देखा, तोताराम के हाथ में कुछ भी नहीं है । टोपा लगाये, चद्दर ओढ़े यूँ ही खड़ा है । हमने पूछा- क्या दान करने जा रहा है ? यह टोपा और चद्दर ? बोला- नहीं, इन्हें कैसे दान कर सकता हूँ । इनके बिना सर्दी में काम नहीं चल सकता । मैं तो ज्योति दा की तरह अपना दिमाग शोध के लिए अस्पताल को दान करने जा रहा हूँ ।
ऐसी गंभीर बात पर हँसना नहीं चाहिए पर कोशिश करने पर भी हम अपनी हँसी नहीं रोक पाए । हमने कहा- 'तोताराम, तुझे याद है जब एक बार तू अस्पताल में रक्त-दान करने के लिए गया था और डाक्टरों ने बहुत कोशिश की थी फिर भी वे खून नहीं निकाल पाए थे । उन्होंने तुम्हें यह कहकर भगा दिया था कि मास्टर जी, खून है ही नहीं तो हम निकालेंगे कहाँ से । कुछ खाया कीजिए । अभी तो आप घर जाइए । आपकी सेवा भावना के लिए धन्यवाद' । अब भी वही बात होने वाली है । वे बेकार में ही खोपड़ी खोलेंगे और बंद करेंगे । निकलने वाला तो कुछ है नहीं ।तोताराम को बड़ा गुस्सा आया, बोला- तो क्या बिना दिमाग के यूँ ही चालीस साल बच्चों को पढ़ा दिया? हमने कहा- पढ़ाना कौन बड़ी बात है । तू नहीं पढ़ाता तो भी जिसे पास होना होता वह चार किताबें रटकर पास हो ही जाता । जब बिना दिमाग के लोग देश चला सकते हैं तो पचास बच्चों को पढ़ाना कौन सी बड़ी बात है ? जो चीज अपने पास है ही नहीं, उसके लिए दुःख करने की क्या बात है । और उसके दान करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता । चल, अंदर चलते हैं, चाय पीते हैं ।
मास्टरी करने के एक उदाहरण से ही तो बात नहीं बनती ना । याद कर बचपन में चाचाजी कहा करते थे कि तेरी खोपड़ी में गोबर भरा हुआ है, गुरुजी कहा करते थे कि तेरी खोपड़ी में भूसा भरा हुआ है और तेरी पत्नी कहा करती है कि इनकी खोपड़ी में तो कुछ है ही नहीं । अब तीन जिम्मेदार लोग झूठ तो नहीं हो सकते ? जो बात है उसे स्वीकार कर लेना चाहिए । झूठी ज़िद करने से क्या फ़ायदा ।
अब तो बात तोताराम की बर्दाश्त से बाहर हो गई, बोला- तो फिर ज्योति दा के दिमाग में ही ऐसी क्या खास बात है । मुझे तो उनका दिमाग एक साधारण दिमाग से भी कमज़ोर लगता है । तेईस साल मुख्य मंत्री रहे पर क्या तीर मार लिया । अरे, मात्र एक साल मुख्य मंत्री रहने वाले तक ने चार हज़ार करोड़ कमा कर स्विस बैंक में जमा करवा दिए । लोगों ने भूसे में से नौ सौ करोड़ निकाल लिए । और जब गद्दी छोड़ने की नौबत आई तो अपनी बीवी को दे गए और ये महाराज जब संन्यास लेने लगे तो गद्दी सौंपी बुद्ध देव को । क्यों भाई, कोई कच्चा बच्चा नहीं था क्या घर में । जब प्रधान मंत्री बनने का चांस आया तो पार्टी के अनुशासित सिपाही बन गए और बाद में कहते हैं यह एक ब्लंडर थी । अब क्या होता है बाद में ब्लंडर-व्लंदर करने से । अब सुन रहे हैं कि उन्होंने 'भारत रत्न' के बारे में भी कोई खास रुचि नहीं दिखाई । और लोग कहते हैं कि नब्बे साल से ज़्यादा की उम्र में भी उनका दिमाग सजग था । ऐसे ही होते हैं क्या सजग दिमाग ?
अरे, अगर अध्ययन ही करना है तो दिमागों की कमी है क्या ? मधु कौडा हैं (४ हजार करोड़), ए राजा हैं (६० हजार करोड़), लालू जी हैं, गुरु जी शिबू जी हैं । और अगर बुज़ुर्ग दिमागों का ही अध्ययन करने का शौक है तो पचासी साल से ऊपर के करुणानिधि जी हैं जो अभी तक भी संन्यास के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं और घर के सभी सदस्यों को केन्द्र और राज्य में कहीं न कहीं मंत्री बनवा दिया है । और भी हैं जो छियासी साल की उम्र में भी युवकों से ज्यादा टनाटन हैं ।
हमने कहा- तोताराम, यह तो हम दावे से नहीं कह सकते कि तुम्हारा दिमाग ज्योति दा की तरह शोध करने लायक है या नहीं, पर तुम्हारी खोपड़ी में भी कुछ न कुछ है ज़रूर । बिल्कुल खाली तो नहीं है । मगर अभी क्या ज़ल्दी है । यह काम तो मरने बाद भी किया जा सकता है । अभी तो छठे वेतन आयोग के पेंशन फिक्सेशन का साठ प्रतिशत आना बाकी है । ऐसी क्या ज़ल्दी है ।
तोताराम मुस्कराया- तो इसी बात पर चाय ही नहीं, साथ में कुछ खाने के लिए मँगवा भाभी से ।
२०-१-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach
वाक क्या कमाल का कटाक्ष किया है तोता राम के माध्यम से। धन्यवाद
ReplyDelete