साढ़े तिहत्तर रुपए का सिक्का
हमने तोताराम को एक चुटकुला सुनाया- एक ग्राहक ने एक दुकानदार को पंद्रह रुपए का नोट दिया और छुट्टे माँगे |दुकानदार ने साढ़े सात साढ़े सात के दो नोट दे दिए |
बोला- यह एक पुराना चुटकुला है लेकिन समय की रफ़्तार को देखते हुए हो सकता है, यह किसी दिन सच में बदल जाए |कुछ वर्षों पहले एक समाचार पढ़ा था कि किसी ने अपना छोटा फोटो लिफाफे पर डाक टिकट की तरह चिपका कर भेज दिया था और मज़े की बात यह कि वह सही ठिकाने पर सकुशल पहुँच भी गया |किसी रिपोर्टर ने उसका समाचार बना दिया था |और देखिए कि अभी कुछ दिन पहले पोस्ट ऑफिस ने अपने फोटो के टिकट छपवाने की सुविधा दे दी है |
हमने पूछा- लेकिन नोटों या सिक्कों के संबंध में तुम यह कैसे कह सकते हो ?
बोला- अभी तक हम एक,दो, पाँच, दस, बीस,पचास, एक सौ, पाँच सौ और हज़ार के नोट चलते थे लेकिन अब अम्बेडकर जी की पुण्य तिथि ६ दिसंबर २०१५ को १२५ रुपए का सिक्का भी आ रहा है क्योंकि यह उनका १२५ वाँ जन्म वर्ष भी है |
हमने कहा- लेकिन एक सौवीं जयंती पर ही यह सिक्का जारी क्यों नहीं किया ? हिसाब ठीक रहता और अच्छा भी लगता |
बोला- उस समय न तो उस समय वालों को पता था कि अम्बेडकर के बिना अनुसूचित जाति वालों का वोटबैंक खिसक सकता है |
हमने पूछा- लेकिन आज सिक्का जारी करने वालों ने उनकी एक सौवीं जयंती पर ऐसा क्यों नहीं किया ?
बोला- कैसे कर सकते थे, तब कोई सत्ता में थोड़े थे |
-लेकिन भैन जी के साथ मिलकर प्रस्ताव तो रख सकते थे- हमने कहा |
कहने लगा- लेकिन तब इन्हें अनुसूचित वोटों की कोई उम्मीद नहीं थी, भैन जी पर छः-छः महीने वाले प्रयोग के बाद विश्वास नहीं रह गया था और भैन जी को भी अपने बुत लगवाने से ही फुर्सत कहाँ थी | |
हमने कहा- छोड़, यह सब तो राजनीति है, चाहे प्रेस इन्फोर्मशन ब्यूरो वाले पुण्य तिथि को जन्म तिथि बताएं या कोई १२५ रुपए का सिक्का जारी करे |तू तो यह बता- यदि तुझे भिश्ती की तरह एक दिन का बादशाह बना दिया जाए तो तू क्या करेगा ?
हमारे सामने कागज पर बना सिक्के का एक डिजाइन रखते हुए बोला- अपने जन्म के तिहत्तर साल और छः महीने पूरे होने के उपलक्ष्य में 'साढ़े तिहत्तर रुपए' का एक सिक्का जारी करूंगा जैसे नेता लोग उत्सव मनाने के लिए अपने शासन का एक वर्ष पूरा होने का इंतज़ार नहीं करते बल्कि एक सौवां दिन ही मना डालते हैं, इस 'लोकतंत्राना मौसम' में पता नहीं कब क्या हो जाए ?
हमने तोताराम को एक चुटकुला सुनाया- एक ग्राहक ने एक दुकानदार को पंद्रह रुपए का नोट दिया और छुट्टे माँगे |दुकानदार ने साढ़े सात साढ़े सात के दो नोट दे दिए |
बोला- यह एक पुराना चुटकुला है लेकिन समय की रफ़्तार को देखते हुए हो सकता है, यह किसी दिन सच में बदल जाए |कुछ वर्षों पहले एक समाचार पढ़ा था कि किसी ने अपना छोटा फोटो लिफाफे पर डाक टिकट की तरह चिपका कर भेज दिया था और मज़े की बात यह कि वह सही ठिकाने पर सकुशल पहुँच भी गया |किसी रिपोर्टर ने उसका समाचार बना दिया था |और देखिए कि अभी कुछ दिन पहले पोस्ट ऑफिस ने अपने फोटो के टिकट छपवाने की सुविधा दे दी है |
हमने पूछा- लेकिन नोटों या सिक्कों के संबंध में तुम यह कैसे कह सकते हो ?
बोला- अभी तक हम एक,दो, पाँच, दस, बीस,पचास, एक सौ, पाँच सौ और हज़ार के नोट चलते थे लेकिन अब अम्बेडकर जी की पुण्य तिथि ६ दिसंबर २०१५ को १२५ रुपए का सिक्का भी आ रहा है क्योंकि यह उनका १२५ वाँ जन्म वर्ष भी है |
हमने कहा- लेकिन एक सौवीं जयंती पर ही यह सिक्का जारी क्यों नहीं किया ? हिसाब ठीक रहता और अच्छा भी लगता |
बोला- उस समय न तो उस समय वालों को पता था कि अम्बेडकर के बिना अनुसूचित जाति वालों का वोटबैंक खिसक सकता है |
हमने पूछा- लेकिन आज सिक्का जारी करने वालों ने उनकी एक सौवीं जयंती पर ऐसा क्यों नहीं किया ?
बोला- कैसे कर सकते थे, तब कोई सत्ता में थोड़े थे |
-लेकिन भैन जी के साथ मिलकर प्रस्ताव तो रख सकते थे- हमने कहा |
कहने लगा- लेकिन तब इन्हें अनुसूचित वोटों की कोई उम्मीद नहीं थी, भैन जी पर छः-छः महीने वाले प्रयोग के बाद विश्वास नहीं रह गया था और भैन जी को भी अपने बुत लगवाने से ही फुर्सत कहाँ थी | |
हमने कहा- छोड़, यह सब तो राजनीति है, चाहे प्रेस इन्फोर्मशन ब्यूरो वाले पुण्य तिथि को जन्म तिथि बताएं या कोई १२५ रुपए का सिक्का जारी करे |तू तो यह बता- यदि तुझे भिश्ती की तरह एक दिन का बादशाह बना दिया जाए तो तू क्या करेगा ?
हमारे सामने कागज पर बना सिक्के का एक डिजाइन रखते हुए बोला- अपने जन्म के तिहत्तर साल और छः महीने पूरे होने के उपलक्ष्य में 'साढ़े तिहत्तर रुपए' का एक सिक्का जारी करूंगा जैसे नेता लोग उत्सव मनाने के लिए अपने शासन का एक वर्ष पूरा होने का इंतज़ार नहीं करते बल्कि एक सौवां दिन ही मना डालते हैं, इस 'लोकतंत्राना मौसम' में पता नहीं कब क्या हो जाए ?
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