Feb 17, 2010

इंग्लिश की माया


मायावती जी एंड चन्द्रभान जी,
नमस्कार । १७-१-२-१० को अखबार में समाचार पढ़ा । दिल गार्डन-गार्डन हो गया । हम तो एकदम लम्बलेट हो गए मतलब कि फ्लेट हो गये । अब तक तो हम आपके ही मुरीद थे पर अब तो चन्द्रभान जी के भी फैन हो गए । चाहते तो हम उन्हें इंग्लिश में पत्र लिख सकते थे पर हम जानते है कि हमारी इंग्लिश कितनी कठिन होती है । हमारी इंग्लिश से डरकर ही हमें और हमारे दो साथियों को हमारे गुरुजनों ने इतना निरुत्साहित किया कि हमने हिन्दी को अपना लिया और जीवन भर पंडित जी कहलाते रहे । न तो ट्यूशन ही मिली और न ही रुतबा । हम अपनी हिन्दी भक्ति को देश भक्ति का कोई महान काम समझते रहे । हिन्दी में एम.ए. किया और मेरिट में भी आ गए । पिताजी को जब यह समाचार सुनाया तो वे बोले- अंग्रेजी में एम.ए. करते तो कोई बात थी । हमें बड़ा गुस्सा आया । पर आज समझते हैं कि वे कितना सही कहते थे ।

तो हम अपने तीन साथियों की अंग्रेजी से गुरुजनों के जलने की बात बताते हैं । हमारे एक मित्र के पास हिंदी से अंग्रेजी की डिक्शनरी थी वह उसमें से अंग्रेजी के नए-नए शब्द छाँट-छाँट कर मास्टर जी से पूछा करता था । एक दिन उसने क्लास में अपना अंग्रेजी ज्ञान बघारा, बोला- सर जी आज तो बड़ी सिफलिस पड़ रही है । मास्टर जी ने सिफलिस का मतलब तो स्पष्ट नहीं किया पर उसे बेवकूफ कहकर ज़रूर बैठा दिया । हमारे एक दूसरे मित्र ने स्पेलिंग याद करने का नया तरीका निकला । वह वाटर को 'वाटेर' बोला । मास्टर जी ने टोका तो बोला- पर मास्टर जी, इससे स्पेलिंग अच्छी तरह से याद हो जाती है । मास्टर जी ने कहा- लोग तेरी बात पहले सुनेंगे या स्पेलिंग देखेंगे ? उसका जोश भी ठंडा पड़ गया ।

हमारे साथ उन दोनों से बड़ा हादसा हुआ । हम अपनी ननिहाल गए हुए थे । हमारी ननिहाल हरियाणा में हैं । जहाँ हम से भी ज़्यादा अंग्रेजी जानने वाले पड़े हैं । वहाँ किसी के यहाँ तार आया । कोई पढ़ने वाला नहीं मिला तो हम से पूछ लिया । तार पढ़ सकते हो ? हम आठवीं क्लास में पढ़ते थे और हमें तीन दिन की छुट्टी के लिए एप्लीकेशन पूरी तरह याद थी सो हम अपने अंग्रेजी ज्ञान पर शंका कैसे बर्दाश्त कर सकते थे । सो हमने चेलेंज स्वीकार कर लिया और तार पढ़ने लगे । तार में लिखा था- धापली नोट फीलिंग वेल । कम सून । हमने फटाफट पढ़ दिया- धापली नोट मतलब धापली नहीं है मतलब मर गई । और फीलिंग वेल मतलब कि कुएँ में गिर गई । समाचार सुनते ही सब रोने लगे । तभी हमारे मामा जी आगये । उन्होंने तार पढ़ कर पूछा- किस बेवकूफ़ ने पढ़ा है ? हमारा नाम आना ही था । मामा जी ने हमें दो थप्पड़ लगा दिए और हिदायत दी कि जब तक ठीक से अंग्रेजी नहीं आये तब तक तार-वार मत पढ़ना । तो इस प्रकार हमारे अंग्रेजी सीखने के उत्साह का जनाजा निकल गया ।

आपका समाचार पढ़ने के बाद हमने सोचा है कि अपना शेष जीवन अब अंग्रेजी के लिए ही समर्पित कर देंगे । अब हम अंग्रेजी में ही खायेंगे, पियेंगे, रोयेंगे, जीयेंगे, मरेंगे । पत्नी को भी कह दिया है कि अब आगे से सब्जी भी अंग्रेजी में ही काटा करना, अंग्रेजी में ही आटा गूँधना, अंग्रेजी में ही रोटी बेलना । अंग्रेजी में ही गाय का गोबर थापा कर और यहाँ तक कि पोते-पोतियों को शू-शू भी अंग्रेजी में ही करवाया करना । अब देखो वह कितना हमारी आज्ञा का पालन करती है ?

अंग्रेजी का महत्व किसी से छुपा नहीं है- अगर अंग्रेज अंग्रेजी नहीं जानते तो क्या आधी दुनिया पर राज कर सकते थे । जहाँ-जहाँ अंग्रेजी बोली जाती है वहाँ न तो बेकारी है, न गरीबी और न ही अपराध हैं । अंग्रेजी के कारण ही उनके राज में सुख शांति थी । ब्लडी, बास्टर्ड, गेट आउट सुन कर अच्छे-अच्छों की हवा खिसक जाती थी । उन्होंने अग्रेजी की दो किताबें बनवाई । एक तो वह जिसमें- ब्लडी, बास्टर्ड, गेट आउट, फ़ूल जैसे शब्द थे, दूसरी किताब में सर, यस, थैंक यू, वेरी गुड जैसे शब्द थे । पहली किताब वे उन अंग्रेजों को पढ़ाते थे जिन्हें यहाँ शासन करने के लिए भेजते थे और दूसरी किताब हमें पढ़ाते थे । हम उन्हें 'सर' कहते रहे और वे हमें 'बास्टर्ड' कहते रहे और मज़े से राज चलता रहा । अब हम सब उनकी किताब पढ़ेंगे और एक दूसरे पर रौब जमायेंगे ।

चन्द्रभान प्रसाद जी ने अंग्रेजी का मंदिर बनाने की बात कही है । बहुत खूब । अब हर गाँव में मंदिर होगा, हर मंदिर में पुजारी होगा, प्रसाद की दुकानें होंगी, माला, धूप-दीप बिकेंगे, मंदिरों की रक्षा के लिए पुलिस होगी । सोचिये इस एक बात से ही कितने रोज़गार एक ही झटके में ही सृजित हो जायेंगे । यह तो अंग्रेजी की शुरुआत मात्र का चमत्कार है । जब सब अंग्रेजी पढ़ जायेंगे तो क्या होगा ? कल्पना मात्र से ही गर्दन मुर्गे की तरह फूल जाती है । जब सब अंग्रेजी पढ़ जायेंगे तो हमारे उन पापों का भी प्रक्षालन हो जायेगा जो हमने अंग्रेजी का विरोध करने और हिन्दी का प्रचार करने में किये हैं ।

किसी चीज का महत्व तभी होता है जब वह हमारे पास हो और दूसरों के पास न हो । इसलिए यह भी होना चाहिए कि अब तक जिनको अंग्रेजी से वंचित रखा गया है उन्हें अंग्रेजी पढ़ायी जाये और जो अब तक अंग्रेजी पढ़ते रहे हैं उनके बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये ।

अंग्रेजी का मंदिर बनाने के लिए वास्तुविद इंग्लैंड से ही बुलाया जाये, वरना यहाँ के मनुवादी पंडित कुछ ऐसा नक्शा बना देंगे कि बच्चे अंग्रेजी तो पढ़ नहीं पायेंगे और हिन्दी भी भूल जायेंगे सो अलग । उस मंदिर में जो मूर्ति लगे उसके लिए इंग्लैंड की सरकार से पूछा जाये कि वह मूर्ति किस प्रकार की बनेगी । उस मूर्ति के दाईं ओर मैकाले ओर बाईं और चद्रभानजी की मूर्ति लगे क्योंकि अब तक वे ही भारत में मैकाले की जयन्ती मनानेवाले एक मात्र व्यक्ति हैं । हमें अंग्रेजी के मंदिर में पुजारी बननेका अवसर दिया जाये क्योंकि एक तो हम रिटायर हैं, दूसरे हमने 'अंग्रेजी की आरती' भी अभी से ही लिख कर रख ली है । कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं जैसे-
जय अंग्रेजी माता
मैया, जय अंग्रेजी माता
जो कोई तुझको ध्याता
अफसर बन जाता
मैया, जय अंग्रेजी माता

अंग्रेजी में डाँटो
तो हर कोई थर्राता
तेरे कारण सबमें
अनुशासन आता
मैया जय अंग्रेजी माता

और भी कुछ है-

जय अंग्रेजी मैया
मैया, जय अंग्रेजी मैया
तुझको बोले उसकी
पार लगे नैया
जय अंग्रेजी मैया

अंग्रेजी का महत्व इसीसे सिद्ध होता है कि बहादुर शाह ज़फर, झाँसी की रानी, तांत्या टोपे आदि अंग्रेजी नहीं जानते थे । अगर अंग्रेजी जानते होते तो कभी अंग्रेजों से नहीं हारते । गाँधीजी, नेहरू जी, अम्बेडकर जी अंग्रेजी जानते थे इसलिए आज़ादी मिल गई । आज दुनिया में जितने भी देश विकसित हैं सब में अंग्रेजी में ही काम होता है, चाहे जापान हो या फ़्रांस, इटली हो या रूस, चीन हो या जर्मनी ।

हमारे एक साथी बहुत फास्ट अंग्रेजी बोलते हैं सो प्रिंसिपल उनसे डरते थे । उन्हें कभी कुछ नहीं कहते थे जब कि हमने जब-तब हिन्दी में डाँटते रहते । अंग्रेजी की शक्ति का हमें तब पता चला जब हम अपने गाँव से पिलानी होते हुए भिवानी जा रहे थे । रास्ते में एक व्यक्ति बस में सवार हुआ । कंडक्टर को लगा कि वह पीछे से कहीं से आ रहा है सो उसने पीछे से टिकट माँगी । पिलानी से बैठे अंग्रेजी जानने वाले एक विद्यार्थी ने उसे देखा था कि वह पिलानी से बैठा था । सो वह उस व्यक्ति का पक्ष लेकर कंडक्टर से अंग्रेजी में उलझ गया और कंडक्टर की बोलती बंद हो गई । वह कंडक्टर हिंदी से हमारे वश में आने वाला नहीं था । जब प्रधान मंत्री बनने का अवसर आया तो देवी लाल जी को मना करना पड़ा । अगर उन्हें अंग्रेजी आती होती तो वे ही प्रधान मंत्री बनते ।

और कोई करे न करे पर हम आपके इस कदम का पूर्णतया समर्थन करते हैं । भले ही हिंदी दिवस न मनाने की हमारी बात कोई न माने पर हम यह तो कर सकते हैं कि लार्ड मैकाले के जन्म दिन २५ अक्टूबर को 'दलित सशक्तीकरण दिवस' के रूप में तो मना ही सकते हैं ।
जय मैकाले, जय अंग्रेजी ।

२०-१-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

4 comments:

  1. मजा आ गया। कई बापढ़ने का मन हो रहा है।

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  2. vaah!! क्या बात है!! बहुत जोरदार पोस्ट।

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  3. राम चन्द्र कह गए सिया से.....................

    रोचक, जोशी जी !

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