सब धोखेबाज़ हैं
बड़बड़ाता हुआ तोताराम प्रकट हुआ- सब धोखेबाज़ हैं, क्या नेता, क्या अभिनेता और मास्टर तू भी |
हमने कहा- बन्धु, हमने क्या धोखा दिया ? न ललित मोदी से मिले, न किसी प्रतियोगी परीक्षार्थी की जगह 'व्यापमं' की परीक्षा में बैठे, न किसी कोयले की खान का ठेका लिया, न स्पेक्ट्रम ख़रीदा और न ही अब विकास के लिए मोदी जी के 'लैंड बिल' में रुकावट डाल रहे हैं | फिर इस आरोप का आधार क्या है ?
बोला- हम आरोप लगाने के लिए आधार नहीं ढूँढ़ते फिरते |भले ही आजकल हमारी खुद की बोलती बंद हो गई हो लेकिन मनमोहन के मौन और कोई भी अवसर हो तो विपक्षी दामादों को उछालने का मौका नहीं छोड़ते |अपने वाले के ससुर भले ही कांग्रेसी हों लेकिन दूसरों की कांग्रेसी ससुराल या मैका हमें भगवान का नाम लेते और योग करते हुए भी नहीं भूलता, सुर्री छोड़ ही देते हैं |
जब तक कारण नहीं बताऊँगा तब तक तू पीछा नहीं छोड़ेगा |इसलिए सुन-जब तुझे पता था कि अमित शाह के चार घोड़ों के स्थान पर आठ पहियों वाले लोहे के रथों के दो दिन बाद ही लालू जी ने एक घोड़े वाले १००० टमटम-रथ निकालने की घोषणा कर दी है तो मुझे कल आते ही क्यों नहीं बता दिया ? यह धोखा नहीं तो और क्या है ? यह तो वैसे ही है जैसे दूर-दराज़ से सामान लेने आए किसी नए व्यापारी को पुरानी दिल्ली के सदर बाज़ार की बजाय दिल्ली कैंट के सदर बाज़ार का रास्ता दिखा देना |
हमने कहा- हमने तो यह सोचकर नहीं बताया कि थका-माँदा आया है |एक दो दिन आराम कर ले तो तसल्ली से बातें होंगीं |
बोला- क्या ख़ाक आराम ? कल बता देता तो लगे हाथ फिर पटना को चल पड़ता और अमित शाह की लग्ज़री बसों को नहीं तो लालू जी के घोड़ों को ही खिला आता | नेताओं का क्या भरोसा ? पता नहीं कौन, कब जेल से छूटकर सामान्य या असामान्य सेवक बन कर देश की छाती पर चढ़ बैठे | सो किसे पता, लालू जी के घोड़ों को खिलाई सूखी घास कब 'अच्छे दिनों' की तरह चन्दन बन कर लौट आए |
जो होता सो कर-कराकर इकठ्ठा ही आराम करता लेकिन अब एक हफ्ते की थकान उतर रही है सो मन ही नहीं कर रहा कुछ करने का |
हमने कहा- अच्छा है पटना जाने का एक चक्कर और बच गया वरना दुगुनी बेचारगी लेकर लौटता |
पूछा- क्यों क्या लालू के घोड़ों ने भी घास खाना छोड़कर ब्रोकली का सूप पीना शुरू कर दिया है ?
हमने कहा- नहीं, यह बात तो नहीं है | नेता बना मनुष्य भले ही यूरिया, कोयला,सीमेंट, चारा,मेडिकल की सीटें आदि खा जाए लेकिन घोड़ा ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिए भगवान ने एक ही खाद्य पदार्थ नियत कर दिया है- घास | इसलिए भले ही कोई ईमानदारी का झंडा उठाए पार्टी जीत के लिए किसी काले चोर से समझौता कर ले, भाजपा का कांग्रेस में विलय हो जाए लेकिन घोड़ा घास से यारी नहीं कर सकता क्योंकि घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या ? सो घोड़ों को तो घास चाहिए ही , न सही हरी, तेरी सूखी ही सही |
गुस्साकर बोला- तो फिर बताया क्यों नहीं, मेरे बाप ?
-इसलिए कि लालू जी ने टमटम यात्रा के घोड़ों के लिए अपने चारे के पुराने स्टॉक में से पार्टी के नाम से सप्लाई कर दी है, हमने कहा |
तोताराम ने सिर पर हाथ मारा- धन्य हो जनसेवको ! ससुर,सूखी घास की सप्लाई में भी एक रिटायर्ड मास्टर को चांस नहीं दिया गया | उसमें भी आत्मवाद या परिवारवाद | अरे, हम कौन सा अभी और नकद माँग रहे थे | हम तो भविष्य के 'अच्छे दिनों' के लिए इन्वेस्ट कर रहे थे |
बड़बड़ाता हुआ तोताराम प्रकट हुआ- सब धोखेबाज़ हैं, क्या नेता, क्या अभिनेता और मास्टर तू भी |
हमने कहा- बन्धु, हमने क्या धोखा दिया ? न ललित मोदी से मिले, न किसी प्रतियोगी परीक्षार्थी की जगह 'व्यापमं' की परीक्षा में बैठे, न किसी कोयले की खान का ठेका लिया, न स्पेक्ट्रम ख़रीदा और न ही अब विकास के लिए मोदी जी के 'लैंड बिल' में रुकावट डाल रहे हैं | फिर इस आरोप का आधार क्या है ?
बोला- हम आरोप लगाने के लिए आधार नहीं ढूँढ़ते फिरते |भले ही आजकल हमारी खुद की बोलती बंद हो गई हो लेकिन मनमोहन के मौन और कोई भी अवसर हो तो विपक्षी दामादों को उछालने का मौका नहीं छोड़ते |अपने वाले के ससुर भले ही कांग्रेसी हों लेकिन दूसरों की कांग्रेसी ससुराल या मैका हमें भगवान का नाम लेते और योग करते हुए भी नहीं भूलता, सुर्री छोड़ ही देते हैं |
जब तक कारण नहीं बताऊँगा तब तक तू पीछा नहीं छोड़ेगा |इसलिए सुन-जब तुझे पता था कि अमित शाह के चार घोड़ों के स्थान पर आठ पहियों वाले लोहे के रथों के दो दिन बाद ही लालू जी ने एक घोड़े वाले १००० टमटम-रथ निकालने की घोषणा कर दी है तो मुझे कल आते ही क्यों नहीं बता दिया ? यह धोखा नहीं तो और क्या है ? यह तो वैसे ही है जैसे दूर-दराज़ से सामान लेने आए किसी नए व्यापारी को पुरानी दिल्ली के सदर बाज़ार की बजाय दिल्ली कैंट के सदर बाज़ार का रास्ता दिखा देना |
हमने कहा- हमने तो यह सोचकर नहीं बताया कि थका-माँदा आया है |एक दो दिन आराम कर ले तो तसल्ली से बातें होंगीं |
बोला- क्या ख़ाक आराम ? कल बता देता तो लगे हाथ फिर पटना को चल पड़ता और अमित शाह की लग्ज़री बसों को नहीं तो लालू जी के घोड़ों को ही खिला आता | नेताओं का क्या भरोसा ? पता नहीं कौन, कब जेल से छूटकर सामान्य या असामान्य सेवक बन कर देश की छाती पर चढ़ बैठे | सो किसे पता, लालू जी के घोड़ों को खिलाई सूखी घास कब 'अच्छे दिनों' की तरह चन्दन बन कर लौट आए |
जो होता सो कर-कराकर इकठ्ठा ही आराम करता लेकिन अब एक हफ्ते की थकान उतर रही है सो मन ही नहीं कर रहा कुछ करने का |
हमने कहा- अच्छा है पटना जाने का एक चक्कर और बच गया वरना दुगुनी बेचारगी लेकर लौटता |
पूछा- क्यों क्या लालू के घोड़ों ने भी घास खाना छोड़कर ब्रोकली का सूप पीना शुरू कर दिया है ?
हमने कहा- नहीं, यह बात तो नहीं है | नेता बना मनुष्य भले ही यूरिया, कोयला,सीमेंट, चारा,मेडिकल की सीटें आदि खा जाए लेकिन घोड़ा ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिए भगवान ने एक ही खाद्य पदार्थ नियत कर दिया है- घास | इसलिए भले ही कोई ईमानदारी का झंडा उठाए पार्टी जीत के लिए किसी काले चोर से समझौता कर ले, भाजपा का कांग्रेस में विलय हो जाए लेकिन घोड़ा घास से यारी नहीं कर सकता क्योंकि घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या ? सो घोड़ों को तो घास चाहिए ही , न सही हरी, तेरी सूखी ही सही |
गुस्साकर बोला- तो फिर बताया क्यों नहीं, मेरे बाप ?
-इसलिए कि लालू जी ने टमटम यात्रा के घोड़ों के लिए अपने चारे के पुराने स्टॉक में से पार्टी के नाम से सप्लाई कर दी है, हमने कहा |
तोताराम ने सिर पर हाथ मारा- धन्य हो जनसेवको ! ससुर,सूखी घास की सप्लाई में भी एक रिटायर्ड मास्टर को चांस नहीं दिया गया | उसमें भी आत्मवाद या परिवारवाद | अरे, हम कौन सा अभी और नकद माँग रहे थे | हम तो भविष्य के 'अच्छे दिनों' के लिए इन्वेस्ट कर रहे थे |
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