Jan 16, 2016

संसद का नया भवन

  संसद का नया भवन 

आज तोताराम बहुत खुश था |आते ही बोला- अब असली स्वतंत्र-भारत की शुरुआत  होने वाली है |

हमने कहा- क्या बात कर रहा है ? भारत तो जब हम दूसरी कक्षा में थे तभी स्वतंत्र हो गया था | और फिर इसमें असली-नकली क्या होता है ?

बोला- होता क्यों नहीं ? अभी तक अधिकतर वही कुछ चल रहा था जो गौरांग महाप्रभु छोड़कर गए थे | वही भाषा, वही संस्कृति और वही फूट डालो राज करो की नीति और वही बिल्डिंग | जिसकी नींव में पता नहीं, कौनसा टोना-टोटका डाल गए कि एक दिन भी सुख-शांति नसीब नहीं |कोई न कोई लफड़ा लगा ही रहता है |बाहर से कोई संकट नहीं होगा तो ये भले आदमी खुद ही माइक, कुर्सियाँ  उठाकर एक दूसरे पर फेंकते रहेंगे | बस, एक मसले पर सभी सहमत हैं- कैंटीन की सब्सीडी और अपनी तनख्वाह बढ़वाना  | इसलिए असरानी वाले विज्ञापन की तरह,  टूटी कुर्सियाँ और माइक ही नहीं, सारे घर के क्या , घर ही बदल डालूँगा |

हमने कहा- लेकिन बिल्डिंग तो मज़बूत है |यदि इन सेवकों ने बनवाई होती तो जाने कब की गिर गई होती |वैसे एक बात माननी पड़ेगी- पट्ठों ने कुआँ बनवाया लेकिन बिना पानी का |इनके टुच्चेपन पर यदि किसी भले आदमी को शर्म आए तो डूब मरने को चुल्लू भर पानी भी नहीं |अब जब नई बिल्डिंग बने तो कुएँ में पानी की व्यवस्था ज़रूर होनी चाहिए, सेवकों की यश-धन-सत्ता की प्यास  बुझाने के लिए, हालाँकि वह कभी शांत होती नहीं और रँगे हाथ धोने के लिए |

कहने लगा- पानी से ज्यादा समस्या है छोटी कुर्सियों की |इसमें सांसदों की विशाल देह समाती ही नहीं | 

हमने कहा- ये सब मुफ्त के माल पर दंड पेलने का नाटक है वरना पहले नुरुल हसन, पीलू मोदी जैसे लोग इन्हीं कुर्सियों पर बहुत वर्षों तक मज़े से बैठते थे कि नहीं |जिनको  कुर्सी पर सोना है या लेटे-लेटे पोर्न फिल्म देखनी है उनको चाहिए सोफनुमा बड़ी कुर्सियाँ |वैसे चाणक्य ने तो पटरे के पास ज़मीन पर आसन बिछाकर मगध का साम्राज्य संचालित कर दिया था |

बोला- अब पहले वाली बात नहीं है |अब इनकी तनख्वाह इतनी हो गई है और फिर  ऊपर से सांसद निधि ! ससुर देह इन कुर्सियों में समाती ही नहीं | 

हमने कहा- हो सकता है बड़ी कुर्सियों की ज़रूरत ही न पड़े क्योंकि अब संसद की कैंटीन में सब्सीडी बंद हो गई है |वैसे तेरी बात और है | देश की हर छोटी-बड़ी चिंता तेरे सिर ही तो हैं |हमारी तो एक छोटी सी चिंता है कि वर्तमान संसद के परिसर में जो मूर्तियाँ लगी हैं उन्हें भी नए परिसर में ले जाएंगे या नहीं ? कहीं ऐसा न हो कि गाँधी की मूर्ति को यही छोड़ दिया जाएँ और नए परिसर में उसके स्थान पर गोडसे की मूर्ति स्थापित कर दी जाए |


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