Dec 8, 2010
तोताराम और मनमोहन जी का एहसान
इस साल बरसात ज्यादा ही हुई और दिवाली तक भी पीछा नहीं छूटा । अब जाकर बरसात बंद हुई तो सर्दी भी जल्दी ही आ गई । अभी तो दिसंबर शुरु ही हुआ है कि पारा पाँच डिग्री पर चला गया और ऊपर से कोहरा । वैसे हमारी कौन सी फ्लाईट लेट हो रही है मगर दिन में कोहरा पड़ने से फिर रात और दिन बराबर हो जाते हैं । दिन में धूप निकलने से कुछ राहत मिल जाया करती थी मगर अब वह भी नहीं । दिन में भी रात जैसी ठिठुरन । सुबह होते ही लाइट चली गई थी । बाहर बैठने से कोई फायदा नहीं, हवा है । अंदर बैठ कर अखबार पढ़ सकने जैसी रोशनी नहीं सो रजाई में बैठे-बैठे ही समाचार सुन रहे थे कि बाहर से तोताराम की आवाज़ आई- अरे मक्खीचूस, इतनी बचत करके क्या करेगा ? लाइट तो जला ले । हम ज़वाब देते उससे पहले तो तोताराम हमारी रजाई के अंदर ।
कहने लगा- लाइट बंद क्यों कर रखी है ? हमने कहा- तुमने सुना नहीं कि ‘लाइट सेव्ड इज लाइट जेनरेटेड’ मतलब कि ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा का उत्पादन है । सो ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं ।
तोताराम कहने लगा- अरे, अब तो बिजली-बिजली रोना छोड़ । अब तो तेरे लिए मनमोहन सिंह जी, जो भी आता है उसी से, दो-चार परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए करार कर तो रहे हैं । अभी फ़्रांस के राष्ट्रपति आए तो साढ़े छः अरब डालर की दर से छः संयंत्रों का समझौता किया कि नहीं । इससे पहले ओबामा जी आए तो भी दस हजार करोड़ का एक समझौता किया ही था । और अब रूस के राष्ट्रपति आ रहे हैं तो उनसे भी कुछ इंतज़ाम करवाएँगे । अब और क्या चाहता है तू मनमोहन सिंह जी से ? क्या नरेगा वाला पैसा भी लगा दें, तेरे लिए बिजली बनवाने के लिए ?
हमने कहा- भैया, यह खर्चा हमारे लिए नहीं, भारत की सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए कर रहे हैं जिससे अगले चुनाव में कोई तो उपलब्धि बताई जा सके । अब २-जी स्पेक्ट्रम तो कोई उपलब्धि रही नहीं ।
तोताराम बोला- विकास के लिए इतनी सिद्दत से किए गए प्रयत्नों को जान बूझ कर छोटा करने की कोशिश मत कर । अरे, जब बिजली बनेगी तो सारे राष्ट्र के ही काम आएगी । राज चाहे किसी भी पार्टी का हो । यह तो अगली पीढ़ियों के लिए पेड़ लगाने जैसा पवित्र काम है ।
हमने फिर अपनी बात रखी- यदि यह वास्तव में केवल विकास के लिए बिजली की ही बात है तो भी हमें क्या फायदा ? हमें तो दो सौ रुपए महिने से ज्यादा की बिजली जलानी नहीं । यदि सारे महिने भी बिजली न आए तो भी मिनिमम चार्जेज तो देना ही पड़ेगा जैसे कि एक भी काल न करो तो भी लेंडलाइन का दो सौ रुपया महीना तो देना ही पड़ेगा । वैसे यह देश जब बिजली का आविष्कार भी नहीं हुआ था तब मशालों और दिए की रोशनी में ही सोने की चिड़िया बन गया था । ये परमाणु बिजली घर हमारे लिए नहीं, अम्बानियों के लिए लगाए जा रहे हैं । पता है, मुकेश अम्बानी के घर का बिजली का एक महिने का बिल कितना है ? सत्तर लाख रुपए । हमारी-तुम्हारी सारी ज़िंदगी की नौकरी की तनख्वाह और पेंशन भी सत्तर लाख नहीं बनेगी ।
तोताराम अम्बानी का भक्त है क्योंकि आज तक जो दुनिया किसी की मुट्ठी में नहीं हुई उसे मुकेश ने अपनी मुट्ठी में जो कर लिया । बोला- तेरा घर है एक लाख रुपए का और बिजली का बिल आता है दो सौ रुपए महीने । मुकेश का घर है चार हजार पाँच सौ करोड़ का और उसका महीने का बिजली का बिल केवल सत्तर लाख । घर की कीमत के हिसाब से उसका बिजली का बिल आना चाहिए नब्बे लाख रुपए महिना । हर महिने वह बिजली पर बीस लाख रुपए कम खर्च कर रहा है । और क्या चाहता है ? क्या इतना बड़ा आदमी लालटेन जलाकर रहे ? कुछ तो देश की इमेज का ख्याल कर ।
हम ऐसे सकारात्मक चिंतन वाले को और क्या कह सकते थे, कहा- तो ठीक है तोताराम, कल कहीं से एक सोलर लालटेन का इंतज़ाम कर फिर यह बिजली का कनेक्शन ही कटवा देते हैं । वैसे कटवा तो आज ही देते और अपने वाली लालटेन जलाना शुरु कर देते मगर सरकार हमें केरोसिन जलाने जितना गरीब नहीं मानती । उसके हिसाब से हम सवर्ण हैं और हर सवर्ण सेठ होता है । गरीब तो रामविलास पासवान और मायावती जैसे दलित हैं । फिर तेरे मनमोहन जी को लिख देते हैं कि साहब, हमारी तरफ से चाहे जितने अरब-खरब डालर के समझौते करें पर हम पर कोई एहसान लादने की ज़रूरत नहीं है ।
८-१२-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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