Dec 10, 2010

घर लौटने को बेताब काला धन


७-१२-२०१०

आज कई दिनों के बाद धूप निकली थी और ठण्ड भी कुछ कम थी सो चबूतरे पर बैठ कर तोताराम के साथ चाय पी रहे थे कि एक सज्जन पधारे । आते ही बोले- सर, मैं आपको कुछ लौटने आया हूँ । हमें आश्चर्य हुआ कि आज पहली बार कोई कुछ लौटने आया है नहीं तो कोई आज तक लौट कर नहीं आया- बिना कोई गाना गाए कि 'कोई लौटा दे मेरे ...’ । लगा, शायर के विचारों के विरुद्ध गया वक्त भी लौट कर आ सकता है । मगर हमें यह ध्यान नहीं आ रहा था कि आज तक हमने इसे क्या दिया है जिसे यह लौटने आया है ?

पूछा तो बोला- मास्टर जी, मैं स्विस बैंक का मैनेजर हूँ और बैंक में जमा आपके देश का पैसा लौटाने आया हूँ ।


हमने कहा- मगर अभी तो यह भी तय नहीं हुआ है कि हमारे देश का कितना पैसा तुम्हारे यहाँ जमा है ? सरकार ने चार संस्थानों को ठेका दिया है यह पता करने के लिए कि स्विस बैंक में हमारा कितना पैसा है ? जब सही पता चल जाएगा तब उसके हिसाब से बोरे सिलवाने का टेंडर निकालेंगे, लाने के लिए किसी कंपनी को ठेका देंगे, फिर लाने का काम शुरु होगा । अभी तो संभव नहीं है ।

बोला- कुल पैसे का पता करने के लिए ठेका देने की ज़रूरत नहीं है । वह तो अभी कुछ दिन पहले जब शांताकुमार जी संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष सत्र में भाग लेने के लिए गए थे, तभी हमने उन्हें बता दिया था कि मात्र सत्तर लाख करोड़ रुपया जमा है आपके देश का । सो पता लगाने के लिए ठेका देने की ज़रूरत नहीं है । और हम तो सोच रहे हैं कि आप कहें तो हम खुद ही लाकर यहाँ डाल दें ।

हमने कहा- भाई, अब तक तो कोई यह पता भी नहीं कर सकता था कि आपके बैंक में किसका खाता है और किसके कितने पैसे जमा हैं और अब तुम खुद ही सब बताते फिर रहे हो और बताते भी क्या यहाँ लाकर पटकने के लिए उतावले हो रहे हो । क्या बात है ?

कहने लगा- साहब, हमें अब तक पता नहीं था कि यह पैसा चोरी का है । हमारे यहाँ जमा करवाने वाले तो कहते थे कि साहब किसी तरह लोगों की सेवा करके यह थोड़ा बहुत कमाया है । रखने के लिए घर भी नहीं है । सो आप अपने यहाँ रख लीजिए । जब ज़रूरत होगी तो आकर ले जाएँगे । मगर लेने कोई नहीं आया । अब तो हमारे पास रखने के लिए भी जगह नहीं है ।

हमें भी उसकी बातों में मज़ा आने लगा था सो कहा- मगर तुमने उसकी बातों पर विश्वास कैसे कर लिया ? अरे, महमूद गज़नवी, नादिर शाह, अहमद शाह अब्दाली, अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, पुर्तगालियों के लूटने के बाद बचा ही क्या होगा जो लोग इतना धन जमा करवा गए और तुमने बिना सोचे-समझे जमा भी कर लिया ?

कहने लगा- सर, जमा करवाने वालों ने कहा था कि हमारा देश सोने की चिड़िया है । विभिन्न देशों द्वारा इतनी लूट के बाद भी उसकी समृद्धि में कोई कमी नहीं आई है । और आजादी के बाद तो यह चिड़िया केन्द्र में जा बैठी है और उसके पंखों से लगातार काला सोना झरता है । सत्ताधारी, जिनके हाथ लंबे हैं वे अधिक; और जो विपक्षी हैं, जिनके हाथ थोड़े छोटे हैं, वे कुछ कम; और जो बहुत छोटे लोग हैं जैसे सरपंच, पंच, नरेगा वाले, वे भी कुछ न कुछ पा ही जाते हैं । आजकल सेवा में बड़ा स्कोप है ।

तोताराम ने, जो अभी तक चुप बैठा था, चुटकी ली- तभी तुम योरप के गोरे लोग इतना कष्ट उठा कर सेवा करने के लिए एशिया, अफ्रीका गए ।

कहने लगा- वो तो प्रभु की आज्ञा थी कि ये अभागी काली आत्माएँ हैं । जाओ, इन्हें ईसाई बनाओ और इनका उद्धार करो । सो धर्म की आज्ञा का पालन करने के लिए जाना पड़ा । वैसे हमें अब भी धर्म पर पूरी श्रद्धा है । जब हमें पता चला कि यह पाप की कमाई है तो हम उसे वापिस करने के लिए बेताब हो गए । शांताकुमार लाए नहीं, नहीं तो हम उनके साथ ही भेज देते । बोले कि हम सत्ता में नहीं है इसलिए तुम दिल्ली बात करो ।

हमने कहा- तो दिल्ली जाओ ना । यहाँ क्यों आ गए ?

कहने लगा- गया था दिल्ली । अडवानी जी चुनावों के समय कह रहे थे कि काला धन वापिस लाऊँगा । सो पहले उन्हीं से मिला तो कहने लगे- अभी टाइम नहीं है । यदि मैं तुमसे काला धन लेने में लग गया तो यू.पी.ए. ससंद चला लेगा और मैं नहीं चाहता कि संसद चले । अब यही तो एक मुद्दा बचा है अगले चुनाव के लिए ।

हमने कहा - तो फिर मनमोहन सिंह जी से मिल लेते । वे भी कह रहे थे कि चुनावों के बाद सौ दिन में कार्यवाही करेंगे ।
उसने ज़वाब दिया- उनसे क्या मिलता ? वे तो जब भी संसद में कुछ उल्टा-सीधा होने लगता है तो विदेश यात्रा पर चले जाते हैं या मौन व्रत धारण कर लेते हैं ।

तो भाई, वित्त मंत्री प्रणब मुकर्जी हैं, सबसे सीनियर नेता ।


मिला था, मिला था उनसे भी । कहने लगे- यहाँ पैसे की कोई कमी नहीं है । पहले से ही इतना पड़ा है कि कामनवेल्थ गेम्स, २-जी स्केम, नरेगा, अनाज घोटाले, हथियार खरीदने, सड़कें बनवाने के बाद भी खत्म नहीं हो रहा है । विदेशी मुद्रा भण्डार उफना पड़ रहा है । और ऊपर से ग्रोथ-रेट नौ प्रतिशत से ऊपर जाए जा रही है सो अलग । अब क्या-क्या सँभालें ? अगर तुम यह पैसा दे जाओगे तो फिर कोई न कोई स्केम करने के लिए जी ललचाएगा । और फिर वैसे ही लोग दिल्ली से कर्नाटक तक ज़मीन हड़पने में लगे हुए हैं । ज़मीन है ही कहाँ जिस पर इस पैसे को रखने ले किए गोदाम बनवाएँ । अनाज रखने तक के लिए तो जगह नहीं है । वही खुले में पड़ा सड़ रहा है । अभी तुम अपने पास ही रखो ।

कहने लगा - मैं सोचता हूँ यदि यह काम निबट जाए तो क्रिसमस अपने देश जाकर ही मनाऊँ । अभी तो आप लोग चाय पीजिए । कल मैं फिर आपकी सेवा में हाज़िर होऊँगा ।

पता नहीं, भगवान क्या चाहता है ? यह कोई सामान्य स्थिति नहीं है । तोताराम और हमने चुपचाप एक दूसरे की ओर देखते रहे ।




८-१२-२०१०

आज सवेरे-सवेरे स्विस बैंक का मैनेजर तोताराम से भी पहले आ गया । कल भी उसे चाय नहीं पिलवाई थी सो तोताराम का इंतज़ार किए बिना ही चाय बनवा ली । अभी चाय चल ही रही थी कि तोताराम भी आ गया ।

हमने सुझाव दिया- जब कोई भी लेने को राजी नहीं है तो अपने पास ही रख लो ।
बोला- साहब, समझ में आने के बाद चोरी की कमाई अपने पास रखना भी चोरी करने के बराबर ही है ।
- तो फिर हमें ही यह चोरी की कमाई रखने का पाप क्यों चढ़ा रहे हो ?
- हम आपको एक सर्टिफिकेट दे देंगे कि यह धन हमने मास्टर जी को अपने पास तब तक रखने के लिए दिया है जब तक कि इसका मालिक लेने नहीं आए या सरकार इसे लेने के लिए राजी न हो जाए ।

हमने अपनी मज़बूरी बताई- भाई, देखो हमारे कब्जे में यह एक ही कमरा है जिसमें आधे में तो हमारी किताबें भरी हैं और आधे में हम मियाँ-बीवी सोते हैं । नया कमरा बनवाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं । पेंशन में बस, राम-राम करके काम चलता है । और मान लो यदि टिन का एक कमरा बनवा भी लें तो उसमें इतने पैसे आएँगे नहीं । बरसात आई तो भीग जाएँगे या फिर लोग ही उठा ले जाएँगे । जब सरकार को पता चलेगा तो पता नहीं कौन-कौन हिसाब पूछने लगेगा ? हम कौन से मंत्री हैं जो सारे कुकर्मों के बावज़ूद बच जाएँगे । हमें तो कोई भी बेचारी नीरा यादव की तरह जेल में डाल देगा ।

- तो फिर एक उपाय है कि आप अपने यहाँ स्विस बैंक ही खोल लीजिए ।
- मगर यह तो झूठ है और पेटेंट कानून का उल्लंघन है ।
- अरे जब अमरीका हजारों वर्षों से भारत में इलाज के काम आने वाली हल्दी का पेटेंट ले सकता है, जापान कढ़ी का पेटेंट ले सकता है तो आप स्विस बैंक का नाम यूज क्यों नहीं कर सकते ?
- भाई, अमरीका की बात और है, वह तो बासमती चावल भी बेच रहा है । और फिर स्विस बैंक तो दुनिया में एक ही है और वह स्विटज़रलैंड में है ।
- कोई पूछे तो कह देना इसका फुल फॉर्म 'सकल विश्व इंडियन स्केम सहकारी बैंक' है । आपके यहाँ पहले भी तो 'उल्हासनगर सिंधी एसोसिएशन' की चीजें मेड इन यू.एस.ए. के नाम से बिका करती थीं । 'जैपान' नाम से आपके यहाँ एक कंपनी जापान का भ्रम पैदा कर रही है कि नहीं ?

हमने तंग होकर कहा- ठीक है बैंक खोल लेंगे मगर रुपया रखने को जगह तो हो ।

उसने इसका भी उपाय बताया, कहने लगा- आप यह सत्तर लाख करोड़ का चेक रख लीजिए । हमारे सर से तो यह पाप का भार उतरे, प्रतीकात्मक रूप से ही सही । जब भी कोई माँगने आए तो आप उसे डिमांड ड्राफ्ट बना कर दे दीजिएगा । और जब वह हमारे पास आएगा तो हम उसे पेमेंट कर देंगे ।

हम चुप रहे तो उसने एक तीर और फेंका, कहने लगा- सोचिए , जब इतना धन देश में आ जाएगा तो ३० साल तक टेक्स लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, पचास करोड़ लोगों को नौकरी दी जा सकेगी, ५०० पावर प्रोजेक्ट लगाए जा सकेंगे ।

अब तोताराम बोला- ठीक है, तुम्हारी मर्जी । पर हम जानते है कि चील के घोंसले में कभी मांस सुरक्षित बचा है क्या ? जब तक ये सेवक रहेंगे तब तक कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है । दो-चार बरस बाद फिर यह धन काला होकर आपके पास ही आना है । आप कहते है तो हम यह चेक रख लेते हैं । पर अगर कभी कोई झंझट पड़ा तो आपकी जिम्मेदारी होगी ।
उसने कहा- उसकी चिंता मत कीजिए । कोई झंझट पड़ा तो हम कह देंगे कि यह हमारी ही फ्रेंचाइजी है ।

उसके जाने के बाद तोताराम ने कहा- मास्टर, मुझे तो लगता है कि इसे योरप और अमरीका वालों ने भेजा है | जब काला धन यहाँ आ जाएगा तो वे लोग हमें फिर से अनाप-शनाप हथियार बेच कर यह पैसा झटक लेंगे | यदि यह पैसा स्विस बैंक के पास ही रहता तो कभी न कभी, वक्त-ज़रूरत देश के काम आ सकता था |

अब हम क्या कहते । आगे क्या होगा, राम जाने । वैसे आप की क्या राय है ?


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. विचारणीय मुद्दा है.. स्विस बैंक न रखे तो विदेश में एक बैंक खोलने का प्रस्ताव देना चाहिये..

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