अतुल्य भारत
बचपन में हमें पढ़ाया जाता था कि योरप के देश धनवान हैं | वहाँ की जलवायु ठंडी है इसलिए वहाँ के मजदूर अधिक काम कर सकते हैं | भारत एक गरीब देश है क्योंकि इसकी जलवायु गरम है इसलिए यहाँ के मजदूर अधिक काम नहीं कर सकते |
हम क्या कर सकते थे ? हमें वही पढ़ना और अध्यापकों को वही पढ़ाना पड़ता था जो सरकार की पुस्तकों में निर्धारित होता था लेकिन पता नहीं, हमारा मन क्यों नहीं मानता था | वह देश जो गरम जलवायु के बावज़ूद एक हजार वर्षों तक विदेशी शासनों का बोझ उठा सकता है, जिसके सैनिक दुनिया में अंग्रेजों का शासन कायम रखने के लिए प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं से लोहा ले सकते हैं, जहाँ के किसान फीजी, सूरीनाम, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देशों में जाकर वहाँ की ज़मीन को उपजाऊ बनाकर अपने विदेशी मालिकों के लिए 'सफ़ेद सोना' (चीनी) के लिए गन्ना उगा सकते हैं वे गोरे श्रमिकों से कमतर या काहिल कैसे हो सकते हैं ? लेकिन क्या किया जाए |
भाषा, धर्म,सभ्यता और संस्कृति के बारे में भी ऐसी ही बहुत सी बातें योजनाबद्ध तरीके से लोगों के मन में बैठाई गई थीं |रंग रूप के बारे में भी हमारे मन में यह बैठा दिया गया था कि गोरे लोग ही सुन्दर होते हैं जिसके कारण आज देश में गोरा बनाने वाली क्रीमों का हजारों करोड़ का व्यापार फैला हुआ है |
आज हमने जब तोताराम से अंग्रेजों की इस कूटनीति के बारे में चर्चा की तो बोला- अब यह धारणा गलत सिद्ध हो गई है |हमारे यहाँ के मजदूर दुनिया के सबसे शक्तिशाली और कर्मठ प्राणी हैं और कमाई के क्षेत्र में भी विदेशी मजदूरों से बहुत आगे हैं |भारतीय खाद्य निगम के तीन सौ अस्सी मजदूर तो ऐसे हैं रोजाना एक-एक क्विंटल की कम से कम एक-एक हजार बोरियाँ ट्रकों में चढ़ा-उतारते हैं और साढ़े चार लाख रुपए महिने तक कमाते हैं |
हमने पूछा- यदि ऐसा होता तो यहाँ के मजदूर और कारीगर क्यों विदेश जाने के लिए मरे जा रहे हैं और बहुत बार विदेश भेजने के नाम पर एजेंट इन्हें ठग लेते हैं |इसका क्या प्रमाण है ?तेरे इस कथन का क्या आधार है ? इतना तो यहाँ के मैनेजरों, डाक्टरों, इंजीनीयरों, प्रोफेसरों तक को नहीं मिलता |प्राइवेट कालेजों, स्कूलों में तो दस-बारह हजार में लोग पढ़ा रहे हैं | चपरासी की नौकरी के लिए रिक्तियों से हजारों गुना अर्जियां आती हैं |
बोला- यह मेरी कोई गप्प नहीं है यह तो बुज़ुर्ग भाजपा नेता शांताकुमार जी की अगुआई में गठित कमेटी की रिपोर्ट है | |जब भारत में बना एक स्कूटर भैंस को हरियाणा से पटना ले जा सकता है, बिहार की एक मुर्गी एक दिन में आठ सौ रुपए का दाना खा सकती है, सोलह हजार के एक कम्प्यूटर का एक दिन का किराया ही सोलह हजार मिल सकता है तो यहाँ का एक मजदूर कोई चमत्कार क्यों नहीं कर सकता ?
हमने कहा- ऐसे चोर-चमत्कारियों के बल पर ही यह देश 'अतुल्य भारत' है |
बचपन में हमें पढ़ाया जाता था कि योरप के देश धनवान हैं | वहाँ की जलवायु ठंडी है इसलिए वहाँ के मजदूर अधिक काम कर सकते हैं | भारत एक गरीब देश है क्योंकि इसकी जलवायु गरम है इसलिए यहाँ के मजदूर अधिक काम नहीं कर सकते |
हम क्या कर सकते थे ? हमें वही पढ़ना और अध्यापकों को वही पढ़ाना पड़ता था जो सरकार की पुस्तकों में निर्धारित होता था लेकिन पता नहीं, हमारा मन क्यों नहीं मानता था | वह देश जो गरम जलवायु के बावज़ूद एक हजार वर्षों तक विदेशी शासनों का बोझ उठा सकता है, जिसके सैनिक दुनिया में अंग्रेजों का शासन कायम रखने के लिए प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं से लोहा ले सकते हैं, जहाँ के किसान फीजी, सूरीनाम, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देशों में जाकर वहाँ की ज़मीन को उपजाऊ बनाकर अपने विदेशी मालिकों के लिए 'सफ़ेद सोना' (चीनी) के लिए गन्ना उगा सकते हैं वे गोरे श्रमिकों से कमतर या काहिल कैसे हो सकते हैं ? लेकिन क्या किया जाए |
भाषा, धर्म,सभ्यता और संस्कृति के बारे में भी ऐसी ही बहुत सी बातें योजनाबद्ध तरीके से लोगों के मन में बैठाई गई थीं |रंग रूप के बारे में भी हमारे मन में यह बैठा दिया गया था कि गोरे लोग ही सुन्दर होते हैं जिसके कारण आज देश में गोरा बनाने वाली क्रीमों का हजारों करोड़ का व्यापार फैला हुआ है |
आज हमने जब तोताराम से अंग्रेजों की इस कूटनीति के बारे में चर्चा की तो बोला- अब यह धारणा गलत सिद्ध हो गई है |हमारे यहाँ के मजदूर दुनिया के सबसे शक्तिशाली और कर्मठ प्राणी हैं और कमाई के क्षेत्र में भी विदेशी मजदूरों से बहुत आगे हैं |भारतीय खाद्य निगम के तीन सौ अस्सी मजदूर तो ऐसे हैं रोजाना एक-एक क्विंटल की कम से कम एक-एक हजार बोरियाँ ट्रकों में चढ़ा-उतारते हैं और साढ़े चार लाख रुपए महिने तक कमाते हैं |
हमने पूछा- यदि ऐसा होता तो यहाँ के मजदूर और कारीगर क्यों विदेश जाने के लिए मरे जा रहे हैं और बहुत बार विदेश भेजने के नाम पर एजेंट इन्हें ठग लेते हैं |इसका क्या प्रमाण है ?तेरे इस कथन का क्या आधार है ? इतना तो यहाँ के मैनेजरों, डाक्टरों, इंजीनीयरों, प्रोफेसरों तक को नहीं मिलता |प्राइवेट कालेजों, स्कूलों में तो दस-बारह हजार में लोग पढ़ा रहे हैं | चपरासी की नौकरी के लिए रिक्तियों से हजारों गुना अर्जियां आती हैं |
बोला- यह मेरी कोई गप्प नहीं है यह तो बुज़ुर्ग भाजपा नेता शांताकुमार जी की अगुआई में गठित कमेटी की रिपोर्ट है | |जब भारत में बना एक स्कूटर भैंस को हरियाणा से पटना ले जा सकता है, बिहार की एक मुर्गी एक दिन में आठ सौ रुपए का दाना खा सकती है, सोलह हजार के एक कम्प्यूटर का एक दिन का किराया ही सोलह हजार मिल सकता है तो यहाँ का एक मजदूर कोई चमत्कार क्यों नहीं कर सकता ?
हमने कहा- ऐसे चोर-चमत्कारियों के बल पर ही यह देश 'अतुल्य भारत' है |
No comments:
Post a Comment