बाबै नैं कुण लड़ै
दिल्ली और कुर्सी से दूर रहकर एक आम आदमी जो कुछ देख-समझ सकता है उसी तरह से हमने इसे देश को देखा है |१९५२ से लेकर अब तक के सारे चुनाव हमारे समझते-देखते हुए |और १९६० से १९९९ तक हमने बाकायदा एक मतदान अधिकारी और निर्वाचन अधिकारी के रूप में काम भी किया है |कई सत्ताधारी दल हारे,नए गठबंधन बने, टूटे, और अब तो कहिए दलों का दलदल हो गया है जिसमें जनता रूपी गाय फँसी हुई है |जिसके पास एक सीट नहीं वह भी नई पार्टी बना रहा है |कोई बात नहीं, काम करो या न करो लेकिन लोकतंत्र में सबसे कमाई के इस धंधे में घुसने से कौन किसे रोक सकता है ? लेकिन जो सबसे अधिक अखरने वाली बात है वह यह है कि लोगों का, विशेष रूप से राजनीति में, प्रतिक्रिया देने स्तर इतना गिर गया है कि कुँजड़े भी इनसे बेहतर लगते हैं |
अभी दो -पाँच दिन पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने राजस्थान में स्मृति ईरानी को जिस तरह से 'कामवाली' कहा वह नितांत अशालीन और घटिया था |धनार्जन के लिए श्रम करना कोई बुरा नहीं है |बुरा तो चोरी-डाका है | जयप्रकाश नारायण ने अमरीका में अपने अध्ययन के दौरान खर्चा चलाने के लिए होटल में बर्तन साफ़ किए तो क्या आप उन्हें बर्तन माँजने वाला कहेंगे ?क्या राजीव गाँधी का परिचय 'एक पायलट' मात्र है ?वैसे मोदी जी ने बचपन में कभी रेल में चाय सप्लाई की |और उन्होंने चुनावों में इसका भरपूर फायदा भी लिया लेकिन उनका अधिकांश जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक के रूप में बीता | अब उनका परिचय 'चाय वाला' नहीं, भारत का प्रधान मंत्री है |
आज हमने जब तोताराम से भारतीय राजनीति के अशालीन होते जा रहे इस रुझान के बारे में कहा तो बोला- इन्हें ही क्यों देखता है ? जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम का पेटेंट ले रखा है वे ही कौन से मर्यादित हैं ? उन्हें अपने वाले तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश लगते हैं, शेष सब देशद्रोही और हराम वाले लगते हैं |साध्वी जी की साधुता इतनी जल्दी भूल गया ?और जिन्हें डाक्टरी पढ़कर लोगों का इलाज़ करना चाहिए था वे राम के नाम पर बीमारियाँ बाँटते फिर रहे हैं |और उन्होंने एक वरिष्ठ और विशिष्ट महिला के लिए जो कहा वह तो दोहराने से भी जीभ गन्दी होती है | ऐसे ही एक और साधु पुरुष हुए हैं जिन्हें कलाम साहब के बालों के स्टाइल के अलावा उनमें और कुछ दिखाई ही नहीं दिया |
हमने कहा-तोताराम, राम ने तो उत्तरकाण्ड में अयोध्या के लोगों से बात करते हुए कहते हैं -
जो अनीति कछु भाखों भाई |
तो मोहि बरजेहु भय बिसराई ||
और कहाँ उस राम के ये भक्त ? इन्हें कोई समझाए तो काटने दौड़ते हैं |सारी नैतिकता, मर्यादा और देशभक्ति का ठेका जैसे इन्होंने ही ले रखा है |
बोला-कबीर कहते हैं-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय |
जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय ||
और इन्हें अपने अलावा दुनिया में कोई भला ही दिखाई नहीं देता |सच्चा और निष्कपट भक्त ही- 'मैं मूरख खल कामी...' गा सकता है | जो लम्पट हैं वे हर मिलने वाले को सबसे पहले जिस-तिस से ली हुई क्लीन चिट दिखाते हैं |
हमने कहा- लेकिन कोई कुछ बोलता क्यों नहीं ?
कहने लगा- बोले कौन ? इन्हें तो अपने लिए 'माननीय' से कम संबोधन स्वीकर नहीं | जेल में भी जाएँगे तो चाहेंगे कि जेल-अधिकारी इनके पैर छुए और पाँच सितारा सुविधाएँ दे |
राजस्थानी कहावत सुनी है ना-
बाबो सैंनैं लड़ै पण बाबै नैं कुण लड़ै |
दिल्ली और कुर्सी से दूर रहकर एक आम आदमी जो कुछ देख-समझ सकता है उसी तरह से हमने इसे देश को देखा है |१९५२ से लेकर अब तक के सारे चुनाव हमारे समझते-देखते हुए |और १९६० से १९९९ तक हमने बाकायदा एक मतदान अधिकारी और निर्वाचन अधिकारी के रूप में काम भी किया है |कई सत्ताधारी दल हारे,नए गठबंधन बने, टूटे, और अब तो कहिए दलों का दलदल हो गया है जिसमें जनता रूपी गाय फँसी हुई है |जिसके पास एक सीट नहीं वह भी नई पार्टी बना रहा है |कोई बात नहीं, काम करो या न करो लेकिन लोकतंत्र में सबसे कमाई के इस धंधे में घुसने से कौन किसे रोक सकता है ? लेकिन जो सबसे अधिक अखरने वाली बात है वह यह है कि लोगों का, विशेष रूप से राजनीति में, प्रतिक्रिया देने स्तर इतना गिर गया है कि कुँजड़े भी इनसे बेहतर लगते हैं |
अभी दो -पाँच दिन पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने राजस्थान में स्मृति ईरानी को जिस तरह से 'कामवाली' कहा वह नितांत अशालीन और घटिया था |धनार्जन के लिए श्रम करना कोई बुरा नहीं है |बुरा तो चोरी-डाका है | जयप्रकाश नारायण ने अमरीका में अपने अध्ययन के दौरान खर्चा चलाने के लिए होटल में बर्तन साफ़ किए तो क्या आप उन्हें बर्तन माँजने वाला कहेंगे ?क्या राजीव गाँधी का परिचय 'एक पायलट' मात्र है ?वैसे मोदी जी ने बचपन में कभी रेल में चाय सप्लाई की |और उन्होंने चुनावों में इसका भरपूर फायदा भी लिया लेकिन उनका अधिकांश जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक के रूप में बीता | अब उनका परिचय 'चाय वाला' नहीं, भारत का प्रधान मंत्री है |
आज हमने जब तोताराम से भारतीय राजनीति के अशालीन होते जा रहे इस रुझान के बारे में कहा तो बोला- इन्हें ही क्यों देखता है ? जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम का पेटेंट ले रखा है वे ही कौन से मर्यादित हैं ? उन्हें अपने वाले तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश लगते हैं, शेष सब देशद्रोही और हराम वाले लगते हैं |साध्वी जी की साधुता इतनी जल्दी भूल गया ?और जिन्हें डाक्टरी पढ़कर लोगों का इलाज़ करना चाहिए था वे राम के नाम पर बीमारियाँ बाँटते फिर रहे हैं |और उन्होंने एक वरिष्ठ और विशिष्ट महिला के लिए जो कहा वह तो दोहराने से भी जीभ गन्दी होती है | ऐसे ही एक और साधु पुरुष हुए हैं जिन्हें कलाम साहब के बालों के स्टाइल के अलावा उनमें और कुछ दिखाई ही नहीं दिया |
हमने कहा-तोताराम, राम ने तो उत्तरकाण्ड में अयोध्या के लोगों से बात करते हुए कहते हैं -
जो अनीति कछु भाखों भाई |
तो मोहि बरजेहु भय बिसराई ||
और कहाँ उस राम के ये भक्त ? इन्हें कोई समझाए तो काटने दौड़ते हैं |सारी नैतिकता, मर्यादा और देशभक्ति का ठेका जैसे इन्होंने ही ले रखा है |
बोला-कबीर कहते हैं-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय |
जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय ||
और इन्हें अपने अलावा दुनिया में कोई भला ही दिखाई नहीं देता |सच्चा और निष्कपट भक्त ही- 'मैं मूरख खल कामी...' गा सकता है | जो लम्पट हैं वे हर मिलने वाले को सबसे पहले जिस-तिस से ली हुई क्लीन चिट दिखाते हैं |
हमने कहा- लेकिन कोई कुछ बोलता क्यों नहीं ?
कहने लगा- बोले कौन ? इन्हें तो अपने लिए 'माननीय' से कम संबोधन स्वीकर नहीं | जेल में भी जाएँगे तो चाहेंगे कि जेल-अधिकारी इनके पैर छुए और पाँच सितारा सुविधाएँ दे |
राजस्थानी कहावत सुनी है ना-
बाबो सैंनैं लड़ै पण बाबै नैं कुण लड़ै |
No comments:
Post a Comment