Dec 24, 2010
सांता क्लाज़ विदाउट दाढ़ी
आज पत्नी का अड़सठवाँ जन्मदिन है | कोई बहुत ज्यादा स्वस्थ तो नहीं है, दवाओं के सहारे काम चल रहा है मगर हिम्मत बाँध कर साथ निभा रही है | शादी को भी साढ़े इक्यावन साल हो गए हैं | आज कई दिनों बाद कोहरा कुछ कम है और धूप भी ठीक-ठाक निकली है | दोपहर का खाना खाकर चबूतरे पर बैठे मूँगफली खा रहे हैं और शाम के खाने के बारे में भी तय किया है कि आज बाज़ार से जलेबी और बड़े ले आएँगे सो 'पौष-बड़ा' के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की नौ प्रतिशत वृद्धि, सचिन का पचासवाँ शतक और भारत को सबसे ईमानदार प्रधान मंत्री मिलने - पत्नी की वर्षगाँठ के बहाने सब को एक साथ सेलेब्रेट कर ही डालेंगे |
तभी एक सज्जन चबूतरे के पास आकर रुके | हम उन्हें पहचान तो नहीं सके मगर कद-काठी कुछ-कुछ जानी-पहचानी सी लगी, कहा- आओ बंधु, आज पत्नी का जन्मदिन है | इसी उपलक्ष्य में मूँगफली खाओ | उसने पत्नी को जन्मदिन की बधाई दी और एक मूँगफली उठाते हुए कहा- आपने मुझे पहचाना कि नहीं ? हमने कहा- झूठ क्यों कहें भाई, नहीं पहचाना |
बोला- मैं सांताक्लाज़ हूँ | पिछली बार आपके यहाँ आया था और एक काली कार से मरते-मरते बचा था | आपने मुझे अपने यहाँ चाय पिलवाई थी और आग जलाकर हम साथ-साथ तापे थे |
हमें सब याद आ गया,पूछा- तो इस बार समय से पहले ही कैसे आ गए और वह भी दिन में ? कहने लगा- क्या बताएँ मास्टर जी, अब रात में घूमने-फिरने का ज़माना नहीं रहा | वैसे ही शाम से लोग पिए हुए घूमते रहते हैं और फिर साल के आखिरी हफ्ते में तो पता नहीं किस नए साल का स्वागत करते हैं और कैसा क्रिसमस मानते हैं कि दारू के अलावा कुछ सूझता ही नहीं | सो सोचा दिन में ही आपसे मिल आऊँ | सो चला आया |
हमने कहा- भैया, अच्छा किया | हम भी सर्दी के मारे इस नए साल के चक्कर में नहीं पड़ते | जैसा भी होगा अगले दिन सुबह उठ कर मना लेंगे | जैसा ३१ दिसंबर वैसा ही १ जनवरी | वही तनाव और अपराध, वही झूठ और फरेब | वही आधी रात को पेट्रोल और खाने-पीने की चीजों के बढ़ते दाम | खैर तुम सुनाओ, हमने देखा कि तुम कुछ लँगड़ा कर चल रहे थे, क्या बात है ?
बोला- क्या सुनाना है | बुढ़ापे में लगी चोट क्या कभी पूरी तरह से ठीक होती है ? बस चल रहा है |
हमने पूछा- और तुमने अपनी ड्रेस भी बदल दी है | न सफ़ेद दाढ़ी, न लाल कपड़े, न पीठ पर उपहारों का थैला | हमारी तरह साधारण मोटा कुर्ता, बंडी और टोपा |
कहने लगा- अब कहाँ पहले वाली बात है | लोगों ने बड़े-बड़े माल्स में संता की ड्रेस पहना कर सेल्समैन खड़े कर दिए है जो बच्चों को ललचाकर पैसे ऐंठते हैं | कुछ लोग संता का वेश बना कर चोरी तक करने लग गए हैं | अभी आपने अमरीका की खबर पढ़ी या नहीं कि एक आदमी सांता का वेश बनाकर चोरी करते हुए पकड़ा गया | मैंने सोचा क्यों बिना बात शंका पैदा की जाए सो सादे वेश में ही चला आया | और आजकल लोग स्वार्थ के लिए वेश को लज्जित कर रहे हैं | बड़े धर्माधिकारियों की सीडियाँ जारी हो रही हैं | स्वामी जी सेक्स के द्वारा आत्मा को परमात्मा से मिलवा रहे हैं | चर्चो में इतने यौन अपराध बढ़ रहे हैं कि पोप तक को उनके लिए माफ़ी माँगनी पड़ रही है | मगर इस ढोंग के तंत्र को तोड़ना किसी के बस में नहीं है | सब धर्म, जाति, रंग नस्ल के बाहरी रूप को लेकर लड़ रहे हैं | इंसानी रिश्तों की किसी को फ़िक्र नहीं है |
खैर मास्टर जी, मेरी क्रिसमस और हैप्पी न्यू ईयर | ये रख लीजिए बच्चों के लिए | और उसने अपनी जेब टटोलते हुए दो छोटी-छोटी टाफियाँ निकालीं और हमारे हाथ पर रख दीं |
हम काफी देर टॉफी सहित उसका हाथ थामे रहे | न वह बोला और न हम |
२३-१२-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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बहुत सटीक व्यंग्य है। भाभीजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं। जयपुर आएंगे तब एकाध मूंगफली हमें भी खिला दीजिएगा।
ReplyDeleteसटीक और समय अनुरूप .......
ReplyDeleteबेचार सांता भी क्या करे....
बहुत ही भयावह समय आ गया है भारत में...
ReplyDeleteJANAMDIN KI SHUBHKAAMNAYE........
ReplyDelete.
ReplyDeleteजोशी जी ,
बेहतरीन व्यंग। संता ने भी हार मान ली।
अब न रहे वो भोले-भाले,
अब न रहे ,संता-आला।
भाभी जी को जन्म दिन की belated शुभकामनायें। [ belated के लिए उपयुक्त हिंदी शब्द सुझा दीजिये तो महती कृपा होगी]
सादर ,
दिव्या।
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