Jan 13, 2016

'उप' का उपद्रव

  'उप' का उपद्रव

आते ही हमने कहा- तोताराम, कैग अर्थात नियंत्रक व महालेखा परिषद ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले एक दशक में जन कल्याण के नाम पर लगाए गए 'सेस' के हजारों-लाखों करोड़ रुपए या तो खर्च नहीं हुए या उन्हें किसी अन्य मद में खर्च कर दिया गया |

तोताराम ने पूछा- शेष-विशेष की तरह यह सेस क्याहै ?

हमने कहा- सेस मतलब 'उप-कर' | कर तो हर बजट में लगते ही हैं लेकिन फिर बीच में कभी जेब खर्च के लिए सरकार को ज़रूरत पड़ती है तो जो अघोषित कर लगाती है उसे सेस या उप-कर कहा जाता है |जैसे पहले 'शिक्षा उपकर' लगाया था और अब एक नया उपकर लगा है 'स्वच्छ भारत उपकर' |

बोला- इस 'उप' में ही सारी खुराफातें हैं |पत्नी तक तो ठीक है लेकिन उसमें जब 'उप' लग जाता है तो सारे घपले शुरू हो जाते हैं | पति घर के बजट में से घोटाला करके काला धन बनाता है और 'उपपत्नी' के लिए गोरा बनाने वाली क्रीम खरीदता है |योग तक तो ठीक है लेकिन जब उसमें उप जुड़ कर 'उपयोग' का चस्का लग जाता है तो घी में फफूंद निकलने लग जाती है |निवेश तक तो ठीक है लेकिन जब नीयत ठीक नहीं होती तो निवेश के बहाने 'उप' लगाकर दोनों तरफ से उपनिवेश की कूटनीति शुरू हो जाती है |जब औरत भी पुरुष की तरह लम्पट हो जाती है तो वह भी अपने पति से अधिक ख्याल अपने 'उपपति' का रखने लग जाती है और पति की कमाई उस पर लुटाती है |

हमने कहा- फिर भी कुछ न कुछ तो होता ही है |

बोला- होता क्या है ?गुजरात में शराबबंदी के नाम पर नौकरीपेशा लोगों पर दस रुपए महिने का उपकर लगता था और तब दस रुपए में गैस का एक सिलेंडर आता था मतलब कि आज के हिसाब से साढ़े छः सौ रुपए महिने का लेकिन क्या वास्तव में शराब बंदी थी ? जब, जहाँ, जैसी चाहो, दारु ले लो |और अब रही तुम्हारी सफाई की बात सो सिर्फ फोटो और खबरों में है |वास्तव में जब तक कूड़ा सृजित होना बंद नहीं होता तब तक कैसी सफाई |अमरीका का कूड़ा दिल्ली में, दिल्ली का कूड़ा जयपुर में, जयपुर का कूड़ा जिला मुख्यालय में और जिला मुख्यालय का कूड़ा छोटे-छोटे गाँव-ढाणियों में |यदि वास्तव में मन से काम होता तो हजारों करोड़ खर्च होने के बावजूद गंगा मरणासन्न नहीं रहती  |

इसमें भी 'उप' की ही माया है- उपभोक्तावाद अन्यथा सिर्फ 'भोक्ता' तो अपने भोग भोगता है और बात ख़त्म |

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