Jan 10, 2016

नोबल मच्छर

  नोबल का मच्छर 

दो दिन से तोताराम गायब था |हम सोच रहे थे कि शायद हमारे लिए क्रिसमस का कोई गिफ्ट लेकर आएगा लेकिन गिफ्ट तो दूर आते ही प्रश्न किया- मास्टर, बता मच्छर कितने प्रकार के होते हैं ?

हमने कहा- हमें तो अब नेताओं की तरह दिशाओं तक का ज्ञान नहीं रहा सो तुझे मच्छरों के बारे में क्या बताएँ | जिस तरह अब तक पुराणों और पैंसठ वर्षीय भारतीय  लोकतंत्र में राजनैतिक पार्टियों तक की संख्या तय नहीं हुई तो मच्छरों के बारे कोई क्या कहे |हाँ, प्राइमरी में पढ़ा था कि मलेरिया के मच्छर को एनाफिलीज़ कहते हैं जिसका पता रोनाल्ड रोस ने लगाया था | उस मच्छर की पत्नी मलेरिया फैलाती है |इसके बाद कई प्रकार के बुखार आए और कई प्रकार के मच्छरों को इसके लिए ज़िम्मेदार पाया गया | इसके अलावा हमने यलो फीवर, चिकुनगुनिया,डेंगू और हाथी पाँव फ़ैलाने वाले मच्छरों के बारे में भी पढ़ा है |समय के साथ तरह-तरह के वैचारिक मच्छरों का भी प्रादुर्भाव हो रहा है जैसे कट्टरता, असहिष्णुता, जुमले आदि फ़ैलाने वाले मच्छर |सबसे नया 'इस्लामक स्टेट' नामक मच्छर है  जो बड़ा खतरनाक है |काटता नहीं बल्कि क़त्ल करता है और वह भी हर बार नए तरीके से |सारी दुनिया डरी हुई है |तू किस मच्छर की तलाश में है ?

बोला- मैं नोबल-मच्छर की तलाश में हूँ |

हमने कहा- नोबल ने तो किसी मच्छर का नहीं बल्कि डाइनामाइट का आविष्कार किया था और अपनी सारी संपत्ति से एक ट्रस्ट बनाकर विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार 'नोबल प्राइज़' की स्थापना की थी |

कहने लगा- मैं तो उस मच्छर की तलाश में हूँ जिसके काटने से नोबल प्राइज़ मिलता है और जिसका उल्लेख कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी जी ने किया गया है और जो उनके अनुसार मोदी जी को काट गया है |

हमने कहा- ये सब छोटी सोच हैं |बेचारे तिवारी जी को भी क्या पता ? उन्हें कौन से पुरस्कार मिले हैं | पुरस्कार के लिए किसी मच्छर से कटवाने की नहीं बल्कि खुद जल में मगरमच्छ की तरह शक्तिशाली होने की ज़रूरत होती है | खली भाषणों से कुछ नहीं होता |मोदी जी तो नए-नए हैं |अटल जी तक को बसों में धक्के खाने पर भी शांति का नोबल नहीं मिला और ओबामा जी के राष्ट्रपति बनते ही नोबल समिति वालों को उनके एक भाषण में ही नोबल पाने सकने की क्षमता का अहसास हो गया और पंद्रह दिन में ही नोमिनेट कर दिया | 

-तो फिर नोबल का कोई चांस नहीं- तोताराम ने रुआँसा होकर पूछा |

हमने कहा- एक ही रास्ता है | मोहम्मद ज़लालुद्दीन अकबर से मिल ले |उन्होंने कहा है - तिवारी जी को पता नहीं है |नोबल प्राइज़ ऐसे नहीं मिलता |तो उन्हें ज़रूर पता होगा कि नोबल प्राइज़ कैसे मिलता है और उसका किसी मच्छर से कोई संबंध होता है या नहीं ?

बोला- कैसी बातें करता है, अकबर को मरे तो ५०० सौ वर्ष हो गए उससे कैसे मिलूं ?

हमने कहा- क्यों ?दिल्ली चला जा |वे भाजपा के प्रवक्ता हैं |

बोला- बस, इतना ही ज्ञान है तेरा ?एम.जे.अकबर से कन्फ्यूज हो गया ना ? उनका पूरा नाम मोहम्मद ज़लालुद्दीन अकबर नहीं बल्कि मोबासर जवाद अकबर है और उनके दादाजी हिन्दू थे जब कि तेरे वाले अकबर के पिता हुमायूं मुसलमान थे |

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