Dec 20, 2010
हिंदू आतंकवाद
दिग्विजय सिंह जी,
चमचे और मीडिया वाले आपको प्यार से या पता नहीं, उल्लू बनाने के लिए 'दिग्गी-राजा' कहते हैं और आप भी अपने को राजा मानकर खुश हो लेते हैं, वैसे असलियत तो जो है वह है ही । हमें भी कुछ लोग बनाने के लिए प्रिंसिपल साहब कहते हैं जब कि हम भूतपूर्व वाइस प्रिंसिपल हैं । और वाइस प्रिंसिपल भी कैसे ? सारी ज़िंदगी पूरे दिन क्लासें पढ़ाते रहे, कापियाँ जाँचते रहे, हाज़री लेते रहे, फीस जमा करते रहे । केवल रिटायरमेंट से पहले एक साल के लिए इस पद पर स्थापित हुए । तब भी हमने तो प्रिंसिपल से कह दिया- बंधु, न तो हमें पैसे का हिसाब-किताब आता है और न ही प्रशासन । आप कहेंगे तो दो क्लास फालतू पढ़ा देंगे और फिर भी आप नहीं निभा सको तो वापिस लौट जाएँगे । बेचारे भले आदमी थे सो निभ गई । अब जब हमें कोई प्रिंसिपल कहता है तो हम यह सोच कर सावधान हो जाते हैं कि अब यह उल्लू बनाने वाला है सो तत्काल सुधार कर देते हैं कि हम प्रिंसिपल नहीं रहे ।
अब न आपके पास कोई जागीर है और न हमारे पास कोई अधिकार । हमारे पास तो खैर, कभी भी नहीं रहे । आपके पास तो दस साल तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्रित्व रहा हुआ है । अब दिल्ली में रह कर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए हिंदू आतंकवाद पर वक्तव्यों से दिग्विजय कर रहे हैं । गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम ने सारे देश-दुनिया को देखकर भगवा आतंकवाद का आविष्कार किया और राहुल बाबा ने भी 'भारत की खोज' करने के बाद अमरीकी राजदूत को एक मन्त्र दिया कि इस देश को इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की बजाय हिंदू कट्टरपंथी संगठनों से अधिक खतरा है जैसे कि इस्लामिक अतिवादी संगठन तो उनका हुक्म मानते हैं और इनके कहते ही अपनी गतिविधियां बंद कर देंगे ।
हम न तो कहीं के मुख्यमंत्री रहे, न गृहमंत्री हैं और न ही कभी भारत की खोज करने के लिए किसी प्लेन या हेलिकोप्टर का जुगाड़ हुआ, फिर भी नौकरी के दौरान कोई, गोडफादर न होने के कारण बहुत धक्के खाने पड़े हैं । इस चक्कर में हमने भी इस देश को थोड़ा बहुत देखा है । थोड़ा बहुत इतिहास भी पढ़ा है और इतिहास पढ़ने से अधिक उसके शोध में टाँग अड़ाई है और उसी के आधार पर कुछ चामत्कारिक मान्यताएँ स्थापित की हैं । उन्हीं मान्यताओं के आधार पर हम इस हिंदू आतंकवाद के बारे में कुछ कहना चाहते हैं ।
हमारा ख्याल है कि महमूद गज़नवी एक श्रद्धालु तीर्थयात्री था और वह मथुरा और सोमनाथ की यात्रा करने आया था और तीर्थयात्रा करके अपने देश चला गया था । इन मंदिरों के पुजारियों ने खुद ही मंदिर का खजाना चोरी कर लिया और उस बेचारे भले आदमी का नाम लगा दिया । वह तो अपने देश में बैठा था । अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए आ भी नहीं सका और अब तक इतिहास में यही पढ़ाया जा रहा है कि महमूद गज़नवी ने भारत पर आक्रमण किया और सोमनाथ और मथुरा के मंदिरों को लूट ले गया । पता नहीं, अर्जुन सिंह जी से इतिहास की किताबों में यह संशोधन करवाने से कैसे छूट गया । अब तो उनके दुबारा आने की संभावना नहीं है सो अब तो नए मंत्री की जिम्मेदारी है इस झूठ को ठीक करवाने की ।
शाहजहाँ के काल में आने वाले विदेशी पर्यटकों ने बीस करोड़ रुपए खर्च करके बीस साल में ताजमहल बनवाने जैसी छोटी-मोटी घटना का उल्लेख नहीं किया तो यहाँ के कुछ इतिहासकार कहने लगे कि शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया ही नहीं । उसने तो तेजोमहालय नामक एक शिव मंदिर को नया रूप देकर उसे ताजमहल नाम दे दिया । जब शिवाजी ने बघनखे से बेचारे अफज़ल खान को मारना चाहा तो उसने भी तलवार निकाल ली और लोगों ने इतिहास में लिख दिया कि अफज़ल खान शिवाजी को धोखे से मारना चाहता था ।
हमारा ख्याल है कि यह ओसामा भी कोई छद्म हिंदू ही है जो मुसलमान नाम से दुनिया में आतंक फैला कर इस्लाम को बदनाम कर रहा है वरना तो इस्लाम तो शांति और प्रेम का धर्म है । जो भी यहाँ आया प्रेम और शांति का सन्देश लेकर आया जैसे महमूद गज़नवी, मोहम्मद गौरी, बाबर, अहमद शाह अब्दाली, नादिर शाह आदि । और उसी प्रेम से प्रभावित होकर बहुत से हिंदू अपने क्रूर धर्म को छोड़कर मुसलमान बन गए तो इसमें किसका दोष ?
यदि अफगनिस्तान के मुसलमान मूर्ति-भंजक होते तो वे सैंकडों वर्ष पहले ही बामियान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ चुके होते । मगर ऐसा नहीं हुआ । दो हजार साल तक ये मूर्तियाँ सुरक्षित खड़ी रहीं । और अब २००० में ही ऐसा क्या हो गया कि ये मूर्तियाँ टूट गईं । इन्हें भी यहाँ के किसी हिंदू ने ही तोड़ा है । ज़रा सख्ती से जाँच करवाएँगे तो सच निकल आएगा । वैसे इसे मान लेने के लिए हमारी यह तर्कपूर्ण मान्यता ही काफी है ।
हमें तो लगता है कि गवांतेनामो की जेल में भी सारे हिंदू ही तो हैं जो मुसलमान नाम और रूप धर कर अमरीका में आतंकवाद फैला रहे थे । इनकी इस चालाकी से बिना बात ही इस्लाम बदनाम हो रहा है ।
कश्मीर के पंडित कश्मीर की सर्दी से बचने के लिए जलवायु परिवर्तन के लिए जम्मू और दिल्ली में आकर बस गए और मजे से सरकारी सहायता के पैसे से मौज कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें कश्मीर से निकाल दिया । जब कि कश्मीर में युवा बेचारे पत्थर फेंक कर दो सौ रुपए में किसी तरह से गुजर कर रहे हैं । आपने अफज़ल गुरु का फोटो देखा ? बेचारा कितना निरीह और डरा हुआ लगता है ? क्या ऐसा सीधा-सादा व्यक्ति कुछ ऐसा-वैसा कर सकता है ? हमें तो लगता है कि बेचारे को बिना बात फँसा दिया गया है । और फिर वह 'उस्ताद' नहीं 'गुरु' है और गुरु तो हिंदू होता है । हमारी संस्कृति में तो गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है और इस गुरु से ऐसा बर्ताव ?
और सारी बातों को छोड़ भी दें तो यह तो सत्य है कि इस्लाम तो केवल १५०० वर्ष पहले आया है इससे पहले तो इस देश में और इसके आसपास सारे हिंदू ही तो थे । इन सब के पूर्वज भी हिंदू ही थे । तो इस बात को मानने में क्या ऐतराज हो सकता है कि यह सारी खुराफात हिंदू ही कर रहे हैं ।
कुछ कट्टर हिंदुओं ने एक यह भी गलत मान्यता फैला रखी है कि फारस में इस्लाम के उदय के बाद अपने धर्म को बचाने के लिए अग्निपूजक पारसियों (राहुल बाबा के दादाजी के पूर्वज भी पारसी ही थे ) को भाग कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी । इसी तरह से अजमेर वाले ख्वाजा साहिब भी अपने आप को मध्य एशिया में एडजस्ट नहीं कर पाने के कारण अजमेर आ गए थे । राहुल बाबा को कह दीजिएगा कि ऐसी अफवाहों पर विश्वास नहीं करें ।
हमारे पास और भी ऐसी राष्ट्रीय एकता बढ़ाने वाली खोजें हैं । जब भी आप कहेंगे तभी उपलब्ध करवा देंगे । बस, आप तो हमारा नाम किसी राज्यपाल , किसी विश्विद्यालय के वाइस चांसलर, पी.एच.डी., राज्य सभा की सदस्यता या शांति पुरस्कार के लिए आगे बढ़वा दीजिए ।
धन्यवाद ।
१-१२-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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mujhe aapki khoj par poora vishwash hai..
ReplyDeleteजोशी जी बहुत ही धारदार व्यंग्य हैं बधाई।
ReplyDeleteएकदम तीखा....
ReplyDeleteअब तो सोच रहे हैं कि हम भी इस्लाम कबूल कर ही लें:)
एक युवक घर आया....... बोला शानार्थी है...... 'ज&क' के. कैम्प लगा है हमारा...... कृपया कुछ 'दान' दीजिए.........
ReplyDeleteमैंने शर्म से १०० रुपे दिए..... बोला कम है...... मैंने कहा भई आप लोगों का नसीब....... वो पत्थर मार के ५०० रुपे कमा रहे हैं और तुम दर दर की ठोकरें खा रहे हो.