Feb 23, 2010

अतिथि देवो भव

'अतिथि देवो भव' - यह भारत का आदर्श वाक्य है । यहाँ अतिथि को भगवान का दर्ज़ा दिया गया है । अतिथि का अर्थ होता है- अ-तिथि, बिना तिथि, वह व्यक्ति जो बिना सूचना और निमंत्रण के आपके द्वार आ टपकता है । ओबामा ने मनमोहन को भोज दिया । करीब पाँच सौ अन्य लोगों को भी न्यौता गया । अब इन्हें अतिथि कैसे मानें ? जब कि पहले से ही इनको बुलाने का कारण और उसमें छुपी कूटनीति तय थी । सब की टेबिलें और कौन, किसके पास बैठेगा यह भी तय था । हो सकता है कि विशेषज्ञों ने यह भी तय करके दे दिया हो कि कौन कितनी रोटियाँ और कितनी सब्जी खायेगा । गेट पर सबके पास, फ़ोटो देखे गए और शायद मशीनों से यह भी देख लिया गया हो कि किसके पेट और वस्त्रों में कौन से घातक पदार्थ छुपे हैं । जब इतनी सारी बातें पहले से तय हों तो इन्हें अतिथि कैसे माना जा सकता है ।

साहब, अमरीका कहने को ही धनवान देश है हमें तो लगता है कि उसका मन बहुत छोटा है । अपने यहाँ तो अगर कोई सवामणी करता है तो पहले से अनुमान लगा लेता है कि इतने लोग तो बिना बुलाये आयेंगे ही और इतने लोग एक न्यौते में एक आध एक्स्ट्रा को भी लायेंगे ही । कितना मार्जिन रखना पड़ता है ! और वहाँ ओबामा द्वारा मनमोहन को दिए गए भोज में दो प्राणी एक्स्ट्रा क्या आ गए कि सारी दुनिया में हल्ला मच गया । अब सुना है कि इन बेचारों को वहाँ कि जाँच एजेंसी ने पूछताछ के लिए भी बुलाया गया है । एक तो बचारे डिजाइनर कपड़े सिलवा कर, अपना पेट्रोल फूँक कर गए ऊपर से यह फजीता । जब अपने लिए कोई टेबल रिज़र्व नहीं देखी तो चुपचाप एक ड्रिंक लेकर चले गए । हम तो इस 'सलाही' दंपत्ति की सलाहियत पर फ़िदा हैं । वरना भी साहब, अपने यहाँ तो ऐसे ऐसे बेतकल्लुफ लोग आ जाते है जो पहचान लिए जाने पर भी नीची गर्दन करके खाते रहते हैं और पूरा पेट भरकर ही जाते हैं । और मौका लगे तो दो-चार लड्डू जेब में रखकर भी ले जाते हैं ।

हम तो किसी के यहाँ जीमने जाते है तो पहले हिसाब लगा लेते है कि आने-जाने में ओटो का इतना खर्च होगा, गिफ्ट यदि देनी ही पड़े तो कम से कम कितना खर्चा होगा और हम कितने का माल खा पायेंगे । यदि हिसाब-किताब में किसी तरह का घाटा नज़र आए तो अस्वस्थता या व्यस्तता का बहाना बना देते हैं । जहाँ निमन्त्रितों की ही तलाशी ली जाए वहाँ अनिमंत्रितों के सात - जो कि सच्चे अतिथि होते हैं - पता नहीं कैसा व्यवहार किया जाए । हमें तो यदि ओबामा नाश्ते पर बुलायेंगे तो हम तो आने-जाने का किराया एडवांस रखवा लेंगे और जाने से पहले दस बार कन्फर्म करेंगे वरना क्या पता वहाँ पहुँचने के बाद कह दें कि हमने तो जे.रमेश मतलब जयराम रमेश को बुलाया था जोशी रमेश को नहीं ।

अरे भई, जब इतना ही डर लगता है तो काहे की दावत और कैसा जलसा । भिजवा देते मनमोहन जी को पार्सल से परोसा और कर लेते टेलीफोन पर वार्ता । सस्ते में काम हो जाता । अब कहाँ का 'अतिथि देवो भव' । अब तो न्यौता देकर बुलाये गए लोगों की भी मीडिया वाले रोटियाँ गिनते हैं । ऐसे में आदमी क्या ख़ाक खाना खाए । हमारे यहाँ तो भोजन, भजन और भोग सब एकांत के विषय हैं । पर अब तो हरेक भोज से पहले यहाँ तक छपता है कि अमरीका के किस राष्ट्रपति ने भारत के किस प्रधानमंत्री को कब भोज दिया और उसमें क्या-क्या और कितने व्यंजन बनाये गए । यार, खाना खिला रहे हो या एफ.आई.आर. दर्ज कर रहे हो ।

वैसे हमारी इन बातों में कोई खास रुचि नहीं है । हमारी रुचि तो मिशेल ओबामा द्वारा व्हाईट हाउस में उगाई गई सब्जियों के स्वाद में है । कल्पना मात्र से ही मुँह में पानी आ रहा है ।

०२-१२-२००९

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Jhootha Sach

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