अपूछनीय प्रश्न
तोताराम ने आज आते की हमसे एक प्रश्न किया- वे कौन से चार प्रश्न हैं जो सदैव अपूछनीय हैं ?
हमने कहा- बन्धु, हम तो हमेशा ही उत्तर देने के लिए बाध्य और भाग्य के हिसाब से कहें तो अभिशप्त रहे हैं |प्रश्न पूछने का सौभाग्य और साहस कभी मिला ही नहीं |मंत्री चरण-वंदना न करने वाले अधिकारी से पूछ सकता है- तुमने सरकारी नौकरी में आने पर कब-कब,कहाँ से, कितनी और कौन-कौन सी झाडू खरीदीं |खरीदते समय उनमें कितने-कितने तिनके थे ? उन सब के बिल प्रस्तुत करो अन्यथा तुम पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगा कर मुक़दमा चलाया जाएगा |लेकिन नेता जी से कौन पूछे कि कुर्सी पर बैठते ही पाँच साल में लल्लू से लाला कैसे बन गए ?
सो बन्धु, हमने तो हमेशा प्रिंसिपल के प्रश्नों के उत्तर ही दिए हैं |कभी यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप गणित के एम.ए.हैं तो गणित की बोर्ड की कक्षाएँ क्यों नहीं लेते ? जब निरीक्षण होता है तो टाइमटेबल में अपने नाम से गेम्स, एस.यू.पी.डब्लू. की कक्षाएँ ही क्यों दिखाते हैं ? पत्नी तक से नहीं पूछा- दाल में नमक ज्यादा या चाय में चीनी कम क्यों है ? इसलिए हमारे हिसाब से हमारे लिए तो सभी प्रश्न अपूछनीय ही हैं |
कहने लगा- अरे, कभी तो इन तुच्छ बातों से निकला कर |कुछ दिमाग लड़ाया कर | लेकिन चल, तेरे वश का नहीं है |मैं ही बता देता हूँ- वे चार प्रश्न है-
नेता से उसकी प्रतिबद्धता के बारे में प्रश्न मत पूछो क्योंकि वह सत्ताधारी पार्टी या सत्ता से पहले और सत्ता के बाद बदल जाती है |इसी तरह से औरत से उसकी उम्र , पुरुष से उसकी तनख्वाह और जज से उसकी बीमारी के बारे में प्रश्न मत पूछो |
हमने कहा- तोताराम, शुरू वाले तीन तो हमें मालूम थे लेकिन यह चौथा पता नहीं था इसलिए उत्तर नहीं दिया |यह जजों की बीमारी वाला क्या चक्कर है ?जज भी तो सरकारी नौकर होते हैं, डाक्टर के पास जाते हैं, दवा और डाक्टर के बिल भी सरकारी खजाने से चुकाए जाते हैं तो फिर बीमारी के बारे में ही यह गोपनीयता क्यों ?
कहने लगा- मेरा तो आज तक कभी कोर्ट में जाने का काम पड़ा नहीं और भगवान करे पड़े भी नहीं लेकिन मैंने पढ़ा है- किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जजों के मेडिकल बिल और बीमारी के बारे में जानना चाहा था तो बताया गया कि यह बीमारी एक गोपनीय सूचना है, नहीं दी जा सकती |
हमने कहा- इसमें क्या है ?शरीर है तो बीमारी भी असंभव नहीं है | यह भी नहीं कहा जा सकता कि शराब से अल्सर या तम्बाकू से कैंसर होता ही है |शाहजहाँ के हरम में पाँच हजार औरतें थीं लेकिन उसके एड्स से मरने के बारे में कोई उल्लेख नहीं है |चर्चिल खूब चुरुट पीता था लेकिन कैंसर नहीं हुआ लेकिन तम्बाकू का सेवन न करने वाले रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया |और फिर भैया, कहाँ तक छुपाओगे- मूली खाओगे तो डकार में बदबू आएगी ही, संग्रहणी होगी तो बार-बार जाना ही पड़ेगा, भले ही संडास का नाम 'रेस्ट-रूम' हो क्यों न रख लो या नेता जी के दर्शनार्थियों से कब तक कहोगे कि नेता जी संडास में नहीं पूजा में हैं मीटिंग में हैं |पता तो चल ही जाएगा |
लेकिन इस तरह से तो जज कुछ भी बताए बिना, बिना बीमारी के भी बिल उठाते रहेंगे |कोई जाँच भी संभव नहीं |
बोला- हो सकता है ऐसे ही राष्ट्रहित के कारण बड़े-बड़े देशों के नेता किसी दूसरे देश के संडास में फ़ारिग़ नहीं होते |अपना मोबाइल शौचालय साथ ले जाते हैं | पता नहीं, किसी को उनकी असाध्य बीमारी का पता चल जाएगा तो फिर देश का मनोबल नहीं टूट जाएगा या क्या पता उस देश के कमोड में से ही व्यापक विनाश का हथियार कोई प्रकट हो जाए |लेकिन मेरा मानना है कि नेताओं की तरह जजों को भी दो ही बीमारियाँ होती हैं- एक कब्ज़ और दूसरी लूज मोशन |
हमने पूछा -यह कैसे ?
बोला- जब किसी गरीब को न्याय न देना हो या किसी नेता के दिन-दहाड़े किए गए अपराध को भी ज़िन्दगी भर लटकाना हो तो जज जो करते हैं उसे कब्ज़ की बीमारी कहते हैं और यदि किसी दबंग को दो दिन में जमानत देनी हो या ईमानदार अफसर को सताना हो या किसी भाई का 'ज़ुलाबी' फोन आजाए तो फटाफट फैसला सुना देने को जजों की 'लूज मोशन' की बीमारी कहते हैं |
तोताराम ने आज आते की हमसे एक प्रश्न किया- वे कौन से चार प्रश्न हैं जो सदैव अपूछनीय हैं ?
हमने कहा- बन्धु, हम तो हमेशा ही उत्तर देने के लिए बाध्य और भाग्य के हिसाब से कहें तो अभिशप्त रहे हैं |प्रश्न पूछने का सौभाग्य और साहस कभी मिला ही नहीं |मंत्री चरण-वंदना न करने वाले अधिकारी से पूछ सकता है- तुमने सरकारी नौकरी में आने पर कब-कब,कहाँ से, कितनी और कौन-कौन सी झाडू खरीदीं |खरीदते समय उनमें कितने-कितने तिनके थे ? उन सब के बिल प्रस्तुत करो अन्यथा तुम पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगा कर मुक़दमा चलाया जाएगा |लेकिन नेता जी से कौन पूछे कि कुर्सी पर बैठते ही पाँच साल में लल्लू से लाला कैसे बन गए ?
सो बन्धु, हमने तो हमेशा प्रिंसिपल के प्रश्नों के उत्तर ही दिए हैं |कभी यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप गणित के एम.ए.हैं तो गणित की बोर्ड की कक्षाएँ क्यों नहीं लेते ? जब निरीक्षण होता है तो टाइमटेबल में अपने नाम से गेम्स, एस.यू.पी.डब्लू. की कक्षाएँ ही क्यों दिखाते हैं ? पत्नी तक से नहीं पूछा- दाल में नमक ज्यादा या चाय में चीनी कम क्यों है ? इसलिए हमारे हिसाब से हमारे लिए तो सभी प्रश्न अपूछनीय ही हैं |
कहने लगा- अरे, कभी तो इन तुच्छ बातों से निकला कर |कुछ दिमाग लड़ाया कर | लेकिन चल, तेरे वश का नहीं है |मैं ही बता देता हूँ- वे चार प्रश्न है-
नेता से उसकी प्रतिबद्धता के बारे में प्रश्न मत पूछो क्योंकि वह सत्ताधारी पार्टी या सत्ता से पहले और सत्ता के बाद बदल जाती है |इसी तरह से औरत से उसकी उम्र , पुरुष से उसकी तनख्वाह और जज से उसकी बीमारी के बारे में प्रश्न मत पूछो |
हमने कहा- तोताराम, शुरू वाले तीन तो हमें मालूम थे लेकिन यह चौथा पता नहीं था इसलिए उत्तर नहीं दिया |यह जजों की बीमारी वाला क्या चक्कर है ?जज भी तो सरकारी नौकर होते हैं, डाक्टर के पास जाते हैं, दवा और डाक्टर के बिल भी सरकारी खजाने से चुकाए जाते हैं तो फिर बीमारी के बारे में ही यह गोपनीयता क्यों ?
कहने लगा- मेरा तो आज तक कभी कोर्ट में जाने का काम पड़ा नहीं और भगवान करे पड़े भी नहीं लेकिन मैंने पढ़ा है- किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जजों के मेडिकल बिल और बीमारी के बारे में जानना चाहा था तो बताया गया कि यह बीमारी एक गोपनीय सूचना है, नहीं दी जा सकती |
हमने कहा- इसमें क्या है ?शरीर है तो बीमारी भी असंभव नहीं है | यह भी नहीं कहा जा सकता कि शराब से अल्सर या तम्बाकू से कैंसर होता ही है |शाहजहाँ के हरम में पाँच हजार औरतें थीं लेकिन उसके एड्स से मरने के बारे में कोई उल्लेख नहीं है |चर्चिल खूब चुरुट पीता था लेकिन कैंसर नहीं हुआ लेकिन तम्बाकू का सेवन न करने वाले रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया |और फिर भैया, कहाँ तक छुपाओगे- मूली खाओगे तो डकार में बदबू आएगी ही, संग्रहणी होगी तो बार-बार जाना ही पड़ेगा, भले ही संडास का नाम 'रेस्ट-रूम' हो क्यों न रख लो या नेता जी के दर्शनार्थियों से कब तक कहोगे कि नेता जी संडास में नहीं पूजा में हैं मीटिंग में हैं |पता तो चल ही जाएगा |
लेकिन इस तरह से तो जज कुछ भी बताए बिना, बिना बीमारी के भी बिल उठाते रहेंगे |कोई जाँच भी संभव नहीं |
बोला- हो सकता है ऐसे ही राष्ट्रहित के कारण बड़े-बड़े देशों के नेता किसी दूसरे देश के संडास में फ़ारिग़ नहीं होते |अपना मोबाइल शौचालय साथ ले जाते हैं | पता नहीं, किसी को उनकी असाध्य बीमारी का पता चल जाएगा तो फिर देश का मनोबल नहीं टूट जाएगा या क्या पता उस देश के कमोड में से ही व्यापक विनाश का हथियार कोई प्रकट हो जाए |लेकिन मेरा मानना है कि नेताओं की तरह जजों को भी दो ही बीमारियाँ होती हैं- एक कब्ज़ और दूसरी लूज मोशन |
हमने पूछा -यह कैसे ?
बोला- जब किसी गरीब को न्याय न देना हो या किसी नेता के दिन-दहाड़े किए गए अपराध को भी ज़िन्दगी भर लटकाना हो तो जज जो करते हैं उसे कब्ज़ की बीमारी कहते हैं और यदि किसी दबंग को दो दिन में जमानत देनी हो या ईमानदार अफसर को सताना हो या किसी भाई का 'ज़ुलाबी' फोन आजाए तो फटाफट फैसला सुना देने को जजों की 'लूज मोशन' की बीमारी कहते हैं |
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