जैसे कंता घर रहे....
अखबार के पहले पेज पर संसद के न चल पाने का समाचार था और साथ में यह भी बताया गया कि संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट २९ हजार रुपए खर्च होते | ये पैसे किसी सांसद के तो होते नहीं, जनता के होते हैं और जनता के पैसे तो होते ही उड़ाने के लिए | यहाँ खर्च नहीं होंगे तो कहीं और होंगे-किसी नेता की छवि बनाने के विज्ञापन पर, किसी मंच-पंडाल पर, सांसदों को सब्सीडाईज्ड खाना खिलाने पर |फिर भी पता नहीं, क्यों मन मान नहीं रहा था | हमारी और तोताराम की एक महिने की पेंशन के बराबर राशि एक मिनट में स्वाहा |
जैसे ही तोताराम आया हमने अपना दुःख उसे बताया- यह क्या है तोताराम, हम तो यदि आधे घंटे लेट हो जाते थे तो प्रिंसिपल आधे दिन की सी.एल. माँग लेता था और यहाँ यह हाल है कि लोग संसद या विधान सभा में या तो जाते नहीं, जाते हैं तो बोलते नहीं, बोलते हैं तो आग लगाने वाली बातें,या फिर सो जाते हैं और जो अधिक ऊर्जावान होते हैं वे सदन में ही पोर्न देखने लग जाते हैं | क्या होगा इस देश का ? अब विकास का क्या होगा ?
बोला- संसद चले या न चले कुछ होना-हवाना नहीं है | तूने क्या वह कहावत नहीं सुनी-
जैसे कंता घर रहे, तैसे रहे बिदेस |
आज तक जब संसद विधिवत और पूरे समय चलती रही तब ही क्या हो गया ? लोकतंत्र में ये सभी औपचारिकताएँ वैसे ही हैं जैसे बकरे को काटने से पहले कोई कलमा पढ़ता है तो कोई मन्त्र | सबको स्वाद लगा हुआ है |कबीर ने तो बहुत पहले कह दिया है-
साधो, आग दुहूँ घर लागी |
हिन्दू की दया, मेहर तुरुकन की दोनों घर से भागी |
सो भैया, जैसे अर्जन, वैसे फरजन |नाग काटे या साँप -मरना तो दोनों ही स्थितियों में है |मालिक इस्तीफा मांगे या डिसमिस करे- नौकरी दोनों ही हालत में जानी है |संसद चले या नहीं पैसों को तो बत्ती लगनी ही है |सेहत के लिए कोकाकोला पी या पेप्सी; दोनों ही सामान रूप से लाभदायक हैं | दारु देसी हो या विदेशी-स्वास्थ्य वर्द्धक हैं |
नेता जीता हुआ हो, हारा हुआ, भूतपूर्व हो या वर्तमान सदैव अविश्वसनीय और घातक होता है |
गधी को लादने वाले के जाति-धर्म से क्या मतलब ?
कबीर ने तुम्हारे जैसे बुद्धिजीवियों के ज्ञानवर्द्धन के लिए ही कहा है-
तू गधी कुम्हार की तुझे राम से क्या काम ?
इसी बात पर एक चुटकुला सुन और बात ख़त्म करके चाय मँगवा-
एक बकरी के बच्चे ने अपनी माँ से पूछा- माताश्री, एकादशी कब है ?
माँ ने उत्तर दिया-बेटा, तेरा काम तो अष्टमी को ही हो जाएगा | एकादशी की चिंता वह करे जो एकादशी तक बचेगा |
हमने पूछा- चाय घर वाली चलेगी या फिर संसद वाली कैंटीन से मँगवाएँ |
बोला- घर वाली चाय ही ठीक है |संसद वाली न हमें मिलेगी और न ही पचेगी |
अखबार के पहले पेज पर संसद के न चल पाने का समाचार था और साथ में यह भी बताया गया कि संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट २९ हजार रुपए खर्च होते | ये पैसे किसी सांसद के तो होते नहीं, जनता के होते हैं और जनता के पैसे तो होते ही उड़ाने के लिए | यहाँ खर्च नहीं होंगे तो कहीं और होंगे-किसी नेता की छवि बनाने के विज्ञापन पर, किसी मंच-पंडाल पर, सांसदों को सब्सीडाईज्ड खाना खिलाने पर |फिर भी पता नहीं, क्यों मन मान नहीं रहा था | हमारी और तोताराम की एक महिने की पेंशन के बराबर राशि एक मिनट में स्वाहा |
जैसे ही तोताराम आया हमने अपना दुःख उसे बताया- यह क्या है तोताराम, हम तो यदि आधे घंटे लेट हो जाते थे तो प्रिंसिपल आधे दिन की सी.एल. माँग लेता था और यहाँ यह हाल है कि लोग संसद या विधान सभा में या तो जाते नहीं, जाते हैं तो बोलते नहीं, बोलते हैं तो आग लगाने वाली बातें,या फिर सो जाते हैं और जो अधिक ऊर्जावान होते हैं वे सदन में ही पोर्न देखने लग जाते हैं | क्या होगा इस देश का ? अब विकास का क्या होगा ?
बोला- संसद चले या न चले कुछ होना-हवाना नहीं है | तूने क्या वह कहावत नहीं सुनी-
जैसे कंता घर रहे, तैसे रहे बिदेस |
आज तक जब संसद विधिवत और पूरे समय चलती रही तब ही क्या हो गया ? लोकतंत्र में ये सभी औपचारिकताएँ वैसे ही हैं जैसे बकरे को काटने से पहले कोई कलमा पढ़ता है तो कोई मन्त्र | सबको स्वाद लगा हुआ है |कबीर ने तो बहुत पहले कह दिया है-
साधो, आग दुहूँ घर लागी |
हिन्दू की दया, मेहर तुरुकन की दोनों घर से भागी |
सो भैया, जैसे अर्जन, वैसे फरजन |नाग काटे या साँप -मरना तो दोनों ही स्थितियों में है |मालिक इस्तीफा मांगे या डिसमिस करे- नौकरी दोनों ही हालत में जानी है |संसद चले या नहीं पैसों को तो बत्ती लगनी ही है |सेहत के लिए कोकाकोला पी या पेप्सी; दोनों ही सामान रूप से लाभदायक हैं | दारु देसी हो या विदेशी-स्वास्थ्य वर्द्धक हैं |
नेता जीता हुआ हो, हारा हुआ, भूतपूर्व हो या वर्तमान सदैव अविश्वसनीय और घातक होता है |
गधी को लादने वाले के जाति-धर्म से क्या मतलब ?
कबीर ने तुम्हारे जैसे बुद्धिजीवियों के ज्ञानवर्द्धन के लिए ही कहा है-
तू गधी कुम्हार की तुझे राम से क्या काम ?
इसी बात पर एक चुटकुला सुन और बात ख़त्म करके चाय मँगवा-
एक बकरी के बच्चे ने अपनी माँ से पूछा- माताश्री, एकादशी कब है ?
माँ ने उत्तर दिया-बेटा, तेरा काम तो अष्टमी को ही हो जाएगा | एकादशी की चिंता वह करे जो एकादशी तक बचेगा |
हमने पूछा- चाय घर वाली चलेगी या फिर संसद वाली कैंटीन से मँगवाएँ |
बोला- घर वाली चाय ही ठीक है |संसद वाली न हमें मिलेगी और न ही पचेगी |
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