूँ बरपा .... ।

आजकल आप जेल में हैं । दार्शनिक दृष्टि से देखा जाये तो यह दुनिया ही जेल है । आत्मा शरीर रूपी जेल में बंद है । प्रसिद्ध नेता और समाज सेवी लालू प्रसाद जी यादव के अनुसार तो जेल उनका मंदिर है, गुरुद्वारा है । उनके अनुसार जेल जाये बिना कोई सच्चा नेता नहीं बनता । इसके लिए वे गाँधी जी का उदहारण देते हैं । इससे गाँधी जी की आत्मा को कष्ट होता है या प्रसन्नता यह तो वे जाने । आपको जेल में जो खाना दिया जा रहा है उसकी सूची इस प्रकार है-
७ बजे दूध और अंडा
९ बजे ब्रेड, दूध, इडली,रोटी
११.३० बजे दूध, बिस्किट
२.३० बजे चपाती, साम्भर, चावल, दही
५.३० बजे ब्रेड, दूध
९.३० बजे चपाती, साम्भर, दही, चावल
इसके अलावा संतरा, मौसमी भी दिए जाते हैं । और सप्ताह में एक बार चिकन और फिश ।

यह तो साला फाइव स्टार होटल का खाना हो गया और वह भी सात साल तक फ्री में । हमें तो इतना खाना दिया जाये तो सच कहते हैं करीम भाई, हमें तो दस्त लगने लग जाएँ । हम तो दो रोटी सुबह और दो रोटी शाम को खाते हैं । किसके साथ खाते हैं यह हम अपनी इज्ज़त का ख्याल करके गुप्त रखना चाहते हैं । दाल और सब्जी के भाव आप जानते ही होंगे । आपको शुगर की तक़लीफ़ है है इसलिए सादा खाना ही खाते हैं वरना तो कितना खाते होंगें राम जाने । खाना भी चाहिए अगर भगवान देता है तो । पैसा खाने के काम नहीं आएगा तो फिर किस काम आएगा । लोग मूर्ख हैं जो कहते हैं कि 'धनं दानाय' । आप को ये सब खरीदने नहीं पड़ते पर अख़बार में तो पढ़ते ही होंगे । हमने तो अखबार भी घर पर मँगाना बंद कर दिया है । पास की चाय की दुकान पर जाकर पढ़ आते हैं ।

हमारे स्तर के अनुसार तो आपका जेल का खाना बहुत बढ़िया है । हमने तो जीवन भर स्कूल में बच्चों को संतुलित भोजन के बारे में पढ़ाया तो ज़रूर पर सच कहते हैं संतुलित भोजन कभी नहीं कर पाए । बस, किसी तरह कंजूसी करके बजट को ही संतुलित करते रहे । आप इसके बावजूद घर का खाना खाना चाहते हैं । इसका मतलब है कि आपके घर पर बहुत ही अच्छा खाना बनता होगा । हम तो उस की कल्पना ही नहीं कर सकते । हमें तो घर के खाने के बारे में एक किस्सा ही पता है । आप भी सुन लीजिये और घर के खाने का कल्पना में ही मज़ा लीजिये । एक व्यक्ति को फाँसी की सज़ा हुई । जज ने उसे अपनी अंतिम इच्छा पूछी । उसने कहा- मैं अपनी बीवी के हाथ का बना खाना खाना चाहता हूँ । जज को भी बड़ी ईर्ष्या हुई कि इसकी पत्नी कितना बढ़िया खाना बनाती होगी । कारण पूछने पर कैदी ने बताया कि अपनी पत्नी के हाथ का खाना सामने आते ही मुझे लगता है कि इस जीवन से तो मर जाना ही अच्छा है । सो खाना सामने आते ही और मेरी मरने की इच्छा होते ही आप मुझे फाँसी दे दीजियेगा ।

लोग पता नहीं क्यूँ इंदिरा नूई को सिर आँखों पर बिठाए फिरते हैं । अरे, फ़ोर्ब्स की सूची में नाम क्या आ गया जैसे किसी ने आकाश के सीढ़ी लगा दी हो । ठीक है, उसे साल के पचास करोड़ रुपये मिलते हैं पर है तो किसी की नौकर ही न । और फिर पचास करोड़ कोई ज्यादा होते हैं क्या ? आप तो महीने के २०२ करोड़ कमाते थे, वह भी अपने धंधे से । इंदिरा नूई को ओबामा द्वारा मनमोहन सिंह को दिए गए भोज में मनमोहन सिंह जी वाली टेबिल पर खाना खाने का अवसर मिला । आपकी प्रतिभा को किसी ने नहीं स्वीकार । पर हम इतने संकीर्ण हृदय के नहीं हैं ।

आप १२-११-२००९ को हमारे शेखावाटी के चूरू शहर में आये । धन्न भाग, यह मरु धरा धन्य हो गई । वैसे सेठ यहाँ भी हुए हैं पर एक महीने में २०२ करोड़ रुपये कमाने वाला तो एक भी नहीं हुआ । हमारे चूरू का भी आपका एक एजेंट था । इसलिए आपको चूरू लाया गया, जहाँ आपको कई देर गाड़ी में ही रुकना पड़ा । पता नहीं, भले आदमियों ने आपका कैसा स्वागत सत्कार किया होगा । चटनी रोटी खाने वाले संतुलित भोजन के बारे में क्या जानें । क्या बताएँ हम वहाँ थे नहीं वरना आपको किसी प्रकार की असुविधा नहीं होने देते । वैसे हमारा राज्य मेहमानों का स्वागत करने में कम नहीं है । हमारा तो नारा ही है - पधारो म्हारे देस ।

आप जेल में आत्मकथा लिख रहे हैं । लिखना भी चाहिए । सभी बड़े लोगों ने जेल में ही महान ग्रन्थ लिखे हैं ।आत्मकथाएँ ही सबसे ज्यादा पढ़ी जाती हैं क्योंकि वे ही लोगों को सबसे ज्यादा प्रेरणा देती हैं । आपकी आत्मकथा भी अवश्य ही लोगों को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देगी । जेल में लिखी गई आत्मकथाएँ सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं । घर पर रह कर चाहे गरीब हो या अमीर, समय कहाँ मिलता है । नून, तेल, लकड़ी में ही समय निकल जाता है । तभी अकादमियाँ लेखकों और कलाकारों को फेलोशिप देती हैं । सो यह जेल नहीं, आपको कुछ श्रेष्ठ लिखने के लिए सरकार द्वारा दी गई फेलोशिप है । हम भी छोटे-मोटे लेखक हैं । लिखना भी चाहते है पर क्या बताएँ महँगाई से बचने के उपाय सोचते-सोचते ही दिन-रात निकल जाते हैं ।

आपकी आत्मकथा अवश्य ही एक श्रेष्ठ आत्मकथा होगी क्योंकि व्यक्ति का महान जीवन दर्शन ही उससे महान रचना करवाता है । आपने कहा है कि जीवन पानी का बुलबुला है । यही बात कबीर जी ने भी कही है । वे लिखते हैं-
पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात ।
देखत ही छिप जायगा ज्यों तारा परभात ॥


कबीर जी ने जीवन भर करघा चलाया और आपने भी कभी फल बेचे, कभी स्टाम्प । पर खाई अपनी मेहनत की कमाई । किसी पर बोझ नहीं बने । किसी से रिश्वत नहीं ली । भले, चार आदमियों को रिश्वत देकर उपकृत ही किया होगा । कबीर भी मरते समय कुछ नहीं छोड़ कर गए । आप का कमाया-कमूया नेताओं, अधिकारियों और पुलिस वालों ने खा लिया होगा । कुछ इन्कमटेक्स वाले चाट गए होंगे । जो पैसा लोगों के नाम से बेनामी सौदों में लगाया होगा उसके भी नामधारी पैदा हो जायेंगे । कहते हैं,समुद्र सूखता है तो भी घुटनों-घुटनों तक पानी रहता ही है । सो कुछ भी हो, छोटे-मोटे अरबपति तो आप जेल से निकलने के बाद भी रहेंगे ही ।

आप घर का खाना खाना चाहते हैं । हम आपको इसके लिए एक उपाय बताते हैं । आप जेल वालों को कह दीजिये कि इस सारे घोटाले के पीछे यह मास्टर है । हम अपना अपराध स्वीकार भी कर लेंगे । पर शर्त यह है कि आप हमारी पेंशन के दस हज़ार रुपये हर महीने ईमानदारी से हमारे घर पहुँचाते रहिएगा । दूसरी शर्त यह है कि हमें जेल में वही खाना मिले जो आपको मिला करता था । फर्क बस इतना हो कि हमें मछली और चिकन की जगह खीर दी जाये । और फिर देखिये कि हम किस प्रकार डेढ़ सौ बरस जीकर, पेंशन लेते हुए वित्त मंत्री की छाती पर मूँग दलते हैं ।

एक तरीका और हो सकता है कि आप हमारा एक मुखौटा बनवा लीजिये और हम आपका एक मुखौटा बनवा लेते हैं । हम जेल में आप से मिलने आयेंगे और फिर हम दोनों अपने-अपने मुखौटे बदल लेंगे । किसी को पता भी नहीं चलेगा और दोनों का काम भी बन जायेगा । फर्क़ बस इतना ही होगा कि हमारे मरने पर तेलगी के मरने की खबर छपेगी और तेलगी के मरने पर हमारे मरने की खबर छपेगी । हाँ , एक परेशानी अवश्य हो जायेगी कि आपको मरने के बाद ईश्वर के पास ले जाया जायेगा और हमें मरने के बाद अल्लाह के पास ले जाया जायेगा । गाँधी जी तो ईश्वर अल्लाह तेरे नाम' गाया करते थे । ईश्वर अल्लाह में भी आपस में कोई झगड़ा नहीं है पर कुछ कट्टर पंथी मुल्लाओं को इस पर ऐतराज़ है । वे कहते हैं कि गोड और अल्लाह साथ-साथ नहीं रह सकते हैं । मलेशिया की सरकार ने तो गोड और अल्लाह को एक साथ रखने की इज़ाज़त दे दी है पर अभी वहाँ के मुल्लाओं ने परमीशन नहीं दी है ।

हमें तो ईश्वर-अल्लाह में कोई भेद नज़र नहीं आता । हम तो जन्नत में भी निर्वाह कर लेंगे पर आप अपनी सँभालना ।

२२ दिसंबर २००९

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Jhootha Sach

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