आज कई बरसों बाद इतनी ठण्ड पड़ रही थी । कोई दो डिग्री तापमान था । न तो बिजली थी और न ही सूर्य भगवान उदय हुए थे । ठण्ड से बचने का पारंपरिक उपाय अपनाने लगे । झाड़ू से गली के पालीथीन और गुटकों के रेपर इकट्ठे किये और उनमें माचिस लगा दी । लपट उठी और सर्दी तत्काल कम हो गई । बड़ा सुकून मिला । हमें लगा, अंग्रेजी में शायद 'रेग्स टु रिचेज' इसी को कहते हैं । लोग बेकार ही प्लास्टिक संस्कृति की आलोचना करते हैं ।

तोताराम ने कहा- राजा, जनता के माता-पिता के सामान होता है । उसका कोई भी कार्य भले ही हमें शुरु में बुरा लगे पर अंततः जनता की भलाई के लिए ही होता है । रामचरित मानस में जब नारद जी विश्वमोहिनी पर आसक्त हो गए थे और उससे विवाह करना चाहते थे तो भगवान ने उन्हें वानर का रूप प्रदान कर दिया । विश्वमोहिनी से विवाह तो दूर, उलटे उनका उपहास और हुआ । कुद्ध होकर नारद जी ने भगवान को श्राप दिया कि आपने मुझे वानर का रूप प्रदान करके मेरा मजाक उड़ाया है तो आप भी पत्नी का वियोग सहेंगे और वानर ही आपकी सहायता करेंगे ।
जब रामावतार में सीता का हरण हुआ और भगवान राम सीता की खोज में व्याकुल होकर भटक रहे थे तो नारद उनके पास गए और पूछा- हे भगवान, जब मैं विश्वमोहिनी से विवाह करना चाहता था तो आपने मुझे विवाह क्यों नहीं करने दिया ? भगवान राम ने उत्तर दिया- हे नारद, मुझे अपने भक्त उसी प्रकार प्रिय होते हैं जैसे कि लोकतंत्र में राजा को उसकी प्रजा या माता को उसका पुत्र । जब बालक अग्नि को छूने के लिए दौड़ता है तो वह उसको ज़बरन रोकती है । यदि उसे कोई फोड़ा हो जाता है तो वह उसके भले के लिए उस फोड़े पर चीरा लगवा देती है । इसी प्रकार मैंने तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हें विवाह नहीं करने दिया ।
इसी प्रकार हे मास्टर, सरकार भी हमारी माता के सामान है जो हमारे भले के लिए ही चीनी और अन्य खाद्य पदार्थ महँगे करवा रही है जिससे हम शुगर और हृदय रोगों से बचे रहें । जब आज से दस बीस बरस बाद देखेगा कि तुझे इस प्रकार की कोई बीमारी नहीं हुई है तब तुझे सरकार के जनता-प्रेम का पता चलेगा । यह सरकार द्वारा की गई हमारी केयर का ही परिणाम है कि हम मोटापे की बीमारी से मुक्त हैं वरना अमरीका में तो चालीस प्रतिशत लोग मोटापे की बीमारी से ग्रसित हैं ।
पुराने लोग कहा करते थे कि नेकी बदी में से निकलती है । पहले हम समझा करते थे कि क्या फालतू बात है । भला बदी में से नेकी कैसे निकल सकती है । आज उस कहावत का मर्म समझ में आया । और हमने तोताराम के थ्रू सरकार को धन्यवाद दिया ।
१५-१-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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