सोनिया जी,
नए वर्ष की बधाई । वैसे तो हमें बधाई बहुत पहले ही दे देनी चाहिए थी पर हम बधाई जैसी औपचारिकताओं में विश्वास नहीं करते । वैसे तो इस देश में ही क्या, सारी दुनिया में ही बधाई का धंधा बड़े ज़ोरों पर है । स्वार्थी लोग किसी भी तरह बड़े लोगों के संपर्क में आना चाहते हैं और फिर उस संपर्क का आर्थिक लाभ उठाना चाहते हैं । अब देखिये न, ओबामा ने सलाही को नहीं बुलाया था पर पहुँच गए श्रीमान बीवी को लेकर सज-धज कर और जाकर तपाक से हाथ मिला ही लिया ओबामा से । यह तो मीडिया वालों ने पकड़ा दिया वरना वे तो सिक्योरिटी वालों को चकमा दे चुके थे । इस देश, मतलब कि, भारत में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है । इनका धंधा ही यह है ।
यदि आप अख़बार देखती होंगी तो पता चलेगा कि किस-किस बात के लिए छोटे-छोटे शहरों में लोग आपको किस-किस काम के लिए बधाई दे रहे हैं । इस प्रकार ये लोगों में, आपका भक्त होने और आपके नज़दीक होने का, भ्रम फैलाते हैं । वैसे इनमें से अधिकतर कोई हाड़तोड़ मेहनत नहीं करते, पर इनके ठाठ देखिये । दिन में चार बार कुरता बदलते हैं । आम आदमी का सारे दिन काम करने पर भी गुज़ारा नहीं चलता पर इनको रेली, बधाई, शुभकामनाओं, जुलूसों में भाग लेने से ही फुर्सत नहीं है । पता नहीं किस तरह से इनकी गृहस्थी की गाड़ी चलती है । इन्होंने अच्छे-अच्छों को डुबो दिया । इसलिए इनसे सावधान रहिये ।
हमें इंदिरा जी के समय की बात याद है । जब १९७५ में जज सिन्हा ने उनके खिलाफ़ फैसला दिया तो उन्हें इसका सम्मान करते हुए इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था और नए चुनाव करवाने चाहिए थे । ऐसा करने पर वे पुनः जीत कर आतीं पर उन चमचों में इतना धैर्य कहाँ जो उनकी आड़ में अपनी रोटियाँ सेक रहे थे । तो उन्होंने उन्हें समझाया कि इस देश की जानता चाहती है कि आप त्याग पत्र नहीं दें और इमर्जेंसी लगा दें । जब इमर्जेंसी लगी तो किसी ने भी उन्हें सच नहीं बताया कि इमर्जेंसी की आड़ में लोग क्या-क्या खुराफातें कर रहे हैं । वे तो उन्हें यही समझाते रहे कि जनता बहुत प्रसन्न है । समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के झूठे-मूठे प्रतिनिधि मंडलों को ले जाकर उनसे मिलवाते रहे और उन्हें यह विश्वास दिलाते रहे कि जनता उनके साथ है , पर स्थिति इसके विपरीत थी ।जब चुनाव का परिणाम आया तो बात साफ़ हो गई । इस देश में अधिकतर नेताओं ने नेहरू परिवार की आड़ में अपने स्वार्थ साधे हैं और स्वार्थ के लिए ही संकट आने पर डूबती नाव को छोड़ कर भाग भी गए हैं ।
हमें विश्वास है कि आप पुराने अनुभवों से लाभ उठाकर समझदार हो गई हैं । इसलिए फालतू लोगों को मुँह नहीं लगाती हैं फिर भी मानव स्वभाव है । प्रशंसा सब को अच्छी लगती और आदमी झूठे प्रशंसकों के जाल में आ ही जाता है । यह देखना ज़रूरी है कि प्रशंसा या निंदा कौन कर रहा है । यदि कोई निस्वार्थ व्यक्ति प्रशंसा कर रहा है तो उसी रास्ते पर चलते रहिये और यदि कोई निस्वार्थ आदमी आलोचना कर रहा है तो गंभीर चिंतन करिए कि कहाँ गलती या कमी है । स्वार्थी आदमी की निंदा या प्रशंसा का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि उसके दोनों ही काम स्वार्थ के लिए होते हैं । इसलिए हम जैसे निस्वार्थ व्यक्ति की भी बात सुन लिया कीजिए ।
कुछ दिनों पहले पढ़ा था कि ३७५०० किलोमीटर लम्बे राष्ट्रीय राज मार्ग पर हर २५ किलोमीटर पर आपके और मनमोहन जी के फ़ोटो वाले २०x१० फुट के होर्डिंग लगेंगे । इनकी संख्या १४८८ होगी और हरेक होर्डिंग पर दो लाख रुपये का खर्चा आएगा । कुल ३० करोड़ का तमाशा होगा और उसमें निश्चित्त रूप बीस करोड़ रुपये किसी न किसी धन्धेबाज की जेब में जायेंगे । एक बार एड्स अवेयरनेस प्रोग्राम के तहत देश में जागृति फ़ैलाने के लिए जगह-जगह करोड़ों रुपये के होर्डिंग लगे थे । पता नहीं कितने के, कितने होर्डिंग लगे और कितने ही बिल पास होने के तत्काल बाद वापिस गोदाम में पहुँच गये, अगले किसी जागृति कार्यक्रम में उपयोग में लाने के लिए । यही हाल इन बिलबोर्डों का भी हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं । और मानलें कि ऐसा नहीं हुआ और ये होर्डिंग अनन्त काल तक लगे भी रहे तो भी अंततः इनकी क्या उपयोगिता है । भूखे लोगों को यह कभी अच्छा नहीं लगेगा । इतने रुपयों में इस देश के ग्रामीण इलाकों में छः हज़ार लोगों के सिर पर काम चलाऊ छत हो सकती है । तब आपकी और मनमोहन जी की तस्वीर लोगों के दिल में होगी । दिल वाली तस्वीर ही स्थाई होती है ।
हम नेहरू जी का ज़माना याद करते हैं तो पाते हैं कि उस ज़माने में होर्डिंग तो दूर, चुनावों में गाँव में मुश्किल से दस बीस पोस्टर आते थे जिनमें केवल नेहरू जी का फ़ोटो और दो बैलों की जोड़ी का निशान होता था और छपा होता था- कांग्रेस को वोट दें । हमारे पिताजी वह पोस्टर लाये थे और गत्ते पर चिपका कर बैठक में टाँग दिया था । तो यह था दिल में टंगा फ़ोटो । हम तो उसी दिन के इंतजार में हैं कि आपका फ़ोटो उसी तरह लगे । ये होर्डिंग वाले फ़ोटो तो कोई भी पैसे वाला लगवा सकता है । पर ये ज्यादा टिकाऊ नहीं होते । आपके और मनमोहन सिंह जी के फ़ोटो लगवाने की यह महान सूझ युगद्रष्टा कमल नाथ जी की ही होगी ।
कमल नाथ जी के बाप का क्या जाता है । उलटे कोई न कोई फायदा ही होगा क्योंकि ठेका भी तो उनके ही किसी न किसी भक्त को मिलेगा । जनता का पैसा है उसे किसी न किसी बहाने खर्च करना ज़रूरी है तभी तो कुछ मिलेगा । यूँ ही तो नहीं कहा गया है कि - बाँटन वारे को लगे ज्यों मेहंदी को रंग । सभी लगे हैं अपने-अपने हाथ पीले करने में । इन्हें रंगे हाथों कौन पकड़ सकता है ।
आपने उन बिलबोर्डों पर अपनी फ़ोटो लगाने से मना कर दिया है । अच्छा किया पर हम जानते हैं कि ये बगुला भगत मानने वाले नहीं हैं । किसी न किसी बहाने आप को खुश करने और जेब भरने के दोनों ही काम ये किसी न किसी तरह करके ही रहेंगे । पहले यह काम राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण करने वाला था अब कोई प्राइवेट ठेकेदार करेगा पर खर्चा तो लगेगा ही ना । राजमार्गों पर ही क्या, सभी जगहों पर लोगों को रास्ता ढूँढ़ने के लिए सूचनाएँ चाहियें ही । इसलिए फ़ोटो ही नहीं, अपव्यय को भी ड्राप करवाइए । सो सूचनाएँ तो लगवाइये ही, इसमें किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता है बल्कि सुविधा ही होगी । राज मार्ग से जहाँ भी किसी गाँव या शहर का रास्ता फटता है वहाँ वहाँ बड़ा सा बोर्ड लगवा दीजिये, बस काफ़ी है ।
धन का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए । धन हवा में पैदा नहीं होता उसके लिए मानव का पसीना बहता है । कमीशन खाने वालों को क्या पता कि धन कैसे सृजित होता है । वे तो हर काम, अपने कमीशन को ध्यान में रख करके ही करते हैं ।
आपने किसी भी भारतीय से ज्यादा भारत को समझा है । फालतू बात न करना और काम करना । हम आपका फ़ोटो बिलबोर्डों पर नहीं, लोगों की आँखों में खुशियों की चमक के रूप में देखना चाहते हैं ।
आपमें और मायावती जी में फर्क है । होना भी चाहिए । और वह दिखना भी चाहिए ।
इसलिए फिर कहते हैं कि बचो सोनिया जी, बधाईगीरों से मतलब उठाईगीरों से ।
९-१-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
आपने अपने सुन्दर लेख में जिन-जिन बातो को न करने की उन्हें सलाह दी है, बदकिस्मती से वही सब हो रहा है, जोशी साहब !
ReplyDeleteबस आपसे एक विनती है की आप ये मत कह देना कि मैं यह बधाई इतालवी स्टाईल में दे रहा हूँ, आजकल कॉंग्रेसी "सठिया गए" का प्रमाण पात्र बहुत जल्दी देते है !:)