Dec 2, 2010

विकिलीक्स का असांज और हिलरी का असमंजस


हिलरी जी,
नमस्ते । हम तो आपके बहुत पहले से ही प्रशंसक हैं । तब से, जब आप मात्र एक वकील और क्लिंटन जी की पत्नी ही थीं सांसद तो खैर आप बाद में बनीं हैं । जब क्लिंटन जी उस प्रशिक्षु मोनिका वाले केस में फँस गए थे तब आपने एक सच्ची और आदर्श भारतीय पत्नी की तरह उनको बचाने के लिए मौन धारण कर लिया था और महिला स्वतंत्रता वाली औरतों के बहकावे में नहीं आईं । बड़ा समझदारी का निर्णय था । जो हो गया सो तो हो ही गया, चाहे क्लिंटन की फजीहत हो और चाहे आपका अपमान । अगर उस समय गुस्से में आकर बोल पड़तीं तो मियाँ जी की और किरकरी होती और राष्ट्रपति पद की पेंशन से भी हाथ धो बैठते । अच्छा किया । पर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि आपने घर में उनकी अच्छी तरह से खबर ली होगी । बस उसी दिन से हम आपकी कूटनीति और ज़ब्त करने की क्षमता के कायल हो गए थे ।

अब यह विकिलीक्स वाला लफड़ा आ गया । वैसे लोग कह रहे हैं कि अमरीका की बड़ी किरकिरी हो रही है । पर आप और हम जानते हैं कि इससे कुछ फर्क पड़ने वाला नहीं । यह सब तो होता ही रहता है । क्या घर में नल लीक नहीं करता ? पहले जब स्याही वाला पेन चलता था तो क्या उसकी स्याही लीक नहीं होती थी ? आपने देखा होगा कि बहुत से लोगों की सर्दियों में प्रायः नाक लीक करने लग जाती है । कुछ लोग सावधान नहीं होते तो नाक का वह द्रव पदार्थ कभी-कभी मुँह में भी प्रवेश कर जाता है । कई पशु वर्षा ऋतु में अधिक घास खा जाते हैं तो वे भी पीछे से लीक होकर सड़कें गंदी करते फिरते हैं । जिन देशों के पास बिना मेहनत के जब ज्यादा धन आ जाता है तो वे भी दुनिया में गंदगी लीक करते फिरते हैं, जैसे कि आज कल के नवधनाढ्य वर्ग के लाडले सपूत । क्या जब डेयरी के दूध की थैली लाते हैं तो कभी-कभी वह लीक नहीं होती ? क्या घर-घर की बातें ऐसे ही लीक नहीं होतीं ? मोनिका वाली बात भी तो लीक हो गई थी । निक्सन के वाटर गेट का वाटर भी तो लीक हो गया था । क्या हुआ दो-चार दिन थू-थू हुई और फिर सब ठीक हो गया । क्लिंटन जी फिर से ठहाके लगाने लग गए । सो यह विकी लीक वाला लीकेज भी बंद हो जाएगा ? ‘एम-सील’ की तरह आपके यहाँ भी लीकेज ठीक करने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर आता होगा । हमारे यहाँ तो किसी भी केस को निबटाने का सब से बढ़िया तरीका यह है कि या तो फ़ाइल गायब करवादो या उस दफ्तर में ही आग लगवा दो । न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी । लिखने को तो हम ओबामा जी को भी लिख सकते थे मगर वे तो इधर-उधर कम ही जाते हैं मगर आपको तो ट्रेवलिंग सेल्समैन की तरह सारी दुनिया में घूमना पड़ता है । क्या पता, कब कोई, क्या सवाल कर ले ?

वैसे लीक करने को टपकना भी कहते हैं । टपकना एक निरंतर प्रक्रिया है । तभी विद्वानों ने कहा है- 'बूँद बूँद से घट भरे, टपकत रीतो होय' ।
इस सूचना-घट रूपी मोबाइल का मेसेज बोक्स समय-समय पर खाली करते रहना चाहिए । और फिर हम तो कहते हैं कि ऐसे सद्वाक्यों का संग्रह करने से क्या फायदा ? इनका तो मुखारविंद से बोलकर ही सुख लिया जाना चाहिए । मौखिक होने से कभी भी बयानों से मुकरा जा सकता है, जैसे कि हमारे नेता । जब कुछ भी, जिसे हमने अन्तरंग क्षणों में कहा है, सरे आम प्रकट हो जाए तो एक बार तो अजीब लगता ही है । किसी भले आदमी को शर्म भी आ सकती है । मगर यह कमज़ोर आदमियों की बीमारी है । नेताओं को शर्माना शोभा नहीं देता । शर्म तो कुलवधुओं का शृंगार है । वेश्या के मामले में तो यह दुर्गुण माना जाता है । सो शर्म को झटकिये और काम पर चलिए ।

बेताल की तरह हम भी आपको लीक करने, मतलब कि टपकने, के बारे में एक कहानी सुनाते हैं । एक बुढ़िया थी । उसकी झोंपड़ी टपकती थी । एक बार सर्दी का मौसम था । बारिश के आसार बनने लगे । बुढ़िया बड़बड़ाने लगी- मुझे शेर से भी इतना डर नहीं लगता जितना टपूकड़े से लगता है । बरसात में भीगता-भीगता एक शेर उस झोंपड़ी के पास खड़ा था । उसने सोच- यह टपूकड़ा तो लगता है कि मुझ से भी खतरनाक जानवर है । तभी एक कुम्हार अपने गधे को ढूँढता हुआ वहाँ आ गया । बिजली की कौंध में उसने शेर को अपना गधा समझा और कान पकड़ कर घर ले गया । शेर ने उसे टपूकड़ा समझ कर चूँ तक नहीं की ।

सो टपूकड़े को इतना खतरनाक समझने से कभी-कभी उस शेर जैसी हालत हो सकती है । इसलिए आप इससे बिलकुल भी मत घबराइए । वैसे हमें विश्वास है कि आप घबरा भी नहीं रही होंगी । इतने बड़े देश को पता नहीं क्या-क्या करना पड़ता है ? ऐसे ही घबराने लगे तो हो ली दुनिया की थानेदारी ।



अब कोई पूछने वाला तो हो भाई क्या है उस विकीलीक में ? यही कि किसी को 'कुत्ता' कह दिया, किसी को नंगा । अजी हमारे यहाँ कहावत है- ‘हमाम में सभी नंगे होते हैं' । सभी अपनी निजी बातों में ऐसी ही ‘संसदीय-भाषा’ का प्रयोग करते हैं । पहले किसिंगर और निक्सन के निजी वार्तालाप में हमारी नेता इंदिरा जी को 'बूढ़ी चुड़ैल' कहा गया था । यह 'प्रशंसा' तो बहुत पहले लीक हो गई थी मगर किसी भी देश भक्त या कांग्रेस भक्त ने कोई विरोध प्रकट नहीं किया । वैसे आप जानती हैं कि विरोध प्रकट करके भी हम क्या कर लेते ? यह बात और है कि अब, जब सुदर्शनजी ने सोनियाजी के बारे में कुछ कहा तो भक्तों ने बड़ा हल्ला मचाया और एक ने तो कोर्ट में केस भी कर दिया । गोरे लोगों की बात और है । उनकी गाली को हमने कभी गाली नहीं माना । वे हमें प्यार से 'ज़मीन पर हगने वाला काला आदमी' और 'कुत्ता' कहा करते थे । और हम 'यस सर' कह दिया करते थे । ठीक भी है, गोरे लोगों का हगा हुआ तो गुरुत्वाकर्षण के नियमों के विरुद्ध कहीं अंतरिक्ष में चला जाता है ।

वैसे जहाँ तक कुत्ते की बात है तो ओबामा जी ने खुद स्वीकार किया है कि विरोधी पार्टी वाले उन्हें 'कुत्ता' कहते हैं । कुत्ता कोई बुरा शब्द नहीं है । एक फिल्म में तो राजेश खन्ना शर्मीला टैगोर को 'कुत्ती चीज' कहता है । प्यार में इस शब्द के बड़े अध्यात्मिक मायने हैं । कबीर दास तो अपने को 'राम की कुतिया' कहते हैं-
कबीर कुतिया राम की मुतिया मेरो नाउँ ।
गले राम की जेवड़ी जित खेंचे तित जाउँ । ।
राजनीति में इतनी भक्ति और समर्पण संभव नहीं है फिर भी कभी न कभी अपने स्वार्थ ले किए किसी न किसी का कुत्ता बनना ही पड़ता है ।

यदि यह विकिलीक वाला लीकेज नहीं भी होता तो भी सारी दुनिया जानती ही है कि किस देश का क्या चरित्र है । एक बार अमरीका ने रूस की जासूसी करने के लिए यू.टू. नामक बहुत ऊँचाई पर उड़ने वाला एक विमान भेजा जो ज़मीन पर से किसी भी राड़ार की पकड़ में नहीं आता था । यह बात आइजनहावर के ज़माने की है । रूस ने कहा- अमरीका हमारी जासूसी करने के लिए विमान भेज रहा है । अमरीका ने मना किया । रूस ने फिर कहा- हमने उसे मार गिराया है । तो अमरीका ने कहा- हाँ, हमारा एक विमान रास्ता भटक गया था, हो सकता है यह वही विमान रहा हो । रूस ने फिर कहा- हमने उस विमान को गिरा लिया है, उसका पाइलट जिंदा है, हमारी हिरासत में है और उसने सब कुछ कबूल लिया है । तो अमरीका अपने वाली पर उतर आया और कहा- हाँ, हमने जासूसी की है और करते रहेंगे । रूस ने कहा- 'अब की बार जब कोई विमान हमारे यहाँ आया तो हम उस अड्डे को ही नष्ट कर देंगे जिससे वह उड़ कर आया होगा' । इसके बाद अमरीका ने कोई विमान नहीं भेजा । खैर, अभी तो ऐसी कोई चुनौती है नहीं । अगर इस विकिलीक के कारण ऐसी कोई समस्या आई तो देखेंगे । अभी से क्या परेशान होना ।

वैसे दुहरा आचरण करने वाले की भी बड़ी समस्याएँ होती हैं । सच बोलने वाले को कुछ भी याद नहीं रखना पड़ता । चाहे आधी रात को उसे उठाकर पूछो तो भी कोई समस्या नहीं । वही बोलना है जो हमेशा बोलता है । मगर झूठ बोलने वाले को बहुत याद रखना पड़ता है कि किसको, कब, क्या बताया था ? जब अमरीका सारी दुनिया में तरह-तरह के धंधे करता है तो कई तरह की बहियाँ रखनी पड़ती हैं, कई तरह के उलटे-सीधे काम करने पड़ते हैं, जाने किस-किस को क्या-क्या कहना पड़ता है । कभी भी, कुछ भी लीक होने का डर रहता है । नामी-बेनामी प्रोपर्टी का धंधा करने वाले के सैंकड़ों प्लाट होते हैं । तो कभी-कभी चक्कर में भी पड़ ही जाता है । मगर ऐसी छोटी-मोटी बातों के कारण धंधा तो नहीं छोड़ा जा सकता ना ।

खैर, अमरीका की इस स्थिति के बारे में फिर कभी बात करेंगे । अभी तो इस लीकेज को ठीक करवाइए । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाटक का मुखौटा उतार कर, किसी न किसी तरह इस विकी लीक वाले जूलियन असांजे को ठिकाने लगवाइए । वैसे इंटरपोल ने वारंट जारी करके इस शुभ कार्य का श्रीगणेश कर तो दिया है । और आपके बगलबच्चे कनाड़ा के प्रधान मंत्री के सलाहकार कॉलेज के प्रोफ़ेसर टॉम फ्लेनेगन ने तो असांज की हत्या करने की नेक और लोकतांत्रिक सलाह भी साफ़-साफ़ दे ही दी है । यदि ज्ञान के पुजारी एक गुरु ने ही सत्य का गला घोंटने की सलाह दी है, तो ये पश्चिम का पढ़ा-लिखा तालिबान ही है ? अब देर किस बात की- शुभस्य शीघ्रं ।

१-१२-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. क्या कहा जाये... कोई फर्क नहीं पड़ता...

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